इस गांव के लोगों ने नहीं देखी है ट्रेन, मोबाइल इनके लिए अजूबा
इस गांव में किसी ने ट्रेन तक नहीं देखी है, सफर तो दूर की बात है। ग्रामीण पूरी तरह जंगल पर निर्भर हैं। इन्हें बिजली और मोबाइल नेटवर्क भी मुहैया नहीं है।
जमशेदपुर, जेएनएन। झारखंड के जरकी गांव को विकास का इंतजार है। 21वीं सदी के भारत के इस गांव के बाशिंदों के लिए ट्रेन और मोबाइल जैसी सुविधाएं आज भी किसी अजूबे से कम नहीं हैं।
रेलगाड़ी पर नहीं सवार हुआ इस गांव का कोई व्यक्ति
देश-दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ है झारखंड में जमशेदपुर शहर से 45 किलोमीटर दूर जरकी गांव। डेढ़ सौ की आबादी वाले इस गांव में किसी ने ट्रेन तक नहीं देखी है, सफर तो दूर की बात है। ग्रामीण पूरी तरह जंगल पर निर्भर हैं। इन्हें बिजली और मोबाइल नेटवर्क भी मुहैया नहीं है।
पीएम और सीएम का नाम नहीं जानते यहां के लोग
यहां के लोग प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक का नाम नहीं जानते हैं। करीब डेढ़ सौ की आबादी वाले इस जरकी गांव में आपको पहुंचने के लिए पथरीली सड़क पर पैदल सफर करना होगा। गांव में एक भी पक्का घर नहीं है। लोगों का मुख्य पेशा लकड़ी काटना और बेचना है। जंगल पर निर्भर ग्रामीण पड़ोस के पटमदा बाजार में लकड़ी बेचकर पैसे हासिल करते हैं। ग्रामीण नारायण टुडू कहते हैं, अधिकतर ग्रामीण पटमदा से आगे नहीं गए हैं। उन्हें ऐसी जरूरत ही नहीं पड़ी। यही कारण है कि गांववाले कभी ट्रेन पर नहीं चढ़े और न ही ट्रेन देख पाए। वहीं, वासुदेव बताते हैं कि उन्होंने रेलगाड़ी की तस्वीर जरूर देखी है।
यहां नहीं पहुंची विकास की रोशनी
बेलडीह पंचायत के मुखिया शिवचरण सिंह सरदार कहते हैं, यह सही है कि यहां विकास की रोशनी नहीं पहुंच पाई है। आदिवासी बहुल इस गांव के लोग आसपास के गांवों तक ही सिमट कर रह गए हैं। हिंदी नहीं जानते हैं। संथाली में ही बातचीत करते हैं। इस कारण देश-दुनिया से कटे हुए हैं। रेलगाड़ी पर भी नहीं चढ़े हैं।