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Jharkhand Assembly Election 2019 : नेताओं के खून से लाल होती रही चक्रधरपुर की माटी

Jharkhand Assembly Election 2019. एक से एक पुरोधा पल भर में ही बम विस्फोट में उड़ा दिए गए और जवाबी कार्रवाई ऐसी चली कि हत्याओं का दौर थमने का नाम ही नहीं ले रहा।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Thu, 05 Dec 2019 03:59 PM (IST)Updated: Fri, 06 Dec 2019 09:44 AM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019 : नेताओं के खून से लाल होती रही चक्रधरपुर की माटी
Jharkhand Assembly Election 2019 : नेताओं के खून से लाल होती रही चक्रधरपुर की माटी

चक्रधरपुर, दिनेश शर्मा।  Jharkhand Assembly Election 2019 झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम की पांच विधानसभा क्षेत्रों की राजनीति का केंद्र कहे जाने वाले चक्रधरपुर की सियासत का इतिहास रक्तरंजित रहा है। एक से एक पुरोधा पल भर में ही बम विस्फोट में उड़ा दिए गए और जवाबी कार्रवाई ऐसी चली कि हत्याओं का दौर थमने का नाम ही नहीं ले रहा। अब जबकि राज्य गठन के बाद चौथी बार विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, तो एक बार फिर से बाहुबलियों के समर्थकों के हाथ बारूद के करीब जाने लगे हैं और बंदूकें चमकाने की गुपचुप तैयारी भी शुरू हो गई है।

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 नगर में क्षेत्रीय क्षत्रपों के अपने-अपने गढ़ हैं और मजाल नहीं कि कोई वहां इनके खिलाफ दो शब्द भी बोलकर चला आए। क्षेत्र में अपराध का ऐसा क्रेज युवाओं व किशोरों में सवार है कि सांझ ढलते ही गुजरे दौर में पत्रकार पवन शर्मा की हत्या का गवाह बने पवन चौक पर स्थानीय छुटभैया माफियाओं से लेकर दाउद इब्राहिम और छोटा राजन तक की चर्चा शुरू हो जाती है। यही हाल अन्य चौराहों का भी है, जहां सामान्य ज्ञान की बातें छोड़ एके सैंतालीस और बोतल बम की खूब चर्चाएं होती हैं। 

 सबसे पहले साधन दास की हत्‍या 

अतीत के पन्ने उलटने पर पता चलता है कि चार दशक पहले यहां पहली सनसनीखेज हत्या बहुचर्चित नेता देवेंद्र मांझी के नजदीकी साधनदास की हुई। उनकी हत्या का गवाह भारत भवन चौक बना, जहां उन्हें गोलियों से भूनने के साथ ही बमों से उड़ा दिया गया। 1989 में झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता मछुआ गागराई को रांची मार्ग पर मौत के घाट उतार दिया गया था। मौत के मुंह में जाने के पहले वह भाजपा में शामिल हुए थे और वारदात भी चुनावी गहमागहमी के बीच हुई थी।

 मारे गए विजय सिंह सोय के करीबी

1991 में कांग्रेसी दिग्गज विजय सिंह सोय के करीबी दिलीप साव को शहर के संतोषी मंदिर के पास बमों से उड़ा दिया गया था। इस हत्याकांड ने सनसनी फैला दी थी और चुनाव लड़ रहे सोय को बड़ा झटका लगा था। पांच साल तक शहर में छायी खामोशी सागर में तूफान के पहले वाली रही। 14 अक्टूबर 1995 को बड़ा धमाका हुआ और इलाके में जंगल आंदोलन का श्रीगणोश करने वाले पूर्व विधायक देवेंद्र मांझी को गोइलकेरा हाटबाजार में विस्फोट से उड़ा दिया गया था। देवेंद्र की पत्नी जोबा माझी इस हत्याकांड के बाद चली सहानुभूति की लहर में न सिर्फ विधायक बनीं बल्कि मंत्री तक का सफर तय किया। इस हत्याकांड में बोतल बमों का प्रयोग किया गया था।

सुनील टुन्‍नु केजरीवाल भी चढ़े हिंसा की भेंंट

चार साल बाद 1999 में मौजूदा भाजपा प्रत्याशी और पूर्व सांसद लक्ष्मण गिलुवा के करीबी तत्कालीन भाजयुमो नगर अध्यक्ष सुनील उर्फ टुन्नू केजरीवाल खूनी राजनीति की भेंट चढ़ गए। उन्हें भी बोतल बम के विस्फोट से शहर के नरपत सिंह बालिका उच्च विद्यालय के पास नई उम्र के लड़कों ने उड़ा दिया। भाजपा नेता की हत्या के अगले वर्ष दस अप्रैल को चर्चित हस्ती पूर्व सांसद विजय सिंह सोय के राजनीतिक सफर का अंत हुआ।

विजय सिंह सोय की हत्‍या में एके 47 का प्रयोग

कांग्रेस नेता व पूर्व सांसद सोय को नगर के बाटा रोड पर फिल्मी स्टाइल में मौत के घाट उतार दिया गया। नई सदी के शुरुआती वर्ष 2000 में शहर में पहली बार एके सैंतालीस की तड़तड़ाहट गूंजी थी। सोय को करीब दो सौ राउंड की फायरिंग कर मौत की नींद सुला दिया गया। वर्ष 2008 में भाजपा झुग्गी झोपड़ी प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष प्रदीप साव व कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष सोमाय गागराई की सनसनीखेज हत्या हुई।

फ‍िर सियायत में बारूद की गंध

अब जबकि झारखंड गठन के बाद तीसरी बार चुनाव हो रहे हैं, तो फिर से सियासत में बारूद की गंध आने लगी है और देखना है कि सबकुछ ठीकठाक चल पाता है या फिर क्षेत्र की धरती एक बार फिर खून से लाल होती है। कहने को तो यह रेलनगरी है और स्र्वणम अतीत के साथ ही शतरंज के महारथी दीप सेनगुप्त ने इस सदी में भी शहर को खास पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन आपराधिक वारदातों के कारण नगर सुर्खियों में रहता आया है।


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