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इनके हौसले से हारी दिव्यांगता, नौकरशाही से ‘हौसला’

उसने बचपन में हौसले से दिव्यांगता को मात दे दी, लेकिन बुढ़ापे में लालफीताशाही से हौसला पस्त हो गया।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 01 Aug 2017 02:13 PM (IST)Updated: Tue, 01 Aug 2017 02:19 PM (IST)
इनके हौसले से हारी दिव्यांगता, नौकरशाही से ‘हौसला’
इनके हौसले से हारी दिव्यांगता, नौकरशाही से ‘हौसला’

विद्या शर्मा, पोटका। यह कहानी है एक ऐसे दिव्यांग की है, जिसने बचपन में अपने हौसले से दिव्यांगता को मात दे दी, लेकिन बुढ़ापे में लालफीताशाही से उसका हौसला पस्त हो गया है। इनका नाम है-रामलखन साहू।

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सुंदरनगर होकर जादूगोड़ा जाने वाली सड़क पर खुकड़ाडीह-गोड़ाडीह दोराहे पर झोपड़ीनुमा एक होटल चलाने वाले रामलखन साहू की उम्र छह साल की थी, उसी समय हादसे में अपना एक हाथ गंवा बैठे। बच्चे मजाक उड़ाया करते थे, पर कभी मन में हीन भावना पैदा नहीं हुई। हौसलों के बल अपनी दिव्यांगता को मात देते रहे।

समय के साथ जवान हुए। शादी हुई और बच्चे हुए। बच्चों को पढ़ाया-लिखाया और पिता होने का फर्ज निभाया। उम्र ढल कर अब साठ पार करने को बेताब है। पर नौकरशाही के आगे अब हौसला पस्त होने लगा है। सरकारी योजनाओं से अब तक महरूम हैं। न लाल कार्ड है और ना ही दिव्यांगता प्रमाणपत्र।

रामलखन साहू कहते हैं, सरकार की योजनाओं के लाभ के लिए पंचायत, प्रखंड से लेकर जिला कार्यालय तक अर्जी देते-देते थक गए। लेकिन आज तक कोई सुविधा नहीं मिली। हर कोई सिर्फ आश्वासन देता है। रामलखन के अनुसार, स्कूली शिक्षा के बाद जब कोई काम नहीं मिला तो पिता प्रभु साहू का पुश्तैनी होटल ही संभाल लिया। उसके बाद शादी हुई, चार पुत्री और एक पुत्र का पिता बना। अपनी छोटी सी कमाई से बच्चों को इंटर कराया।

बेटा अभी अपने पैर पर खड़ा होने की कोशिश कर रहा है। एक बेटी की शादी हो चुकी है। झोपड़ीनुमा होटल में एक हाथ से सिंघाड़ा मोड़ते, आलूचॉप छानते और उसके बाद चूल्हे से सवा हाथ (एक पूरा व दूसरे तीन चौथाई कटे हाथ) से गर्म बड़ी कड़ाही उतारते रामलखन किसी तरह परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं।

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