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कुपोषण के चलते यहां बिल्ली के बच्चे के आकार का जन्म ले रहे नवजात

महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में नवजातों की लगातार हो रही मौत के बाद जो रिपोर्ट आई है वह चौंकाने वाली है।

By Edited By: Published: Sun, 03 Jun 2018 09:08 PM (IST)Updated: Mon, 04 Jun 2018 02:39 PM (IST)
कुपोषण के चलते यहां बिल्ली के बच्चे के आकार का जन्म ले रहे नवजात
कुपोषण के चलते यहां बिल्ली के बच्चे के आकार का जन्म ले रहे नवजात

अमित तिवारी, जमशेदपुर। कुपोषण के चलते पूर्वी सिंहभूम जिले की महिलाएं कमजोर हैं और हो रही हैं। इसका असर जन्म लेने वाले नवजातों पर भी पड़ रहा है। कोल्हान के सबसे बड़े महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में नवजातों की लगातार हो रही मौत के बाद जो रिपोर्ट आई है वह चौंकाने वाली है। बिल्ली के बच्चों के आकार के बच्चे यहां की महिलाएं जन्म दे रही हैं। ऐसे बच्चों के जन्म लेने की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होना चिंता का विषय है। यह सवाल हर किसी को सोचने पर मजबूर कर रहा है। क्योंकि बिल्ली के बच्चे का वजन जन्म के बाद औसतन सौ ग्राम होता है और करीब महिलाएं भी इतना ही वजन के बच्चे को जन्म दे रही हैं।

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गंभीर बात यह है कि ऐसे 96 फीसद नवजातों की मौत अगले चार दिनों के अंदर हो जाती है। एमजीएम के एनआइसीयू में मार्च में कुल 50 बच्चों की मौत हुई है। इसमें करीब 27 से 30 बच्चे कम वजन के जन्म लिए थे। इसमें सबसे कम वजन मात्र 140 ग्राम का एक नवजात भी शामिल है। इसके बाद 150 ग्राम, 200 ग्राम, 300 ग्राम, 500 ग्राम, 800 ग्राम, 900 ग्राम, 1.01 केजी, 1.3 केजी आदि हैं। अस्पताल में इन दिनों ऐसे करीब 25 मरीज भर्ती हैं। नेशनल हेल्थ सर्वे (2015-16) के अनुसार पूर्वी सिंहभूम जिले में 49 फीसद लोग कुपोषण के शिकार हैं। वहीं जिला समाज कल्याण विभाग का दावा है कि उनके यहां 20 फीसद लोग कुपोषण के शिकार हैं। बतातें चले कि एमजीएम अस्पताल में बीते चार माह में 160 बच्चों की मौत हुई है। बीते वर्ष 2017 में भी चार माह में 164 बच्चों की मौत हुई थी। इसका खुलासा 'दैनिक जागरण' ने किया था।

गर्भवती को नहीं मिल रहा योजना का लाभ
शासन की तमाम योजनाओं के बावजूद जच्चा-बच्चा सुरक्षित नहीं हैं। मातृ एवं शिशु दर को कम करने के उद्देश्य से सरकार जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) चला रही है। इसके साथ ही गर्भवती महिलाओं को आंगनबाड़ी केंद्रों से पोषाहार देने का प्रावधान है। इस पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये खर्च होते हैं लेकिन आंकड़े बयां कर रहे हैं कि जरूरतमंदों तक इसका लाभ नहीं पहुंच पा रहा है। एमजीएम अस्पताल में अबतक जितने भी बच्चों की मौत हुई है उसमें वजन कम होना, समय से पूर्व जन्म होना, जन्म के समय दम घुटना (बर्थ एस्फिक्सिया) सहित अन्य कारण हैं। बच्चों का वजन कम होने का मुख्य कारण मां को आवश्यकता अनुसार पोषण न मिल पाना है। जबकि इसके लिए आगनबाड़ी केंद्रों पर हर गर्भवती व मां को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है।

अस्पतालों में सुविधा नहीं, देर से पहुंचती हैं गर्भवती
जननी सुरक्षा योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में प्रसव कराने से लेकर, दवा, खून सहित सभी तरह की चिकित्सीय सहायता उपलब्ध करानी है। इसके अलावे प्रोत्साहन राशि, प्रसव के बाद एंबुलेंस से घर तक पहुंचाने समेत कई अन्य सुविधाएं दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन इसका लाभ शायद ही जच्चा-बच्चा को मिल पा रहा है। रविवार को एमजीएम अस्पताल के शिशु वार्ड का जायजा लिया गया तो आधे से अधिक मरीजों को दवा नहीं मिलने की शिकायत थी।

बच्चों की मौत के कई कारण हैं। इसमें कुपोषण भी शामिल है। एनआइसीयू में कई ऐसे बच्चे भर्ती है जिसका वजन काफी कम है। हमलोग बच्चे को बेहतर से बेहतर चिकित्सा उपलब्ध कराकर उनकी जान बचाने का हर संभव प्रयास करते हैं।
- डॉ. एसएन झा, अधीक्षक, एमजीएम। 


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