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बुद्धिजीवियों की राय : सरकार दे रही अवैध खनन को प्रोत्साहन, तो कैसे होगा संरक्षण Jamahsepur News

खनन माफियाओं द्वारा प्राकृतिक संसाधन के नुकसान पहुंचाने पर बुद्धिजीवियों ने रखे विचार। कहा- रकार दे रही अवैध खनन को प्रोत्साहन तो कैसे होगा संरक्षण।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Fri, 27 Dec 2019 04:36 PM (IST)Updated: Sat, 28 Dec 2019 09:25 AM (IST)
बुद्धिजीवियों की राय : सरकार दे रही अवैध खनन को प्रोत्साहन, तो कैसे होगा संरक्षण Jamahsepur News
बुद्धिजीवियों की राय : सरकार दे रही अवैध खनन को प्रोत्साहन, तो कैसे होगा संरक्षण Jamahsepur News

जमशेदपुर, जासं।  खनन माफिया प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान कर रहे हैं, यह सही है, लेकिन यह रुकेगा कैसे? जब सरकार ही अवैध खनन को प्रोत्साहन दे रही है, तो प्राकृतिक संपदा का संरक्षण कैसे होगा। ये बातें दैनिक जागरण कार्यालय में हुई परिचर्चा के दौरान शहर के बुद्धिजीवियों ने कही।

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इसमें यह बात सामने आई कि खनन विभाग अवैध उत्पाद पर जुर्माने के रूप में दोगुनी राशि लेकर चालान बना देता है। इस चालान के आधार पर कोषागार (ट्रेजरी) बिल का भुगतान भी कर देता है। ऐसे में जब सिर्फ शुल्क देकर अवैध खनन उत्पाद वैध हो जाता है, तो कोई क्यों नियम-कानून की पेचीदगी में फंसकर लाइसेंस लेना चाहेगा। इससे तो ठेकेदार या कारोबारी बेखौफ होकर कहीं से भी गिट्टी, खनिज पदार्थ आदि खरीद लेता है। उसने जुर्माना के रूप में जो राशि विभाग को दिया है, वह उसे ग्राहक से मिल जाता है। जब तक सरकार यह नियम नहीं बदलेगी, अवैध खनन बंद नहीं होगा। वहीं जिन लोगों के पास खनन पट्टा है, वह आवंटित भूखंड या खनन क्षेत्र से आसपास की अतिरिक्त जमीन पर खोदाई करता है।

ये भी है पेंच

चूंकि खनन क्षेत्र घने जंगलों में होते हैं, इसलिए सरकारी अधिकारी वहां जाते ही नहीं। इसकी वजह से उन्हें इस बात का पता ही नहीं चलता कि कौन अतिरिक्त जमीन पर खनन कर रहा है, कौन नहीं। खनन ठेकेदार जहां खोदाई करते हैं, वे बाद में उस जमीन पर मिट्टी नहीं भरते हैं। काटे गए पेड़ के बदले पौधे नहीं लगाते हैं, क्योंकि उन्हें इससे मतलब नहीं होता है। वन विभाग के अधिकारी भी नियमित जांच नहीं करते हैं। जब तक वे कार्रवाई करते हैं, अवैध खनन करने वाला ठेकेदार वहां से निकल जाता है।

घटते वन क्षेेत्र के लिए वन विभाग जिम्‍मेदार  

खनन क्षेत्र में घटते वन क्षेत्र के लिए सीधे-सीधे वन विभाग जिम्मेदार है। जहां तक नैतिकता की बात है तो खनन ठेकेदार से विभागीय तंत्र इतनी राशि वसूल लेता है कि उसे खोदी गई जमीन पर मिट्टी भरना और पेड़ लगाना घाटे का सौदा लगता है। बड़ी कंपनियां बहुत हद तक ये काम करती हैं, लेकिन इसकी उम्मीद अवैध खनन करने वालों से नहीं की जा सकती। लिहाजा प्राकृतिक संपदा को नष्ट होने से बचाने या संरक्षण के लिए सरकार को पहले अपने विभागों को दुरुस्त करना होगा। 

इन्होंने रखे विचार : विकास सिंह, छोटेलाल सिंह, रामकुमार कुशवाहा, संदीप सिंह, सुशील शर्मा, उमाशंकर प्रसाद सिंह, हेमंत सिंह, मनोज कुमार सिंह व नरेश कुमार। 


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