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विकट परिस्थिति में बच्चे क्यों खो देते संयम, जानिए खास वजह

आत्महत्या से बचने के तीन सूत्र हैं एडुकेट, इम्पावर व इवोल्व। बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत बनाएं, ताकि उनमें संघर्ष की क्षमता विकसित हो।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 01:04 PM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 01:04 PM (IST)
विकट परिस्थिति में बच्चे क्यों खो देते संयम, जानिए खास वजह
विकट परिस्थिति में बच्चे क्यों खो देते संयम, जानिए खास वजह

जमशेदपुर,जासं। हम जब छोटे थे तो छोटी से छोटी चीजों को पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता था। छोटी-मोटी गलती के लिए भी कम से कम डांट अवश्य पड़ती थी। आज ऐसा नहीं होता। बच्चों को हम फूल की तरह पालते हैं। मुंह खोलते ही हर चीज उपलब्ध करा देते हैं। ना कोई मान-मनौव्वल ना डांट-फटकार। ऐसे ही बच्चे बड़े होकर जब किसी विकट परिस्थिति में पड़ते हैं तो संयम खो देते हैं। अंदर ही अंदर घुटने लगते हैं और इनमें से कुछ परीक्षा में नंबर कम आने पर अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं। इसलिए आप बच्चों को ज्यादा प्यार-दुलार देकर गुनाह कर रहे हैं।

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आत्महत्या निवारण पर चल रहे राष्ट्रीय सम्मेलन में विशेषज्ञों ने यह विचार रखे। जमशेदपुर की आत्महत्या निवारण केंद्र जीवन की मेजबानी में हो रहे सम्मेलन में हैदराबाद से आए बालाजी, कोच्चि के राजेश पिल्लई, अहमदाबाद के नागेश सूद व कोलकाता की श्रीरंजनी जोशी ने आत्महत्या के कारण व उसके समाधान पर अपने अनुभव साझा किए। 

आत्महत्या से बचने के तीन सूत्र

बालाजी ने कहा कि आत्महत्या से बचने के तीन सूत्र हैं एडुकेट, इम्पावर व इवोल्व। बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत बनाएं, ताकि उनमें संघर्ष की क्षमता विकसित हो। कोई चीज आसानी से उपलब्ध ना कराएं, जिससे उन्हें उस वस्तु की कीमत या मूल्य का पता ही नहीं चले। उससे भी बड़ी बात है कि कठिन परिस्थिति में भी खुश रहने की आदत डालें। जब आदमी खुश होता है, तो कई चीजें भूल जाता है। लेकिन जब दुखी होता है तो कई अनावश्यक पुरानी बातें भी ताजा हो जाती हैं। वह धीरे-धीरे अवसाद में चला जाता है।

महाराष्ट्र में सबसे आत्महत्या 

 बालाजी ने बताया कि आत्महत्या के मामले सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में होते हैं, तो इसके बाद तेलंगाना और आंध्रप्रदेश का स्थान आता है। बी-फ्रेंडर्स के अध्यक्ष राजेश पिल्लई ने बताया कि 2002 में केरल में 10,000 लोगों ने आत्महत्या की थी। वार्षिक दर लगभग यही थी, लेकिन यह घटते-घटते वर्ष 2016 में 6700 हो गई। अब भी बहुत काम करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि देश भर में आत्महत्या निवारण के लिए काम कर रही संस्था बी-फ्रेंडर्स की 16 शहरों में शाखा चल रही है। इसमें 750 स्वयंसेवी काम कर रहे हैं। गत वर्ष देश भर में हमने 1.5 लाख फोन कॉल रिसीव किए थे, जिसमें 30 फीसद लोग आत्महत्या के लिए उतारू थे।

सिर्फ सुनने से टाली जा सकती आत्महत्या

बी-फ्रेंडर्स की कोषाध्यक्ष व कोलकाता से आईं श्रीरंजनी जोशी ने कहा कि हम निश्शुल्क सेवा देते हैं। हमें पीड़ित व्यक्ति जब फोन करता है तो हम सिर्फ उसकी बात सुनते हैं। ना कोई सलाह देते हैं, ना उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि या बैकग्राउंड पूछते हैं। उस व्यक्ति की पहचान भी गोपनीय रखते हैं। यकीन मानिए सिर्फ पीड़ित व्यक्ति की बात सुनने से उसका मन हल्का हो जाता है। आज की बड़ी समस्या है कि किसी की बात सुनने वाला कोई नहीं है। कई बार संकोच या शर्म से भी कोई किसी को अपनी पीड़ा नहीं सुनाता है।


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