इनकी सेवा में झलकता है 'भाव', समाज करता है सम्मान
ये चिकित्सक मिसाल कायम कर रहे हैं। इनका अंदाज भले ही अलग-अलग हो पर मिशन सेवा करना ही है। अपनी ड्यूटी बखूबी निभाते हुए ये सेवा का अलख जगा रहे हैं।
अमित तिवारी, जमशेदपुर। बाजारीकरण के दौर में एक तरफ चिकित्सकों की सेवा-भाव पर सवाल खरा हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ शहर के ये चिकित्सक मिसाल कायम कर रहे हैं। इनका अंदाज भले ही अलग-अलग हो पर मिशन सेवा करना ही है। अपनी ड्यूटी बखूबी निभाते हुए ये सेवा का अलख जगा रहे हैं। इनके लिए न तो समय मायने रखता है और न ही मेहनत। 24 घंटे यह सेवा के लिए तत्पर रहते है। यही कारण है कि समाज भी इन्हें सम्मान भरे नजरों से देखना है। इन डॉक्टरों के लिए जितना परिवार जरूरी है उतना समाज भी।
30 वर्ष से ग्रामीण क्षेत्रों में लगा रहे निश्शुल्क शिविर
डॉ. चंदन विश्वास रहते हैं शहर के पॉश इलाके बिष्टुपुर में, लेकिन उनका अधिकांश समय गांवों में बीतता है। डॉ. चंदन विश्वास गांवों में धूम-घूमकर न सिर्फ लोगों का दर्द सुनते और देखते है बल्कि यथासंभव उसे दूर भी करते हैं। डॉ. विश्वास की इस सेवा का सिलसिला बीते 30 साल से कोल्हान के अलग-अलग ग्रामीण क्षेत्रों में चला आ रहा है। डॉ. विश्वास गांवों में जाते हैं और वहां निश्शुल्क स्वास्थ्य शिविर लगाकर लोगों को चिकित्सीय सेवा उपलब्ध कराते हैं। इस दौरान उन्हें कई बार विकट परिस्थितियों से भी गुजरना पड़ा, लेकिन उनका सेवाभाव तनिक भी डिगा नहीं। डॉ. विश्वास ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति वर्ष 50-60 शिविर करते हैं। पुरुलिया, झिलिंग, रघुनाथपुर, बलरामपुर, पटमदा, चांडिल, घाटशिला, धालभूमगढ़, चाईबासा सहित कइयों गांवों में सेवा दे चुके है।
700 शिविरों में ले चुके है भाग, हजारों मरीज हुए ठीक
इनके लिए चिकित्सा पैसा कमाने का जरिया नहीं है बल्कि इबादत का नाम है। सर्किट हाउस क्षेत्र के प्रसिद्ध प्रोफेसर सह फिजिशियन डॉ. एबी बलसारा न सिर्फ दूसरे चिकित्सकों के लिए मिशाल है बल्कि मरीजों के लिए मसीहा भी है। डॉ. बलसारा देश के अलग-अलग ग्रामीण क्षेत्रों में अबतक करीब 700 से अधिक स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से करीब लाखों लोगों तक अपनी निश्शुल्क सेवा दी है। जिदंगी के इस अंतिम पड़ाव यानी उम्र (77) वर्ष में भी वह गरीबों की सेवा करने में जी-जान से जुटे है। वर्तमान में वह हर रविवार को करीब पांच घंटे सेवा-भाव के नाम से निकालते है। सुबह 9 बजे सबसे पहले वह ब्रह्माकुमारी के स्वास्थ्य शिविर में भाग लेते है। इसके बाद दोपहर 11 से 12.30 बजे सर्किट हाउस स्थित सांई मंदिर में अपनी सेवा देते है।
चिकित्सा को बनाया मिशन
सोनारी स्थित आदर्श नगर निवासी सह फिजिशियन डॉ. सुर्याकांत मिश्रा न सिर्फ निश्शुल्क इलाज करते है बल्कि रात-बिरात कभी भी जरूरत पड़ने पर वह हाजिर भी रहते है। वर्ष 1998 से वह ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर लोगों को चिकित्सीय सेवा देना शुरू किया। अबतक करीब 600 से अधिक शिविरों के माध्यम से करीब हजारों लोगों को स्वस्थ्य कर चुके है। आदर्श नगर वासियों का कहना है कि डॉ. सूर्याकांत पीड़ित मानवता की सेवा निस्वार्थ भाव से कर रहे हैं। डॉ. मिश्रा जब अपने क्लिनिक में नहीं मिलते है तो मरीज उनके घर तक पहुंच जाते है। आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति को तो वह दवा भी निश्शुल्क उपलब्ध कराते है और जो फीस देने में असमर्थ होते है उससे फीस भी नहीं लेते। वह कई समाजिक संस्थानों से भी जुड़े हुए है। उनके माध्यम से वह ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर शिविर लगाते है।
भटके हुए बच्चों को दिखा रही राह
कदमा निवासी डॉ. जया मोइत्रा पेशा से जनरल फिजिशियन है पर लोग उन्हें एक समाजसेवी के रूप में जानते है। डॉ. जया बीते 30 वर्षो से ग्रामीण क्षेत्रों में शिविर लगाकर मरीजों की मर्ज हरने का काम कर रही है। इसके अलावा वे सुंदरनगर स्थित चेशायर होम में मेंटली और फिजिकली बच्चों के चेहरे पर मुस्कान भी ला रही है। वहीं भटके हुए बच्चों को वह राह दिखाने का भी काम कर रही है। इसके लिए उन्होंने ग्रेस इंडिया नामक एनजीओ का भी गठन किया है। इसका सारा खर्च एनजीओ में शामिल कुल आठ लोग उठाते है। डॉ. जया कहती है कि हर चिकित्सक को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। उनका दायित्व सिर्फ इलाज करना ही नहीं बल्कि समाज को बेहतर ढंग से विकसित करने में भी योगदान निभाना चाहिए।
शिविर के माध्यम से मरीजों की करते सेवा
महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज के डॉ. रतन कुमार अधिकांश रविवार को निश्शुल्क सेवा देते है। इनके लिए संडे (रविवार) मतलब सेवा है। उनकी जिंदगी में संडे की खासी अहमियत है। सुबह से शाम तक किसी न किसी सुदूर ग्रामीण इलाके में लोगों की सेवा करते हैं या फिर खुद के क्लिनिक में बैठे होते हैं। डॉ. रतन अबतक 300 से अधिक चिकित्सा शिविरों के माध्यम से हजारों मरीजों को स्वस्थ कर चुके हैं। डॉ. रतन 1990 में पटमदा में तैनात थे। इसके बाद कांड्रा सहित कई ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा दी। इस दौरान ग्रामीणों से उनकी नजदीकियां बढ़ती गई। वह कहते हैं, सप्ताह के छह दिन ड्यूटी में व्यस्त रहते हैं। इसलिए रविवार को सेवा के लिए समय निकालते हैं।
समाजसेवा के लिए बनाई अलग संस्था
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. केके चौधरी एक चिकित्सक के साथ-साथ समाजसेवी भी है। बचपन से ही वह समाज से जुड़े रहे। इसलिए अब वह कई संस्थाओं से जुड़कर गरीबों की मदद कर रहे है। उन्होंने खुद का भी अपना एक संस्था बनाया है। जिसके माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर स्वास्थ्य शिविर, गरीब बच्चों के बीच किताब वितरण, क्विज प्रतियोगिता, सांस्कृतिक कार्यक्रम सहित अन्य आयोजित करते है। डॉ. चौधरी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) में भी लगातार आठ वर्षो तक उपाध्यक्ष पद पर भी काबिज रहे है। वहीं इंडियन एसोसिएशन ऑफ पेडियाट्रिक्स (आइएपी) के सचिव भी रह चुके है। इसके साथ ही वह शिवाजी सेवा एवं सांस्कृतिक संघ के अध्यक्ष, थैलेसिमिया वेलफेयर सोसायटी का उपाध्यक्ष, न्यू रोज क्लब, सोनारी के अध्यक्ष, आदर्श नगर सोसायटी के अध्यक्ष सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए है।
हर शनिवार को लगती है भीड़
शहर के बीचो बीच लोयला स्कूल स्थित एक क्लिनिक में प्रति शनिवार को टीएमएच सहित सभी छोटे-बड़े अस्पतालों के विशेषज्ञ चिकित्सा सेवा-भाव के उद्देश्य से इक्ट्ठा होकर मरीजों की इलाज करते है। इसमें सभी रोग से संबंधित चिकित्सक शामिल होते है। 1984 में तत्कालिन प्रिंसिपल फादर रॉकी वाज द्वारा लोयला एलुमनी एसोसिएशन की स्थापना की गई। यहां पर गरीब, असहाय मरीजों को सभी तरह की सहायता उपलब्ध करायी जाती है। फिजीशियन से लेकर हृदय, ईएनटी, शिशु, किडनी, दांत सहित अन्य चिकित्सक सेवा देते है। करीब 150 मरीजों की जांच व 1500 रुपये की दवाइयां बांटी जाती है। एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉ. केपी दूबे का कहना है कि शहर के अलग-अलग कुल 20 से अधिक चिकित्सक जुड़े हुए है।
गरीब बच्चों को भविष्य गढ़ रहे डॉ. बनर्जी
दंत रोग विशेषज्ञ डॉ. जहर बनर्जी मरीजों की सेवा तो करते ही है। इसके अलावे वह गरीब बच्चों की भविष्य भी गढ़ रहे है। अपनी पत्नी की नाम से वह अभया संस्था संचालित करते है। इसके माध्यम से वह बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई सिखाकर रोजी-रोटी लायक तैयार कर रहे है। नीलडीह स्थित सामुदायिक विकास केंद्र में डॉ. जहर बनर्जी का क्लास लगता है। यहां पर फिलहाल 25 बच्चे पढ़ रहे है। वहीं 18 महिलाएं सिलाई का प्रशिक्षण ले रही है। डॉ. जहर बनर्जी हर साल करीब दो लाख रुपये अपने पाकेट से इन गरीब बच्चों व महिलाओं पर खर्च करते है। उनके यहां कक्षा पांचवी तक की पढ़ाई होती है। वे खुद बच्चे को किताब-कॉपी भी देते है।