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नौकरी छूटी-घर पहुंचे, अब कर्तव्य निभाने की छटपटाहट

कुछ दिन तो राहत में बीते। अब इन युवकों के सामने रोजगार की समस्या सुरसा की तरह मुंह खोले खड़ी है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 31 May 2020 02:12 AM (IST)Updated: Sun, 31 May 2020 06:15 AM (IST)
नौकरी छूटी-घर पहुंचे, अब कर्तव्य निभाने की छटपटाहट
नौकरी छूटी-घर पहुंचे, अब कर्तव्य निभाने की छटपटाहट

जासं, जमशेदपुर : जी तोड़ मेहनत कर रोजगार के माध्यम से परिवार की आर्थिक मदद का सपना संजोए दूसरे राज्य गए थे। लेकिन इन युवकों के सपने लॉकडाउन की वजह से जब चकनाचूर हुए, तो किसी तहर से मुसीबतों का सामना करते जिंदगी की जंग जीत अपने गांव पहुंचे। इनके घर वालों ने भी राहत महसूस की चलो बेटा सुरक्षित घर पहुंच गया। कुछ दिन तो राहत में बीते। अब इन युवकों के सामने रोजगार की समस्या सुरसा की तरह मुंह खोले खड़ी है। इन्हें सूझ ही नहीं रहा कि घर तो आ गए अब करें तो क्या? रोजगार छिन गया, जमीन है नहीं। जो पैसा कमाया वो दो महीने लॉकडाउन व घर पहुंचने में ही खर्च हो गए। किसी के परिवार में विवाह योग्य बहन तो किसी के छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई का खर्च। यदि किसी के घर कोई बीमार है तो दवा का खर्च अलग से। अब जिम्मेदारियों का बोझ ले जिंदगी की गाड़ी कैसे खींची जाए।

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कुछ ऐसी ही उधेड़बुन में ओडिशा के क्योंझर से लौटे बांगुडदा के मजदूरों को इसकी चिता सता रही है। कोरोना संकट के कारण बड़ी संख्या में प्रवासी अपने गांव लौट रहे हैं। गांव लौट रहे प्रवासी मजदूरों की क्वारंटाइन पूरा होने के बाद घर वापसी होने लगी है।

पटमदा प्रखंड के बांगुड़दा स्कूल में क्वारंटाइन पूरा होने के बाद कई मजदूरों को घर भेज दिया गया है। इनमें कई मजदूरों का ना जॉब कार्ड है, ना वोटर कार्ड है और ना आधार कार्ड। ऐसे में उनके सामने रोजगार के लिए समस्या उत्पन्न हो सकती है।

चिटाईडीह के रहने वाले बलराम रजवाड़, दिलीप रजवाड़, जगबंधु रजवाड और धनंजय रजवाड़ ने बताया कि हम लोगों को गांव आए एक सप्ताह से अधिक हो गया है। अबतक परिवार के अन्य सदस्यों पर आश्रित हैं, लेकिन कब तक ऐसा चलेगा। पुश्तैनी जमीन है, लेकिन इससे परिवार का गुजर-बसर संभव नहीं है। परिवार बढ़ने के साथ जमीन का बंटवारा होता गया और हिस्से की जमीन कम होती गई।

बलराम रजवाड़ ने बताया कि उनके पास जॉब कार्ड है, लेकिन उसमें अधिकतम सौ दिनों तक ही काम मिल सकता है। यदि सौ दिन काम मिल भी गया तो भी बाकि के दिन बेकार बैठकर ही गुजारना पड़ेगा। मनरेगा में भी एक परिवार से केवल एक व्यक्ति को ही रोजगार देने की बात कही जा रही है। उन्होंने बताया कि ओडिशा में वे सिविल कंस्ट्रक्शन का काम करते थे।

दिलीप रजवाड़ ने कहा कि उन्हें झारखंड सरकार पर भरोसा है। सरकार हर प्रवासी मजदूर को उनके दक्षता के अनुसार रोजगार देने का वादा किया है। सरकार अगर रोजगार मुहैया कराती है तो ठीक नहीं तो बेकार बैठने से अच्छा है कि स्थिति सामान्य होने पर फिर दूसरे प्रदेशों की ओर रुख किया जाएगा।

बांगुडदा के कालिदी पाडा के राजेश कालिदी भी रोजगार के लिए ओडिशा गया था। बांगुडदा में उसका ना जॉब कार्ड है और ना वोटर। ऐसे में सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए उसे परेशानी होगी। यदि सरकार की ओर से रोजगार की व्यवस्था की जाएगी तो गांव में ही रहेंगे। अब दोबारा परदेश नहीं जाएंगे।

आंकड़े की बात करें तो अबतक पटमदा प्रखंड क्षेत्र के 1497 प्रवासी मजदूरों की वापसी हुई है। इनमें से कुल 638 मजदूर सरकारी क्वारंटाइन में हैं। प्रखंड विकास पदाधिकारी शंकराचार्य सामड ने बताया कि मजदूरों का सर्वे किया जा रहा है। जो मनरेगा के तहत काम करने के इच्छुक हैं उनका जॉब कार्ड बनाया जाएगा। बाकी मजदूरों को दक्षता के अनुसार रोजगार उपलब्ध कराने की कोशिश जा रही है।


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