सबर जनजाति की घट गई उम्र, 45 साल की उम्र वाले मरीजों में 90 फीसद की मौत Jamshedpur News
झारखंड के लुप्तप्राय आदिम जनजाति सबर खतरे में हैं। खतरा इसलिए बड़ा है क्योंकि इनकी बची-खुुची आबादी 45 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ दे रही है।
जमशेदपुर (अमित तिवारी)। झारखंड के लुप्तप्राय आदिम जनजाति सबर खतरे में हैं। खतरा इसलिए बड़ा है, क्योंकि इनकी बची-कुची आबादी 45 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ दे रही है।
पूर्वी सिंहभूम जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती सबर जनजाति के मरीजों के आंकड़ें इसकी तस्दीक भी करते हैं। आंकड़े बताते हैं कि अधिकतम 45 वर्ष की उम्र के ही मरीज अंतिम अवस्था में अस्पताल पहुंचते हैं और इनमें से 50 फीसद मर जाते हैं।
एमजीएम में पिछले पांच साल में ऐसे 60 सबर मरीज भर्ती किए गए, जिनकी उम्र 45 या इसके नीचे ही थी। इनमें से 30 मरीज ही जीवित वापस घर नहीं लौट पाए। चिंता की बात यह कि अस्पताल में भर्ती होने वाले सबर में सबसे अधिक बच्चे, किशोर व युवा ही शामिल हैं। किसी भी मरीज की उम्र 45 साल से अधिक नहीं है। इसमें भी करीब 90 फीसद बच्चे व युवा शामिल हैं।
इन पांच वर्षो में एक भी सबर बुजुर्ग अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया। इससे ये इशारा साफ मिल रहा कि सबर जनजाति अपनी पूरी जिंदगी भी नहीं जी पा रहे हैं। कम उम्र में ही वे गंभीर बीमरी की चपेट में आकर अपनी जान गंवा रहे हैं। विभाग उनकी जान बचाने में नाकाम है। जबकि उनके लिए सरकार की तरफ से कई योजनाएं संचालित हो रही हैं।
घाटशिला, मुसाबनी व डुमरिया क्षेत्र में अधिक मरीज
बीते पांच साल में सबसे अधिक घाटशिला, मुसाबनी व डुमरिया क्षेत्र के सबर जनजाति के लोग बीमार होकर एमजीएम अस्पताल पहुंचे हैं। इसके बाद पोटका, चौका, बोड़ाम, चौका सहित अन्य क्षेत्र के मरीज शामिल हैं। हालांकि, कई लोगों की मौत घर में ही इलाज के अभाव में हो जाती है। सबर समुदाय झारखंड विशेष संरक्षित जनजातियों में से एक है। इनकी संख्या अन्य जनजातियों के मुकाबले बहुत कम बची रह गई है। आज भी इनका जीवन पहाड़ों और जंगलों के बीच में गुजरता है।
सबरों की स्थिति बदहाल, एक हजार में हर साल 10 सबर की मौत
पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क के एक सर्वे में सबर की स्थिति बेहद बदहाल बताई गई है। 1000 में 10 सबर की हर साल मौत हो जाती है। इस जनजाति के लोगों में सर्वाधिक कुपोषण है। बीमार होने पर भी आम तौर पर डॉक्टरों तक नहीं पहुंच पाते हैं। सर्वे की रिपोर्ट में कहा गया है कि शून्य से पांच वर्ष के सबर समुदाय के 68 फीसद बच्चे अंडरवेट हैं। जबकि इस मामले में झारखंड का औसत 47.80 फीसद है। सर्वे के अनुसार, इस समुदाय के 56 फीसद बच्चों में नाटापन की समस्या है, जो क्रोनिक हंगर के कारण होती है।
42 फीसद बच्चों को अचानक खाना मिलना बंद हो जाता
सर्वे में यह भी बताया गया है कि 42 फीसद बच्चों में दुबलापन (वेस्टिंग) है, यानी इन्हें अचानक खाना मिलना बंद हो जाता है। सबर जनजाति के अधिकतर लोग टीबी और मलेरिया के शिकार हैं। प्रति हजार में 131 लोग किसी न किसी बीमारी से ग्रसित हैं। इसमें सिर्फ 16 फीसद लोग ही सरकारी अस्पताल पहुंच पाते है। बाकि राम भरोसे ही होते हैं।