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आज ही के दिन नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अस्थायी सरकार कर दी थी घोषित

Netaji Subhash Chandra Bose सुभाष संस्कृति परिषद व मिलानी की ओर से गुरुवार को आइएनए दिवस मनाया जा रहा है। इस मौके पर दोनों संस्था के अध्यक्ष व देश में चर्मशिल्प के अग्रणी ब्रांड श्रीलेदर्स के मालिक शेखर डे ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को याद किया।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Thu, 21 Oct 2021 05:56 PM (IST)Updated: Thu, 21 Oct 2021 05:56 PM (IST)
आज ही के दिन नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अस्थायी सरकार कर दी थी घोषित
आज ही के दिन 1943 में सिंगापुर के सेंट्रल हॉल में नेताजी ने मार्मिक भाषण दिया था।

जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। सुभाष संस्कृति परिषद व मिलानी की ओर से गुरुवार को आइएनए दिवस मनाया जा रहा है। इस मौके पर दोनों संस्था के अध्यक्ष व देश में चर्मशिल्प के अग्रणी ब्रांड श्रीलेदर्स के मालिक शेखर डे ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को याद किया। उन्होंने कहा कि आज ही के दिन 1943 में सिंगापुर के सेंट्रल हॉल में नेताजी ने मार्मिक भाषण दिया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं सुभाष चन्द्र बोस ईश्वर की सौगंध खाकर यह वादा करता हूं कि अपने देश ओर यहां की 38 करोड़ जनता को आजाद करके ही दम लूंगा और अपने अंतिम सांस तक इस स्वतंत्रता की लड़ाई को जारी रखूंगा।

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पूरी दुनिया के प्रतिनिधियों के सामने जब सुभाष चंद्र बोस ने इसे पढ़ा, तब पढ़ते-पढ़ते कई बार उनका गला रूंध गया था। आंखें नम हो गई थीं। उन्होंने उसी समय भारत के अस्थायी सरकार की घोषणा कर दी थी। जापान ने तो उस समय ही इस सरकार को मान्यता देने की घोषणा कर दी थी, जिसके बाद इटली, चीन, बर्मा, थाईलैंड, क्रोएशिया और फिलीपींस आदि देश ने भी उनको अपना समर्थन दे दिया। 30 दिसंबर 1943 का वह दिन कितना पवित्र और ऐतिहासिक था, जब सुभाष चंद्र बोस ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह की उस भूमि पर अपना प्यारा तिरंगा फहराया था। तब यह द्वीप समूह जापान के कब्जे में था। 29 दिसम्बर सन् 1943 की तारीख थी। उक्त द्वीपसमूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के समक्ष अध्यक्ष के नेता के हाईकमान का आदेश मिला कि वे एक राष्ट्रपति के सम्मान के योग्य तैयारी रखें। खबर थी कि एक महान देश के प्रथम स्वाधीन सरकार के प्रथम राष्ट्राध्यक्ष आने वाले हैं।

द्वीप वासी थे उलझन में

द्वीपवासी उलझन में थे कि भला कौन से देश के कौन से राष्ट्राध्यक्ष आने वाले हैं। शाम होते-होते अधिकारिक तौर पर सबको पता चल गया कि अंडमान निकोबार के स्वतंत्रता की घोषणा और सत्ता ग्रहण करने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस आने वाले हैं। इस खुशी में लोग एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे। चारों तरफ हर्षोल्लास और खुशियों की ऐसी लहर उठी जिसके सामने समुंदर की उंची लहरें भी छोटी पड़ गई। उसी दिन स्वप्नदर्शी सुभाष चंद्र बोस ने बड़े ही शौक से दोनों द्वीपों को नया भारतीय नाम दिया। शहीद द्वीप और स्वराज द्वीप। राजनीति के भंवरल में ये दोनों ही नाम कहीं गुम हो गए और तत्कालीन राजनेताओं और अधिकारियों ने देश इतिहास में उन स्वर्णिम पृष्ठों को जोड़ना भी जरूरी नहीं समझा। सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी के लिए जो राह चुनी थी, उस पर चलकर आज अगर हमने आजादी पाई होती तो उस पर हमारा सच्चा और पूर्ण अधिकार होता। इतिहास में उदाहरण भरे पड़े हैं।

कमालपाशा ने तुर्की और गैरीबोल्डी ने इटली की आजादी के लिए कोई समझौता नहीं किया, बल्कि संषर्घ कर उनसे अपनी आजादी छीन ली। हम सभी अगर अपने मातृभूमि की आजादी के लिए कोई समझौता नहीं करते तो इस भीख की आजादी को स्वीकार नहीं करते। सुभाष ने कहा था कि भूख प्यास और मृत्यु की आग में तपकर हम अपनी आजादी अंग्रेजों से छीन लेंगे। हम अगर इस तरह तपे होते तो खरा साबित होते। वर्तमान में देश और समाज में जो चारित्रिक पतन और अंधायुग व्याप्त है, वह भी हमें देखना नहीं पड़ता। नैतिक मूल्यों का हनन कर प्राप्त की हुई खुशी या आबादी वास्तव में उतना दुख नहीं देती जितना अच्छा चरित्र और सुविचारों की दृढ़ता से हासिल होती है। इतिहास के दफन पन्नों में आज के दिन उन बातों को याद करना वास्तव में सुभाषचंद्र बोस की दृढ़ विचारधारा और निष्पक्ष राजनीति को सम्मान देना है।


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