Mother Teresa Birthday : मदर टेरेसा दो बार आई थीं जमशेदपुर, रसिकभाई वसानी को कहा था ‘भगवान के समान हैं आप’
Mother Teresa Birth Anniversary ममता की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा को भला कौन नहीं जानता। भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया उन्हें हमेशा नमन करती है। मरणोपरांत संत की उपाधि हासिल करने वाली मदर टेरेसा का जन्म आज ही दिन हुआ था। आइए उनके बारे में जानते हैं...
जमशेदपुर, जासं। ममता की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा दो बार जमशेदपुर आई थीं। पहली बार 1964 में तो दूसरी बार 1994 में आईं। ये दोनों मौके खास थे। जमशेदपुरवासियों को मदर का यह आगमन हमेशा याद रहेगा। दूसरी यात्रा में उन्होंने रसिकभाई वसानी देखा था। कोलकाता जाकर मदर ने रसिकभाई को पत्र भेजा, जिसमें लिखा था ‘आप तो भगवान के समान हैं’, जानिए उन्होंने ऐसा क्यों कहा था। मदर टेरेसा का जन्म आज ही के दिन 26 अगस्त 1910 में अल्बानिया में हुआ था।
दरअसल, रसिकभाई वसानी जमशेदपुर के व्यवसायी थे, लेकिन उन्हें पूरे देश में महान जादूगर के रूप में जाना जाता था। वे स्कूली जीवन से ही जादू के खेल दिखाते थे। दूसरी बार मदर टेरेसा बाराद्वारी स्थित निर्मल हृदय के उद्घाटन समारोह में आई थीं। मंच पर टाटा स्टील के तत्कालीन प्रबंध निदेशक डा. जेजे ईरानी व उनकी पत्नी डेजी ईरानी थीं, तो आसपास शहरवासी और निर्मल हृदय के बेसहारे दीन-दुखियों की भीड़ थी। रसिक भाई ने मंच पर आकर जादू के कुछ खेल दिखाए, जिससे बार-बार माहौल में ठहाके और तालियां गूंज रही थी। मदर टेरेसा ने वहां तो कुछ नहीं कहा, लेकिन कोलकाता जाकर रसिकलाल वसानी को पत्र भेजा।
मदर टेरेसा ने पत्र में लिखा था
‘आप अपनी कला से मुरझाए चेहरों पर खुशी लाते हैं। यह ईश्वर का ही काम है, क्योंकि भगवान ने बाइबिल में कहा है कि आप मेरे भाई-बहनों की भलाई के लिए जो कुछ भी करते हैं, वह मेरे लिए ही किया हुआ काम है।’
टाटा स्टील ने 1962 में बर्मामाइंस में खोला था निर्मल हृदय
मदर टेरेसा जब पहली बार 1964 में टाटा स्टील के निमंंत्रण पर आई थीं। उस समय शहर में कुष्ठ रोगी काफी संख्या में थे, जो जहां-तहां सड़क किनारे रहते थे। यहां उनके इलाज की कोई अलग से व्यवस्था नहीं थी। टाटा स्टील ने मदर टेरेसा से आग्रह किया कि वे यहां भी कुष्ठ रोगियों के इलाज व देखभाल की व्यवस्था करें। कंपनी ने इसके लिए उन्हें बर्मामाइंस के मिल एरिया में तीन कमरे दिए। कमरा क्या था, टिन की छत और टिन के दरवाजे लगे थे। अंदर पुआल बिछाकर कुष्ठ रोगियों को रखा जाता था, जहां मदर की सहयोगी नन-सिस्टर उनकी देखभाल करती थीं। यह सिलसिला करीब 30 साल तक चला।
मदर टेरेसा ने निर्मल भवन का किया था उद्घाटन
इसी बीच बाराद्वारी (साकची) में टाटा स्टील ने मदर टेरेसा की संस्था निर्मल हृदय को भवन बनाकर दिया, जहां अस्थायी रूप से कुष्ठ रोगियों के लिए क्लीनिक भी चल रहा था। मदर टेरेसा नौ दिसंबर 1994 को इस भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल हुईं, इसके बाद वे यहां नहीं आईं। यहां से जाने के कुछ दिनों बाद मदर की तबीयत खराब रहने लगीं। करीब तीन साल बाद 5 सितंबर 1997 को कोलकाता में उनका निधन हो गया। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उत्तरी मेसिडोनिया स्थित स्कोप्जे में अल्बेनियाई परिवार में हुआ था।