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कोल्हान में दोबारा तैयार हो रही पत्थलगड़ी की जमीन, जानिए क्‍या है पत्‍थलगड़ी Jamshedpur News

पुरानी सरकार की सख्ती के बाद लगा कि सबकुछ खत्म हो गया लेकिन पत्‍थलगड़ी के लिए बदनाम कोल्‍हान के गुदड़ी में सात लोगों की हत्‍या की घटना ने पुन सोचने पर मजबूर कर दिया है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 22 Jan 2020 02:43 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jan 2020 02:43 PM (IST)
कोल्हान में दोबारा तैयार हो रही पत्थलगड़ी की जमीन, जानिए क्‍या है पत्‍थलगड़ी Jamshedpur News
कोल्हान में दोबारा तैयार हो रही पत्थलगड़ी की जमीन, जानिए क्‍या है पत्‍थलगड़ी Jamshedpur News

जमशेदपुर, जेएनएन। झारखंड का कोल्हान प्रमंडल शुरू से ही पत्थलगड़ी के लिए बदनाम रहा है। सरायकेला -खरसावां जिले में भी जगह-जगह पत्थलगड़ी की घटनाएं होती रही हैं। पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला क्षेत्र में भी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। पुरानी सरकार की सख्ती के बाद लगा कि सबकुछ खत्म हो गया, लेकिन गुदड़ी में सात लोगों की हत्‍या की घटना ने पुन: सोचने पर मजबूर कर दिया है। 

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सरायकेला, खूंटी और आसपास के कुछ खास आदिवासी इलाके डेढ़ वर्ष पूर्व सुर्खियों में रहे थे। कई गांवों में आदिवासी, पत्थलगड़ी कर ‘अपना शासन, अपनी हुकूमत’की मुनादी कर रहे थे। ग्राम सभाएं कई किस्म का फरमान तक जारी करने लगी थी। इनके अलावा कई गांवों में पुलिस वालों को घंटों बंधक बना लिए जाने की कई घटनाएं सामने आई थी । इसपर रघुवर दास की सरकार ने सख्‍ती दिखाई थी और पुलिस ने कार्रवाई करते हुए  दर्जन भर ग्राम प्रधानों, आदिवासी महासभा के नेताओं और उनके सहयोगियों को अलग- अलग तारीखों में गिरफ्तार कर जेल भेजा।

खूंटी के कोचांग के छह गांवों में हुई थी पत्‍थलगड़ी

इन कार्रवाईयों के बीच 25 फरवरी 2018 को खूंटी के कोचांग समेत छह गांवों में पत्थलगड़ी कर आदिवासियों ने अपनी कथित हुकूमत की हुंकार भरी थी।  पत्थलगड़ी झारखंड की परंपरा है, लेकिन विकास के काम रोकने तथा भोलेभाले आदिवासियों को बरगलाने के लिए नहीं। भारतीय संविधान की नई प्रकार से व्याख्या के साथ विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभ लेने का बहिष्कार तथा बाहरियों व प्रशासन की रोक जैसे कई फरमान इस पत्थलगड़ी की आड़ में सुनाए जा रहे।

पत्थलगड़ी की परंपरा और मौजूदा स्वरूप

आदिवासी समुदाय और गांवों में विधि-विधान/संस्कार के साथ पत्थलगड़ी (बड़ा शिलालेख गाड़ने) की परंपरा पुरानी है। इनमें मौजा, सीमाना, ग्रामसभा और अधिकार की जानकारी रहती है। दूसरी तरफ ग्रामसभा द्वारा पत्थलगड़ी में जिन दावों का उल्लेख किया जाता रहा , उसे लेकर सवाल उठने लगे । दरअसल, पत्थलगड़ी के जरिए दावे किए जा रहे हैं कि  आदिवासियों के स्वशासन व नियंत्रण क्षेत्र में गैररूढ़ि प्रथा के व्यक्तियों के मौलिक अधिकार लागू नहीं है।  लिहाजा इन इलाकों में उनका स्वंतत्र भ्रमण, रोजगार-कारोबार करना या बस जाना, पूर्णतः प्रतिबंध है। पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में संसद या विधानमंडल का कोई भी सामान्य कानून लागू नहीं है। ऐसे लोगों जिनके गांव में आने से यहां की सुशासन शक्ति भंग होने की संभावना है, तो उनका आना-जाना, घूमना-फिरना वर्जित है। वोटर कार्ड और आधार कार्ड आदिवासी विरोधी दस्तावेज हैं तथा आदिवासी लोग भारत देश के मालिक हैं, आम आदमी या नागरिक नहीं। 


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