पैसों के आगे बच्चों की सुरक्षा ताक पर
शहर के 60 प्रमुख निजी स्कूलों के लगभग
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : शहर के 60 प्रमुख निजी स्कूलों के लगभग 80 हजार छात्रों की सुरक्षा ताक पर है। इनमें से 65 हजार बच्चे ऑटो और वैन के भरोसे ही निर्भर हैं। इन स्कूली वाहनों में सुरक्षा नियम ताक पर है। ओवर लोडिंग के कारण बच्चों की जान जोखिम में होती है। प्रशासन जब सख्ती करता है तो ओवरलोडिंग रुकती है। स्कूली वाहन मालिक प्रशासन की सख्ती के बहाने अपना किराया बढ़ा देते हैं, लेकिन ओवरलोडिंग का बेताल फिर उसी डाल पर बैठ जाता है। लगातार इन वाहनों की निगरानी न होने से बच्चे को ठूंस-ठूंस कर भर दिए जाते हैं। यहां तक कि वैन के पीछे सामान रखने की जगह पर भी बच्चों को बैठा दिया जाता है। इन वाहनों के चलने के दौरान शहर में जाम जैसा नजारा दिखता है। स्कूली वैन, ऑटो चालक क्षमता से अधिक बच्चों को ढोते हैं, जिससे कभी भी हादसा हो सकता है।
अभिभावकों का कहना है कि बच्चों की सुरक्षा और पढ़ाई के नुकसान से चालकों को कोई लेना-देना नहीं है। कुछ एक स्कूली वाहनों को छोड़ दिया जाय तो अधिकतर वाहनों में जाली तक नहीं लगी हुई है। इन स्कूली वाहनों को लेकर झारखंड हाई कोर्ट भी कई बार टिप्पणी कर चुका है, लेकिन इसका कोई फायदा छात्रों और बच्चों पर होता नहीं दिख रहा है।
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ये हैं स्कूल वाहन चलाने के प्रमुख नियम
- वाहन के सामने और पीछे स्कूल बस अंकित होना चाहिए
- किराए के वाहन पर ऑन स्कूल ड्यूटी प्रमुख रूप से अंकित हो
- निर्धारित क्षमता से अधिक संख्या में बच्चे नहीं बैठाए जाएं
- प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स होना अति आवश्यक
- स्कूल बस की खिड़कियों में हॉरिजंटल ग्रिल लगी हो
- अग्निशमन की उपयुक्त व्यवस्था हो
- बस पर स्कूल का नाम और टेलीफोन नंबर लिखा होना चाहिए
- चालक को कम से कम पाच साल का भारी वाहन चलाने का अनुभव हो और साथ ही चालक का पूर्व में यातायात उल्लंघन का कोई इतिहास न हो
- चालक के अतिरिक्त वाहन में एक अन्य उपयुक्त योग्य व्यक्ति सहायतार्थ के लिए उपलब्ध रहे
- बस का दरवाजा अच्छी तरह से बंद होना आवश्यक है
- बच्चों के स्कूल बैग सुरक्षित रखने की व्यवस्था हो
- बस में स्कूल का कोई प्रतिनिधि या फिर टीचर होना चाहिए
- स्कूल बस का रंग गोल्डेन येलो विद ब्राउन या ब्लू लाइनिंग में होना चाहिए
- बस की सीटें आरामदायक हों, पावदान की उचित व्यवस्था हो व आपदा की स्थिति में दो अलग से गेट की व्यवस्था हो
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कंडम वाहनों में ढोये जाते हैं स्कूली बच्चे
जमशेदपुर : जमशेदपुर के निजी स्कूलों में बच्चों को कंडम वाहनों से भी ढोया जाता है। वे अधिकृत रूप से कमजोर घोषित हो चुके होते हैं। इसके बावजूद शहर 100 से ऐसे कंडम वाहन है जिसमें बच्चों को स्कूल ले जाने और लाने का काम किया जाता है।
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एक किलोमीटर की दूरी पर भाड़ा में 400 रुपया का अंतर
वाहन चालक मनमाना भाड़ा भी वसूलते हैं। मात्र एक किलोमीटर की दूरी में भाड़ा का अंतर 300-400 रुपया हो जाता है।
ऐसा है किराये का खेल
-बागबेड़ा से डीएवी बिष्टुपुर का किराया 900 रुपया और इससे एक किलोमीटर की दूरी पर स्कूल के लिए 1220 रुपया देना पड़ता है।
-जुगसलाई से नरभेराम हंसराज इंग्लिश स्कूल का भाड़ा 700 रुपया है, वहीं राजेंद्र विद्यालय का भाड़ा 1000 रुपया है। जबकि नरभेराम से राजेंद्र विद्यालय की दूरी एक किलोमीटर है।
-मानगो से टैगोर अकादमी साकची का भाड़ा 700 से 800 रुपया। वहीं राजेंद्र विद्यालय का भाड़ा 1000 रुपया।
-जुगसलाई से डीएवी बिष्टुपुर 700 रुपया। वहीं डीबीएमएस कदमा का भाड़ा 1000 रुपया।
-सोनारी से सेक्रेड हार्ट कान्वेंट का भाड़ा 700 से 800 रुपया, वहीं एमएनपीएस का भाड़ा 1000 रुपया।
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निजी स्कूल की राह पर ऑटो संचालक
365 दिन में 145 दिन स्कूल में छुट्टी रहती है यानी कुल 225 दिन कक्षाएं होती है। अगर यह देखा जाय तो इस हिसाब से प्रत्येक वर्ष 5000 रुपया अभिभावकों को ऑटो संचालक को अतिरिक्त भुगतान करना पड़ता है। ऑटो संचालकों का कहना है कि जब स्कूल गर्मी की छुट्टी और अन्य छुट्टियों की राशि लेते हैं तो हम क्यों नहीं ले सकते हैं। इसका जवाब अभिभावकों के पास भी नहीं है।
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अब तक हो चुकी है कई घटनाएं
-10 जुलाई 2015, टेल्को मस्जित के पास स्कूली वैन से गिरा बच्चा, दो छात्र के सिर पर लगी चोट।
-17 अप्रैल 2016 टेल्को के खंड़गाझाड चौक के पास स्कूली वाहन पलटा, एक दर्जन बच्चे घायल।
-16 सितंबर 2016, टेल्को में स्कूली वैन पलटा सात बच्चे घायल।
-22 सितंबर 2016, जुगसलाई फाटक के समीप वैन की ब्रेक लगाते ही सड़क पर डिक्की से गिरे दो छात्र, हुए घायल
-22 सितंबर 2016, सिदगोड़ा में वैन से टकराई बाइक, छह घायल
-27 फरवरी, 2017 : जुगसलाई पिगमेंट गेट के पास ओवरटेक करने की होड में दो ऑटो में टक्कर। एक छात्र घायल।
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कोट
-डीएवी स्कूल के बार स्कूल बसों की संख्या सबसे ज्यादा है। ऑटों व वैन चालकों से बार-बार सुरक्षा की बारीकियों को भी समझाया जाता है। अभिभावकों को भी स्कूल बस से सफर करने के लिए बोला जाता है। स्कूली वाहनों पर ट्रैफिक विभाग सही से निगरानी करें तो बच्चों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ होना बंद होगा।
-एसके लूथरा, क्षेत्रीय निदेशक, डीएवी स्कूल्स।
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-हम काफी समझाते हैं स्कूली वाहन संचालकों को। जब प्रशासन सख्त होता है तभी नियमों का पालन किया जाता है, उसके बाद फिर वहीं स्थिति होती है। कम से कम सुबह और छुट्टी के समय ट्रैफिक विभाग को इन वाहनों पर नजर रखनी होगी, तभी कुछ बात बनेगी।
-स्वर्णा मिश्रा, प्राचार्या, दयानंद पब्लिक स्कूल साकची।
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-ऑटो वालों को कुछ कहिये तो उसका सीधा जवाब होता है, आप अपने बच्चे को मत भेजिये। हमारी मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं स्कूली वाहन के संचालक। हमारे पास उतना समय नहीं है हम रोज बच्चों को स्कूल छोड़कर आये और लेकर आये।
- नितिन कुमार, अभिभावक।
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-अधिक व्यस्तता के कारण ओवरलोडिंग पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे हमारी ओर से ओवरलोडिंग न करने की हिदायत दी गई है। इसी शर्त पर भाड़ा भी बढ़ा है। इसमें सुधार का प्रयास करेंगे।
-संतोष मंडल, अध्यक्ष, स्कूली वाहन सेवा संचालक समिति, जमशेदपुर।
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-बार-बार प्रशासन से अनुरोध और आंदोलन के बावजूद स्कूली वाहनों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। सभी निजी स्कूलों को स्कूल बस छात्र संख्या के अनुसार रखना अनिवार्य है। बोर्ड से मान्यता भी इसी आधार पर मिलती है। इसके बावजूद स्कूल इस और ध्यान नहीं देते हैं। अभिभावक मजबूरी में अपने बच्चों को ऑटो से भेजते हैं, जहां सुरक्षा नियमों का कोई पालन नहीं होता है। -डॉ. उमेश कुमार, अध्यक्ष, अभिभावक संघ, जमशेदपुर।