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या हुसैन की सदाओं की गूंज के बीच घाट पर ठंडे हुए ताजिये

शहर में आशूर (10 मुहर्रम) का दिन शुक्त्रवार को गम के माहौल मे

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Sep 2018 12:10 PM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 12:10 PM (IST)
या हुसैन की सदाओं की गूंज के बीच घाट पर ठंडे हुए ताजिये
या हुसैन की सदाओं की गूंज के बीच घाट पर ठंडे हुए ताजिये

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : शहर में आशूर (10 मुहर्रम) का दिन शुक्त्रवार को गम के माहौल में अकीदत व एहतेराम के साथ मनाया गया। इस मौके पर मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में गम की चादर फैली रही। अकीदतमंदों ने अपने अपने तरीके से रसूल ए अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफा स को उनके नवासे इमाम हुसैन की शहादत का पुरसा दिया। मानगो में हुसैनी मोहल्ला स्थित इमामबाड़े से मजलिस के बाद अलम का जुलूस निकला। ये जुलूस कई इमामबाड़ों में घूमता हुआ वापस इमामबारगाह आकर खत्म हुआ। दोपहर को अस्त्र की नमाज के बाद अखाड़ों के जुलूस निकलने का सिलसिला शुरू हुआ जो शाम को मगरिब की अजान तक चला। इसमें निशान के साथ ही ढोल-नगाड़े कर्बला में इमाम हुसैन की फतेह का एलान कर रहे थे। साथ ही लाठी, तलवार आदि हथियारों के करतब दिखा कर बहादुरी का इजहार कर रहे थे। हर तरफ हुसैन-हुसैन की सदाएं गूंज रही थीं। धतकीडीह, न्यू रानीकुदर, रामदास भट्ठा, और जुगसलाई के अखाड़ों ने रात साढ़े नौ बजे जुलूस निकाला जो बिष्टुपुर पहुंचा। अमीर अखाड़े ने ताजिया का जुलूस निकाला। चूना शाह बाबा के इमामबाडे से ताजिया का जुलूस बिष्टुपुर कर्बला पहुंचा। कदमा, शास्त्री नगर, जुगसलाई आदि के ताजिया जुलूस बिष्टुपुर कर्बला, टेल्को के जुलूस हुडको डैम कर्बला, मानगो, साकची और गोलमुरी के ताजिया जुलूस साकची पंप हाउस कर्बला घाट पहुंचे। सोनारी से रौनक अखाड़े का ताजिया जुलूस निकला। टेल्को के बारीनगर से निकले साबरी चौक मुहर्रम कमेटी अखाड़ा के जुलूस का नेतृत्व ताज साबरी कर रहे थे। गोलमुरी अखाड़े का भी जुलूस पूरे अकीदत से उठा। घाट में अकीदतमंदों ने देर रात तक ताजिया और निशान के फूलों को ठंडा किया और कर्बला के शहीदों के लिए फातेहाख्वानी की। साकची पंप हाउस और बिष्टुपुर कर्बला घाट पर देर रात तक फातेहाख्वानी का दौर चला। यहा नौहाखानी और सीनाजनी भी हुई। महिलाओं ने भी घाटों पर आकर पैगंबर-ए-अकरम हजरत मुहम्मद मुस्तफा स. की बेटी जनाब फातेमा जहरा स. के बेटे इमाम हुसैन को खिराजे अकीदत पेश की। साकची के कर्बला घाट पर देर रात तक फातेहाखानी का सिलसिला चला।

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हरे लिबास में थे नौनिहाल

अखाड़े में बहुत से छोटे-छोटे बच्चे हरी पोशाक में थे। इमाम हुसैन के घराने बनी हाशिम का ड्रेस हरी पोशाक था। इसलिए मन्नत पूरी होने पर लोग अपने बच्चों को हरी पोशाक पहना कर जुलूस में शामिल कराते हैं। हरी पोशाक पहने हुए बच्चे इमाम बालों पर मन्नत के बाद पैदा हुए हैं।

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शाम-ए-गरीबा की मजलिस संपन्न

साकची में वेल्लार रोड स्थित हुसैनी मिशन और जाकिर नगर के शिया इमामबाड़े में शाम-ए-गरीबा की मजलिस हुई। इस मजलिस में मौलाना शाबान र अली ने इमाम हुसैन की शहादत के बाद यजीदी फौजों द्वारा उनके खैमों में आगजनी और लूटपाट करने का जिक्त्र किया गया। इसके पहले सुबह साकची में जुलूस निकला। ये मातमी जुलूस साकची गोलचक्कर तक गया। मोहनी रोड पर हुसैनी मिशन वेलफेयर सोसायटी की इमामबारगाह में भी शाम ए गरीबा की मजलिस हुई। नौ बजे नमाज-ए-आशूरा पढ़ी गई। -------------

हुसैन सा कोई या रब इमाम पैदा कर

घिरा है फिर तेरा काफिला यजीदों में, हुसैन सा कोई या रब इमाम पैदा कर। बिष्टुपुर कर्बला में शोहदा-ए-कर्बला कमेटी की तरफ से आशूर के दिन यही दुआ की गई। यहा दिन भर कुरआनख्वानी व फातेहाख्वानी हुई। अब्बास अंसारी और अनवर अली ने कहा कि हुसैन अ. और यजीद पलीद के बीच जंग आतंक व इंसानियत की जंग थी। अगर हुसैन अ. ने यजीद के आतंक का विरोध नहीं किया होता तो इंसानियत मर गई होती। अनवर अली ने दुआ में रवींद्र नाथ टैगोर के हुसैन अ. के बारे में कहे गए अल्फाज भी पढ़े कि इंसाफ को जिंदा रखने के लिए फौजों की जरूरत नहीं होती। फतेह कुर्बानिया देकर हासिल की जाती हैं। शाम को यहा भी शाम ए गरीबा का जिक्त्र हुआ।

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गाधी मैदान में जमा हुए अखाड़े

आजाद नगर का सितारा इस्लाम अखाड़ा और आजाद नगर रोड नंबर चार का आजाद अखाड़ा रात को गाधी मैदान पहुंचा। यहा निशान लगाए गए थे। गाधी मैदान में फातेहाख्वानी का सिलसिला देर रात तक चलता रहा। मैदान में शाम से ही अखाड़ों का प्रदर्शन देखने के लिए भारी संख्या में महिलाएं भी आई थीं।

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अकीदतमंदों में बंटा शरबत व लंगर

अखाड़ा वालों और अन्य अकीदतमंदों की सेवा के लिए गाधी मैदान के करीब आजाद नगर टेंपो स्टैंड में शिविर लगाया। यहा से सुबह से देर रात तक खिचड़ा और शरबत बाटा गया।इसके अलावा साकची, बिष्टुपुर, जुगसलाई, मानगो के अन्य स्थानों पर भी सुबह से शाम तक लंगर का दौर चला। जुलूस में लोग अकीदतमंदो को शरबत पिलाते रहे।

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10 मुहर्रम को रखा रोजा

मुहर्रम की दसवीं तारीख को मुसलमानों के एक वर्ग ने रोजा रखा। कुछ लोगों ने मुहर्रम की नवमी को भी रोजा रखा। शिया मुसलमानों ने भी ताजिया दफन होने तक खाना पानी छोड़ दिया था। ताजिया दफन होने के बाद आजादारों ने खाना खाया।


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