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पहाड़ से पानी उतार कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं नौ गांवों के लोग

यहां के नौ गांव आज भी पहाड़ से पानी उतार कर प्यास बुझा रहे हैं। पेड़ के पत्ते और घास की रस्सी बेचकर जीवन बसर कर रहे हैं।

By Edited By: Published: Mon, 02 Jul 2018 02:30 AM (IST)Updated: Mon, 02 Jul 2018 06:00 PM (IST)
पहाड़ से पानी उतार कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं नौ गांवों के लोग
पहाड़ से पानी उतार कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं नौ गांवों के लोग

मनोज सिंह, जमशेदपुर। एक तरफ राज्य में हर शख्स को पेयजल व स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की बात हो रही है, वहीं पूर्वी सिंहभूम जिले के नौ गांव आज भी पहाड़ से पानी उतार कर प्यास बुझा रहे हैं। पेड़ के पत्ते और घास की रस्सी बेचकर जीवन बसर कर रहे हैं। जिला मुख्यालय जमशेदपुर से 50 किमी दूर घाटशिला अनुमंडल के यह गांव झांटी झरना पंचायत के अधीन आते हैं। नक्सल प्रभावित होने से यहां विकास की रोशनी नहीं पहुंच पाई है।

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झांटीझरना, श्यामनागी, फूलझोर, टेरापानी, बालीडीह, सिंदरीयाम, डाइनमारी, भुमरू और बासाजोर गांवों में करीब 388 घरों के करीब दो हजार लोग पहाड़ी झरने से प्यास बुझाने को मजबूर हैं। इन गांवों में एक-दो चापाकल देखने को मिल जाएंगे, लेकिन व्यवस्था को मुंह चिढ़ाते नजर आएंगे। मुखिया सुकुमार सिंह के अनुसार, ये सभी गांव आदिवासी बहुल हैं। सबर और भूमिज निवास करते हैं। इस क्षेत्र में रहने वाले लोग झरने का पानी पीते हैं, उसी से खाना भी पकाते हैं। गरीबी का आलम यह है कि लोग जंगलों से पेड़ के पत्ते तोड़कर दोना और सवई घास से रस्सी बनाकर जीवन यापन कर रहे हैं। बाजार में जिस दिन उनके उत्पाद नहीं बिकते, भोजन के लाले पड़ जाते हैं।

ऐसे पहाड़ से उतारा पानी
भुमरू गांव के अजीत मुंडा कहते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व तक यहां के ग्रामीण पानी के लिए इधर-उधर भटकते थे। कहीं नाला हो या पहाड़ से बहता पानी, सूचना मिलते ही दौड़ पड़ते थे। दो से तीन किलोमीटर दूरी तय कर बच्चे व महिलाएं पानी लाती थीं। कुछ वर्ष पूर्व गांव में बाहर से लोग आए थे। उन्होंने पीने के लिए पानी मांगा। जिस घर में गए पानी नहीं था। वे किसी संस्था के लोग थे। उन्होंने ही आइडिया दिया कि ऊंची पहाड़ी स्थित झरना के पास एक गढ्डा खोदकर पाइप से गांव तक पानी लाया जा सकता है। ग्रामीणों ने श्रमदान कर पहाड़ी झरने के नीचे 8-10 फुट का गढ्डा खोदा। यहां पानी एकत्र होने लगा। उसमें पाइप लगा दिया गया। चूंकि गांव तराई में बसे हैं, सो पाइप द्वारा पानी गांव तक आसानी से पहुंचने लगा। लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबी पाइप में जगह-जगह बनाए गए प्वाइंट से ग्रामीण आसानी से पीने, नहाने के लिए पानी ले लेते हैं। गर्मी के दिनों में जब कभी झरना से पानी नहीं निकलता है तो ग्रामीणों को इधर-उधर भटकना पड़ता है।

ऐसा है इलाका
यह गांव पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे हैं। कुख्यात माओवादी कान्हू मुंडा का गृह क्षेत्र झांटी झरना में है। यही कारण रहा कि इस क्षेत्र का विकास नहीं हो पाया। गांवों में अब सड़क व बिजली पहुंच चुकी है। पेयजल की समस्या का देसी निदान भी खोज लिया गया है। कुछ इलाकों में इस वर्ष सड़क किनारे वन विभाग ने सोलर लाइट लगाया है।


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