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दोनों हाथ नहीं है तो क्‍या हुआ, हौसले की पूंजी तो है; मुश्किलें भी शर्मिंदा है इस युवक से

Motivational Story. आधुनिकता के युग में वह युवा जो जिंददगी के संघर्ष में खुद को हारा मानकर मानसिक अवसाद के शिकार होकर गलत कदम उठाते हैं उन्हें जगबाबा के संघर्ष से प्रेरणा मिलेगी।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 18 Mar 2020 12:49 PM (IST)Updated: Wed, 18 Mar 2020 12:49 PM (IST)
दोनों  हाथ नहीं है तो क्‍या हुआ, हौसले की पूंजी तो है; मुश्किलें भी शर्मिंदा है इस युवक से
दोनों हाथ नहीं है तो क्‍या हुआ, हौसले की पूंजी तो है; मुश्किलें भी शर्मिंदा है इस युवक से

घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम), मंतोष मंडल। ख्वाब टूटे हैं मगर हौसला जिंदा है, हम वो हैं जहां मुश्किलें शर्मिंदा है। यह कथन झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के नरसिंहहगढ़ के युवा जगबाबा गुप्ता पर सटीक बैठती। इस विद्यार्थी  के जीवन की कहानी देश के युवाओं को संघर्ष के लिए प्रेरित करती है।

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हम बात जगबाबा की इसलिए कर रहे क्योंकि जगबाबा लोगों को चुनौतियों के बीच मुस्कुराते हुए जीने का तरीका बता रहा है। हौसले इतने बुलंद हैं कि जग की सारी कठिनायां जगबाबा के सामने नतमस्तक है। संघर्ष के मार्ग पर आगे बढ़ लक्ष्य हासिल करना उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। घाटशिला कॉलेज बीए सेमेस्टर वन के छात्र जगबाबा गुप्ता के दोनों हाथ नहीं हैं,इसका उसे कोई मलाल भी नहीं है। बचपन से ही उसके दोनों हाथ नहीं हैं। मंगलवार से  घाटशिला कॉलेज में शुरू हुई कोल्हान यूनिवर्सिटी की बीए सेमेस्टर वन की परीक्षा में वह शामिल होकर अपने पैरों की उंगली से परीक्षा देता दिखा। वह दोनों हाथों से दिव्यांग है, लेकिन उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक थी। यह चमक उसके बुलंद हौसले की वजह से है।

कमजोरियों की बनाया ताकत

अपनी कमियों व लाचारी पर मायूस होने की बजाय उसने संघर्ष के लिए उन्हीं कमजोरियों को ताकत बना डाला। बुलंद हौसले व जज्बातों से वह खुद में इतना आत्मनिर्भर तो है ही, क्षेत्र के अन्‍य दिव्यांगों को भी संघर्ष के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे रहा है। घाटशिला कॉलेज के परीक्षा कक्ष में मंगलवार को जब वह परीक्षा देने पहुंचा तो हर कोई उसके बुलंद हौसले को देखकर दंग रह गया। उसके बुलंद हौसले की हर किसी ने प्रशंसा की। ऐसे हालात में भी खुद परीक्षा देकर जगबाबा ने कक्ष व कॉलेज के अन्य विद्यार्थियों को आत्मविश्वास का पाठ पढ़ाया।

बिना किसी की मदद के परीक्षा

लगभग तीन घंटे की परीक्षा बिना किसी की मदद के  उसने अपने पैर की उंगली से लिखकर दी। जब वह परीक्षा कक्ष से बाहर निकला तो हर किसी ने उसके हौसले को सलाम किया।आधुनिकता के युग में वह युवा जो जिंददगी के संघर्ष में खुद को हारा मानकर मानसिक अवसाद के शिकार होकर गलत कदम उठाते हैं, उन्हें जगबाबा के संघर्ष से प्रेरणा मिलेगी।


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