Move to Jagran APP

कहानियां सुनाते हैं कोल्हान के रेलवे स्टेशन, जानिए कैसे पड़ा नाम

अबतक चक्रधरपुर रेल मंडल के तहत 100 से ज्यादा रेलवे स्टेशन बन चुके हैं। इनमें से हर स्टेशन के नामकरण के पीछे एक रोचक कहानी है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 05:25 PM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 01:14 PM (IST)
कहानियां सुनाते हैं कोल्हान के रेलवे स्टेशन, जानिए कैसे पड़ा नाम
कहानियां सुनाते हैं कोल्हान के रेलवे स्टेशन, जानिए कैसे पड़ा नाम

जमशेदपुर (वीरेंद्र ओझा)। एक समय झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में टाटानगर और चक्रधरपुर ही रेलवे स्टेशन हुआ करते थे। वर्ष 1887 में यह क्षेत्र हावड़ा-मुंबई रेल मार्ग बीएनआर (बंगाल नागपुर रेलवे) के नाम से जाना जाता था। यह वर्ष 1967 में दक्षिण-पूर्व रेलवे के अधीन आ गया। तब से अबतक चक्रधरपुर रेल मंडल के तहत 100 से ज्यादा रेलवे स्टेशन बन चुके हैं। इनमें से हर स्टेशन के नामकरण के पीछे एक रोचक कहानी है। 

prime article banner

कालीमाटी गांव बन गया टाटानगर रेलवे स्टेशन

टाटा आयरन स्टील की नींव साकची नामक गांव में रखी गई थी। इससे करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर हावड़ा-मुंबई रेल लाइन गुजरती थी, जिनमें से अधिकांश के आसपास आबादी नहीं थी। नजदीक में कालीमाटी ही एक गांव था, जहां कुछ घर थे। लिहाजा इसी गांव में कालीमाटी स्टेशन बनाया गया। यह स्टेशन 1907 में बनकर तैयार हुआ था। 2 जनवरी 1919 को बंगाल के गर्वनर लॉर्ड चेम्सफोर्ड यहां आए, तो उन्होंने ही टाटा स्टील के संस्थापक जमशेदजी नसरवानजी टाटा के नाम से कालीमाटी का टाटानगर और साकची का जमशेदपुर नामकरण किया।

पोड़ाहाट के राजा के नाम पर बना चक्रधरपुर स्टेशन

कोल्हान क्षेत्र का दूसरा महत्वपूर्ण स्टेशन चक्रधरपुर है। यह रेलमंडल का मुख्यालय भी है। वर्ष 1820 में पोड़ाहाट राजघराना के राजा घनश्याम सिंहदेव ने अपने पिता चक्रधारी सिंहदेव के नाम से चक्रधरपुर शहर बसाया था, लिहाजा यहां के स्टेशन का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया। 

चोयों देवगम के नाम पर बसा चाईबासा

कोल्हान प्रमंडल का मुख्यालय चाईबासा है। इसका नामकरण चोयों देवगम के नाम पर रखा गया। चाईबासा के शिक्षाविद राउतू पुरती बताते हैं कि उस समय यहां केवल चोयों देवगम का ही एक घर था। बाद में अंग्रेजों ने शहर का विस्तार करने के साथ उसके नाम पर ही इस शहर का नाम रख दिया। चाईबासा में उसकी समाधि भी है। चाईबासा रेलवे स्टेशन 70 के दशक में बना था। यहां से आज भी लंबी दूरी की ट्रेनें नहीं चलती हैं।

जिनकीपाई बन गया झींकपानी

टाटानगर-चाईबासा रेलमार्ग पर झींकपानी स्टेशन पड़ता है। दरअसल यह जिनकीपाई का अपभ्रंश है। राउतू पुरती बताते हैं कि हो भाषा में 'जिनकी' जोड़ा या जोड़े को कहा जाता है, जबकि 'पाई' का अर्थ तालाब होता है। कालांतर में यहां एक ही स्थान पर दो बड़े तालाब थे, जिससे इस जगह का नाम जिनकीपाई रखा गया। बाद में इसका नाम बदलते-बदलते झींकपानी के नाम से मशहूर हो गया। यह स्थान सीमेंट कारखाना की वजह से जाना जाता है।

चांदडीह बन गया चांडिल

टाटानगर से पश्चिम बंगाल की ओर जाने वाले रास्ते में चांडिल प्रमुख स्टेशन है, जो कोल्हान की सीमा में पड़ता है। इतिहास के जानकार गौतम गोप बताते हैं कि पहले इसका नाम चांदडीह था, जिसका अपभ्रंश होते-होते चांडिल हो गया। इस तथ्य की पुष्टि इस बात से भी होती है कि इसके आसपास नीमडीह, बिरामडीह, कांटाडीह आदि स्टेशन हैं। डीह शब्द का प्रयोग टोले के लिए प्रयोग किया जाता है।

सरायकेला राजा के नाम पर है आदित्यपुर स्टेशन

टाटानगर से मुंबई के रास्ते पहला स्टेशन आदित्यपुर आता है। इसका नामकरण सरायकेला के राजा आदित्य प्रताप सिंहदेव के नाम पर किया गया। दरअसल यह क्षेत्र सरायकेला राजघराने के अधीन आता था। इसे टाटानगर का उपनगर भी कहा जाता है। यह क्षेत्रफल के लिहाज से एशिया के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र की वजह से मशहूर है। यहां टाटा स्टील का रेलवे साइडिंग और यार्ड भी है, जहां से कंपनी के अंदर सीधी रेल लाइन जाती है।

गामे रेया बन गया गम्हरिया

आदित्यपुर के बाद गम्हरिया स्टेशन पड़ता है, जो आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र का अहम हिस्सा भी है। इसका नामकरण प्रकृति और दर्शन शास्त्र के आधार पर हुआ। राउतू पुरती बताते हैं कि हो भाषा में 'गामे' वर्षा या बारिश को कहा जाता है, जबकि 'रेया' बारिश के बाद की ठंडक को। कोल्हान क्षेत्र में आमतौर पर जहां-जहां हाट लगते थे, वहां गर्मी के दिनों में बारिश अवश्य होती थी। इस वजह से ऐसे क्षेत्र गामेरेया के नाम से प्रचलित हो गए, जो बाद में गामारिया, गामहरिया और गम्हरिया बन गए। चाईबासा रेलखंड पर हाटगम्हरिया भी एक स्टेशन है।

सिनि हो गया सीनी

टाटानगर और चक्रधरपुर के बीच एक महत्वपूर्ण स्टेशन है सीनी। यह वर्ष 1923 में तब अस्तित्व में आया, जब यहां रेलवे ने बहुत बड़ा रेलवे वर्कशॉप और ट्रेनिंग सेंटर खोला। शुरूआती दौर में साउथ ईस्टर्न रेलवे के मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल कर्मियों को यहीं प्रशिक्षण दिया जाता था। इसके नामकरण को लेकर अलग-अलग मत हैं, लेकिन राउतू बताते हैं कि हो समुदाय में सिनि सुंदर कन्या को कहा जाता है। इसे अंग्रेजी में भी इसी रूप में लिखा जाता है, लेकिन ङ्क्षहदी में सीनी लिखा जाता है।

राजा धवलदेव के नाम पर बना धालभूमगढ़

इतिहास है कि सम्राट अकबर ने अपने सेनापति राजा मान सिंह को तीन इलाके दान में दिए थे। बाद में यह तीन अलग-अलग नाम से अस्तित्व में आए मानभूम, वीरभूम और धालभूम। धालभूम के राजा धवल सिंहदेव थे। प. बंगाल की सीमा पर बसे इसी धालभूम के क्षेत्र में जमशेदपुर भी आता था। आज भी जमशेदपुर धालभूम अनुमंडल में है। यहां के रेलवे स्टेशन का नाम भी राजा धवलदेव के नाम से धालभूमगढ़ रखा गया।

कंदरा से हो गया कांड्रा

टाटानगर से आदित्यपुर व गम्हरिया के बाद कांड्रा स्टेशन आता है, जो अब सरायकेला-खरसावां जिले में पड़ता है। जानकार बताते हैं कि यहां पहले काफी घना जंगल था। कई गुफा या खोह भी थे, जिसमें बाघ, चीता से लेकर तमाम जंगली जानवर रहते थे। इन्हीं कंदराओं या गुफाओं की वजह से लोग यहां दिन में भी लोग जाने से डरते थे। यही कंदरा बाद में कांड्रा के रूप में प्रचलित हो गया। कहते हैं कि स्टेशन का नाम अंग्रेजी में लिखे जाने के बाद काफी दिनों तक यह कंडरा या कंड्रा भी कहा जाता था।

यह भी जानें

- 100 छोटे-बड़े रेलवे स्टेशन हैं चक्रधरपुर रेल मंडल के अधीन।

- 1887 में हावड़ा-मुंबई रेल मार्ग जाना जाता था बंगाल नागपुर रेलवे के नाम से।

- 02 ही रेलवे स्टेशन हुआ करते थे एक समय कोल्हान क्षेत्र में।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.