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फिल्म 'मोहनजोदाड़ो' में बेदी के महिषासुर लुक पर सवाल

झारखंड के आदिवासी संगठनों ने ऋतिक रोशन की आने वाली फिल्म 'मोहनजोदाड़ो' के ऐतिहासिक संदर्भ पर सवाल उठाए हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 29 Jun 2016 05:34 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jun 2016 05:38 AM (IST)
फिल्म 'मोहनजोदाड़ो' में बेदी के महिषासुर लुक पर सवाल

भादो माझी, जमशेदपुर। झारखंड के आदिवासी संगठनों ने ऋतिक रोशन की आने वाली फिल्म 'मोहनजोदाड़ो' के ऐतिहासिक संदर्भ पर सवाल उठाए हैं। आशुतोष गोवारिकर द्वारा निर्देशित इस ऐतिहासिक फिल्म में आदिवासियों को राक्षस व खूंखार हत्यारे के रूप में प्रस्तुत किये जाने का भी विरोध किया जा रहा है। यही नहीं, बल्कि फिल्म में खलनायक की भूमिका में दिख रहे कबीर बेदी को महिषासुर के लुक में दिखाने को आदिवासी अस्मिता पर हमला करार दिया गया है।

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सोशल साइट्स से लेकर सामाजिक बैठकों तक में फिल्म का विरोध हो रहा है। आदिवासी को इतिहास में खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने एवं सिंधु घाटी सभ्यता के महत्व के साथ छेड़छाड़ करने के लिए फिल्म के विरुद्ध अदालत में याचिका या फिर एफआइआर करने की भी रणनीति बन रही है।

आदिवासी महासभा के वाट्सएप ग्र्रुप पर डॉ. नारायण सिंह नेताम लिखते हैं कि फिल्म के निर्देशक के इस कृत्य को अंतरराष्ट्रीय महत्व की चीज के साथ छेड़छाड़ की श्रेणी में देखा जाना चाहिए और इसके खिलाफ देशद्रोह की श्रेणी में मुकदमा करना चाहिए।

फेसबुक पर भी इस फिल्म के विरुद्ध आदिवासियों में उबाल ट्रेंड कर रहा है। आदिवासी विचारक एके पंकज ने पोस्ट किया कि मोहनजोदाड़ो में भी महिषासुर खलनायक! फिल्म के ट्रेलर की चर्चा करते हुए पंकज लिखते हैं कि इतिहास व साहित्य के बाद अब यह फिल्म भी इस झूठ को दोहराएगी कि मोहनजोदाड़ो आर्यों का है। आशुतोष गोवारिकर की इस फिल्म में देश के आदिवासियों और मूलनिवासियों को खलनायक बताया गया है। कबीर बेदी फिल्म में खलनायक हैं और बेदी को महिषासुर वाला आदिवासी गेटअप दिया गया है। मोहनजोदाड़ो एक नस्लीय फिल्म है।

वहीं पंकज ध्रुव भी फिल्म के ऐतिहासिक संदर्भ पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि फिल्म के कलाकार गोरे दिखाए गये हैं, जबकि उस काल में सांवले व काले लोगों के होने का ऐतिहासिक प्रमाण है। पहनावे पर भी सवाल उठाते हुए कहते हैं कि फिल्म में अभिनेत्री को सिले गये डिजाइनदार कपड़ों में दिखाया गया है, जबकि इतिहास कहता है कि उस समय स्त्री व पुरुष एक ही तरह के कपड़े पहनते थे वह भी बिना सिला हुए। शरीर में एक ही कपड़ा हुए करता था जो बिना सिला हुए होता था और शरीर के उपरी हिस्से में कपड़े नहीं होते थे। महिलाएं शरीर के ऊपरी हिस्से को सिर्फ गहनों से ढंकी होती थी। पंकज ध्रुव कहते हैं कि फिल्म आदिवासियों के चरित्र का गलत चित्रण तो करता ही है, इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ करता है।

मोहनजोदाड़ो से आदिवासी कनेक्शन

आदिवासियों की भाषा संस्कृति पर शोध कर रहे भुगलू सोरेन के मुताबिक ऐतिहासिक खोजों में इस बात का संकेत मिलता है कि आदिवासियों का मोहनजोदड़ो व हड़प्पा संस्कृति से घनिष्ठ संबंध रहा है। वे बताते हैं कि 1921 में दो पुरातत्ववेत्ताओं ने मोहनजोदाड़ो व हड़प्पा की सभ्यता को खोज निकाला था और भारतीय इतिहास को करीब पांच-छह हजार साल पीछे तक पहुंचाया था। उसके बाद के वर्षों में मोहनजोदाड़ो हड़प्पा संस्कृति के दर्जनों अन्य शहरों के अवशेष खोज निकाले गये हैं और उन अवशेषों से प्राप्त आलेखों, ताम्र पïट्टो से उसका अद्भुत साम्य आदिवासी जनता के जीवन दर्शन, उनके मिथकों रूपकों से है।


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