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गांव में इलाज नहीं, सरकारी सिस्टम निगल रहा बच्चों की जिंदगी Jamshedpur News

संसाधनों की कमी के कारण स्वास्थ्य केंद्र बच्चों को तुरंत एमजीएम अस्पताल रेफर कर देते हैं । यहां आते-आते देर हो जाती है। बच्‍चों को बचाना मुश्‍किल हो जाता है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 08 Jan 2020 01:29 PM (IST)Updated: Wed, 08 Jan 2020 01:29 PM (IST)
गांव में इलाज नहीं, सरकारी सिस्टम निगल रहा बच्चों की जिंदगी Jamshedpur News
गांव में इलाज नहीं, सरकारी सिस्टम निगल रहा बच्चों की जिंदगी Jamshedpur News

जमशेदपुर, जासं। पूर्वी सिंहभूम जिले के गांवों में मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल सुदर्शन सबर की मौत खोल रही है। मुसाबनी के पाथरगोड़ा के टुमांगकोचा गांव निवासी जीवन सबर के चार माह के पुत्र सुदर्शन सबर की तबीयत तीन जनवरी को बिगड़ी। परिजन करीब दस किलोमीटर दूर केंदाडीह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) ले गए। वहां से मरीज को घाटशिला अनुमंडल अस्पताल भेजा दिया गया। वहां पर भी इलाज की सुविधा नहीं होने के कारण महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर कर दिया गया।

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करीब 65 किलोमीटर सफर कर यहां आने के कुछ ही देर के बाद बच्चे ने दम तोड़ दिया। चार जनवरी को दाह-संस्कार के बाद से घर में मातम पसरा है। मां-बाप का रो-रोकर बुरा हाल है। मां रायमती सबर कहती हैं- अगर मेरे लाल को सही समय पर इलाज मिल गया होता तो आज जान बच गई होती। उसका वजन भले ही थोड़ा कम था पर, चेहरा खिलखिला रहा था। मां बार-बार रट लगा रही कि मेरे बच्चे को सरकारी सिस्टम ने निगल लिया। रायमती के दर्द को समझा जा सकता है। सुदर्शन पहला बेटा था। पूर्वी सिंहभूम में बच्चों की मौत बड़ी समस्या बनकर उभरी है। इसके तह में जाने से कई खामियां उजागर होती हैं, जहां पर विशेष रूप से सुधार की जरूरत है।

स्वास्थ्य केंद्रों पर संसाधन न डॉक्टर

स्वास्थ्य केंद्रों पर अगर डॉक्टर व नर्स ही नहीं होंगे तो मरीज किसके पास जाएंगे। संसाधन की भी कमी है। इन सारी खामियों का नतीजा है कि कोल्हान क्षेत्र के सबसे बड़े एमजीएम अस्पताल में बच्चों की मौत लगातार हो रही है। एमजीएम अस्पताल को छोड़ दिया जाए तो पूर्वी सिंहभूम जिले के किसी भी अस्पताल में एनआइसीयू (नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट) की सुविधा नहीं है। ऐसे में अगर बच्चों की स्थिति थोड़ी भी बिगड़ती है तो एमजीएम अस्पताल रेफर कर दिए जाते हैं। यहां पर लाते-लाते बच्चों की मौत हो जाती है।

35 फीसद मामले आते हैैं एमजीएम अस्पताल

गांवों में इलाज की सुविधा नहीं होने के कारण हर माह करीब 35 फीसद बच्चे एमजीएम अस्पताल रेफर कर दिए जाते हैं। जुगसलाई स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में हर माह करीब 130 से 150 प्रसव होता है। इसमें करीब 35 फीसद की स्थिति गंभीर होती है, जिन्हें रेफर करना पड़ता है। जिले में कुल नौ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। हर जगह से कमोवेश इसी अनुपात में बच्चे आते हैैं। वहीं कोल्हान के सबसे बड़े अस्पताल होने के नाते एमजीएम पर पहले से ही लोड अधिक रहा है। फिलहाल छह वार्मर पर 18 बच्चे का इलाज चल रहा है और करीब आधा दर्जन वेटिंग में हैैं। ऐेसे मेंं बच्चों की जान बचाना काफी मुश्किल होता है।

68 फीसद सबर बच्चे अंडरवेट 

पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क (पीएचआरएन) की ओर से कराए गए एक शोध के अनुसार, झारखंड में शून्य से पांच वर्ष के सबर समुदाय के 68 फीसद बच्चे अंडरवेट (औसत वजन से कम) हैैं। जबकि, इस मामले में झारखंड का औसत 47.80 फीसद है। वहीं, सबर समुदाय के 56 फीसद बच्चों में नाटापन की समस्या है, जो क्रोनिक हंगर के कारण होती है। 42 फीसद बच्चों में दुबलापन है, यानी उन्हें अचानक खाना मिलना बंद हो जाता है।

उप-स्वास्थ्य केंद्रों पर चिकित्सकों की तैनाती 

स्थान  - स्वीकृत -  कार्यरत

  • उपस्वास्थ्य केंद्र, घाटशिला - 14 - 04
  • सीएचसी, जुगसलाई - 07 - 04
  • पीएचसी, घोड़ाबांधा - 02 - 00
  • पीएचसी, मानपुर -  02 - 00
  • पीएचसी, मुसाबनी - 07 - 05
  • सीएचसी, डुमरिया - 07 - 02
  • सीएचसी, धालभूमगढ़  - 07 - 03
  • सीएचसी, चाकुलिया -  07 - 04
  • सीएचसी, बहरागोड़ा - 07 - 04 
  • सीएचसी, पटमदा - 07 - 03

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