Jharkhand Assembly Election 2019 : डेढ़ दशक बाद सैकड़ों समर्थकों संग झामुमो में लौटे समीर Jamshedpue News
बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा से टिकट के दावेदार समीर महंती ने बुधवार को झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन थाम लिया।
चाकुलिया (संवाद सूत्र)। बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा से टिकट के दावेदार समीर महंती ने बुधवार को झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन थाम लिया। उन्होंने अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ रांची जाकर झामुमो कार्यालय में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।
झामुमो अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने पट्टा पहनाकर समीर को पार्टी में शामिल कराया। इस मौके पर पार्टी के उपाध्यक्ष व सरायकेला के विधायक चंपई सोरेन के अलावा पूर्वी ङ्क्षसहभूम जिलाध्यक्ष रामदास सोरेन समेत कई नेता उपस्थित थे। समीर के साथ झामुमो में जाने वालों में वार्ड पार्षद मो. गुलाब, मलय रुहीदास, शंभू दास, संतोष मुंडा, समीर दास, बुबाई दास, आशीष गिरी, मनोज गोप, राजाराम गोप, जितेंद्र ओझा, पंकज भोल, बापी बंद, नाडु मैती, राजीव लेंका, दीपक ङ्क्षसह, मार्शल बास्के, राम मुर्मू आदि प्रमुख हैं।
इस मौके पर समीर ने कहा कि भाजपा में जाने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि यहां जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं का कोई सम्मान नहीं है। सांसद विद्युत वरण महतो को छोड़कर किसी ने भी उन्हें पार्टी के भीतर सम्मान नहीं दिया। इससे आहत होकर उन्होंने भाजपा छोडऩे और अपने पुराने घर झामुमो में जाने का फैसला किया।
1995 में शुरू किया था राजनीतिक सफर
समीर महंती ने करीब ढाई दशक पूर्व झारखंड मुक्ति मोर्चा से ही अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। वे करीब छह वर्ष तक चाकुलिया के प्रखंड अध्यक्ष रहे। वर्ष 2004 में उन्होंने विधानसभा टिकट के लिए पार्टी के भीतर अपनी दावेदारी प्रस्तुत की। लेकिन तब झामुमो ने उनकी दावेदारी को दरकिनार कर विद्युत वरण महतो को टिकट थमा दिया था। इससे नाराज होकर समीर आजसू में शामिल हो गए और चुनाव भी लड़ा। तब उन्हें करीब 10 हजार वोट मिले थे।
इसके बाद वर्ष 2009 में भी उन्होंने आजसू से ही चुनाव लड़ा, जिसमें तीसरे स्थान पर रहे। 2014 के चुनाव में आजसू का भाजपा से गठबंधन हो जाने के कारण बहरागोड़ा सीट पर समीर की दावेदारी को ग्रहण लग गया। लिहाजा समीर ने इस बार झारखंड विकास मोर्चा से अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया। इस बार उन्हें करीब 42,000 वोट मिले, लेकिन वह एक बार फिर तीसरे स्थान पर ही रहे। इसके बाद समीर को शायद यह समझ में आ गया कि सिर्फ अपने संगठन के बल पर चुनाव जीतना मुश्किल है। इसलिए वर्ष 2017 में उन्होंने इस उम्मीद में भाजपा का दामन थामा कि पार्टी उन्हें टिकट देकर विधानसभा पहुंचाएगी। परंतु यहां भी टिकट की राह आसान नहीं दिखी और आखिरकार समीर को झामुमो में डेढ़ दशक बाद घर वापसी करनी पड़ी।