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नेताजी पर हुआ था हमला, कोंडल राव पैदल लेकर गए थे चक्रधरपुर तक

टाटा स्टील (तब टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड) में एक जून 1928 को तीसरी बार हड़ताल हो गई थी। सीएफ एंड्रूज के जाने के बाद तब जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन नेतृत्व विहीन हो गया था।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 07:00 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 07:00 AM (IST)
नेताजी पर हुआ था हमला, कोंडल राव पैदल लेकर गए थे चक्रधरपुर तक
नेताजी पर हुआ था हमला, कोंडल राव पैदल लेकर गए थे चक्रधरपुर तक

जासं, जमशेदपुर : टाटा स्टील (तब टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड) में एक जून 1928 को तीसरी बार हड़ताल हो गई थी। सीएफ एंड्रूज के जाने के बाद तब जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन नेतृत्व विहीन हो गया था। ऐसे में कंपनी के कर्मचारी कोलकाता जाकर सुभाषचंद्र बोस से संपर्क किए। कर्मचारियों के कहने पर 18 अगस्त 1928 को नेताजी जमशेदपुर आए और 20 अगस्त 1928 को उन्हें सर्वसम्मति से यूनियन का अध्यक्ष चुना गया। उनके नेतृत्व में ही तीन माह 12 दिन चली हड़ताल 12 सितंबर 1928 को समाप्त हुई। लेकिन वर्ष 1936 में ठंड के समय नेताजी कंपनी प्रबंधन (तब अधिकतर अंग्रेज अधिकारी थे) के मना करने के बावजूद बिष्टुपुर स्थित जी टाउन मैदान मे शाम के समय सामूहिक जनसभा कर रहे थे।

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इस दौरान कुछ असामाजिक तत्वों ने लाठी-डंडे से उन पर हमला कर दिया। तब सिख समाज, बंगाली समाज और दक्षिण भारतीय समाज के कई सदस्य नेताजी के कट्टर समर्थक थे। जब आसामजिक तत्वों ने नेताजी पर हमला किया तो उनके कट्टर समर्थकों ने उन्हें घेर लिया। लेकिन इसमें तीन लोगों की जान चली गई और 20 लोग घायल हो गए। इसके बावजूद उनके समर्थकों ने नेताजी को वहां से बचाकर भागने में सफल रहे। अंग्रेज सैनिक नेताजी को ढूढ़ने के लिए बिष्टुपुर के हर घर, हर क्वार्टर की तलाशी ले रहे थे। ऐसे में बिष्टुपुर ओ रोड स्थित क्वार्टर में रहने वाले एम कोंडल राव (यूनियन के पूर्व उपाध्यक्ष एम भास्कर राव के दादा) ने नेताजी को अपने यहां पनाह दी। अंग्रेज सैनिकों से नेताजी की पहचान को छिपाने के लिए उन्हें कंबल ओढ़ाकर रात के अंधेरे में कोंडल राव छिपते-छिपाते कुछ कट्टर समर्थकों के साथ रेलवे लाइन की ओर भागे। सभी को मालूम था कि यदि अंग्रेज सैनिकों के हाथ आए तो उन्हें मारकर नेताजी को गिरफ्तार कर लेंगे। लेकिन अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए सभी समर्थक रात के अंधेरे में बियाबान जंगल से होते हुए कट्टर समर्थक नेताजी को पैदल ही रेल लाइन के किनारे-किनारे चलाते हुए चक्रधरपुर स्टेशन ले गए। जहां से नेताजी कटक होते हुए रंगून के लिए रवाना हो गए। जाने से पहले नेताजी ने बता दिया था कि वे अब स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सहभागिता देने के लिए लौटकर जमशेदपुर नहीं आ पाएंगे। जिसके कारण कई कर्मचारी खूब रोए और उनके कुछ कट्टर समर्थक तो नहीं लौटे और उनके साथ ही आजाद हिद फौज में शामिल होने चले गए।


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