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DELIMITATION : माननीयों को पता ही नहीं- क्या होता है परिसीमन, सामने आए अजब-गजब बोल

DELIMITATION. परिसीमन के मामले पर तफ्तीश में विधायकों के अजब-गजब बोल सामने आए। हद यह कि माननीयों को पता ही नहीं कि परिसीमन क्या होता है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Fri, 07 Jun 2019 11:57 AM (IST)Updated: Fri, 07 Jun 2019 11:57 AM (IST)
DELIMITATION : माननीयों को पता ही नहीं- क्या होता है परिसीमन, सामने आए अजब-गजब बोल
DELIMITATION : माननीयों को पता ही नहीं- क्या होता है परिसीमन, सामने आए अजब-गजब बोल

जमशेदपुर, जागरण संवाददाता।  जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की चर्चा शुरू हुई तो झारखंड में भी इसकी सुगबुगाहट शुरू हो गई है। राज्यसभा सदस्य महेश पोद्दार के ट्वीट ने झारखंड में 14 साल पहले उठे परिसीमन के मुद्दे को हवा दे दी है। इस पर जब कोल्हान के विधायकों (माननीयों) से बात की गई, तो कुछ के जवाब चौंकाने वाले थे। आप भी सुनिए, इन्होंने परिसीमन के मुद्दे पर क्या कहा। 

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रामचंद्र सहिस

जुगसलाई विधानसभा क्षेत्र के आजसू विधायक ने परिसीमन सुनते ही कहा, परिसीमन क्या चीज है। जब उन्हें बताया गया कि झारखंड के विधानसभा क्षेत्र का परिसीमन, तो कहा-अच्छा, इसके कई विषयों पर नेताओं की सहमति नहीं बन पायी थी। वैसे आबादी के हिसाब से परिसीमन होना चाहिए, लेकिन वह चाहेंगे कि हड़बड़ी में सरकार को कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।

दीपक बिरूवा

चाईबासा के झामुमो विधायक ने कहा-झारखंड में शिड्यूल और नान शिड्यूल क्षेत्र आते हैं। झारखंड में परिसीमन के लिए सिर्फ राष्ट्रपति को इसका अधिकार मिला है न कि राज्य सरकार को। संविधान जो बोलता है उसका पालन करना चाहिए। संवैधानिक प्रावधान के अनुसार ही सारे नियम बनाए गए हैं। इनका पालन करना चाहिए। 

गीता कोड़ा

जगन्नाथपुर की विधायक (अब सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र से नवनिर्वाचित कांग्रेस सांसद) ने बताया कि परिसीमन के लिए यहां पर आर्थिक, सामाजिक जनगणना करनी था। लेकिन झारखंड अन्य प्रदेशों से पिछड़ा क्षेत्र है। झारखंड में परिसीमन को लागू नहीं होना चाहिए। क्योंकि 2006-07 में जब राज्य के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा थे, उस समय इसका जोरदार तरीके से विरोध किया गया था। आज भी परिसीमन का विरोध करते हैं। 

जोबा माझी

मनोहरपुर की झामुमो विधायक ने कहा कि 2024 तक परिसीमन होना है। लेकिन यह सर्वसम्मति से होना चाहिए।

निरल पुरती

मझगांव के झामुमो विधायक ने कहा झारखंड राज्य अभी भी बहुत पिछड़ा हुआ है। इसमें परिसीमन लागू नहीं होना चाहिए। इसके अलावा परिसीमन लागू होने से बहुत सी व्यवस्थाएं बदल जाती हैं। इससे स्थानीय लोगों को दिक्कत का सामना करना पड़ता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। 

चंपई सोरेन

सरायकेला के विधायक ने कहा कि पार्टी ने इस पर कुछ भी बोलने से मना किया है।

दशरथ गागराई

खरसावां के झामुमो विधायक ने कहा कि पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष ने परिसीमन के बारे में कोई बयान देने से मना किया है।

शशिभूषण सामड

चक्रधरपुर के झामुमो विधायक ने कहा कि परिसीमन बिल्कुल होना चाहिए। इससे जनता का भला होगा। अभी विधानसभा क्षेत्र इतना बड़ा है कि एक विधायक चाहकर भी सभी जगह नहीं जा सकता। इससे केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने और उसकी निगरानी करने में विधायक को दिक्कत होती है।

मेनका सरदार

पोटका विधानसभा क्षेत्र की भाजपा विधायक ने दोटूक जवाब दिया। उनका कहना था कि सीट बढ़ता है तो परिसीमन होना चाहिए, वरना नहीं। 

लक्ष्मण टुडू

 घाटशिला के भाजपा विधायक ने जानकारी दी कि पूरे देश में हर 25 वर्ष पर परिसीमन होता है। जब उनसे पूछा गया कि आपकी क्या राय है, होना चाहिए कि नहीं? टुडू बोले, हम का बोलें, पार्टी जो बोलेगी, वही बोलेंगे। अभी पार्टी ने इस पर कुछ नहीं बोला है।

कुणाल षाड़ंगी

बहरागोड़ा के झामुमो विधायक ने कहा कि शायद 2026 तक परिसीमन पर रोक लगी हुई है। 2005 में इसका जो प्रारूप आया था, उसके सेक्शन-10 में स्पेशल क्लॉज की वजह से नहीं हो पाया। लेकिन जिस तरह से राज्य की आबादी बढ़ी है, यह होना चाहिए। 

सरयू राय

जमशेदपुर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक व झारखंड सरकार के खाद्य आपूर्ति मंत्री ने कहा कि 2005 में परिसीमन होना था, लेकिन आदिवासी विधायकों-नेताओं ने इसका विरोध किया था। इसकी वजह से केंद्र सरकार ने विशेष अधिकार के तहत राष्ट्रपति की सहमति से रोक लगा दी थी। लेकिन झारखंड का परिसीमन होना चाहिए। 

झारखंड का अस्तित्व ही नहीं बचेगा : बेसरा

आजसू के संस्थापक व घाटशिला के पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि परिसीमन हो गया तो झारखंड का अस्तित्व ही नहीं बचेगा। झारखंड अलग राज्य का आंदोलन इसी बात को लेकर हुआ था कि आदिवासियों की कला-संस्कृति और पहचान अक्षुण्ण रहे। भारत के संविधान में झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा आदि पांचवीं अनुसूची में आते हैं। यहां राज्य सरकार की सहमति से परिसीमन करने का प्रावधान है, लेकिन 2005 में इसका यहां पुरजोर विरोध हुआ था। परिसीमन हुआ तो 28 में सात विधानसभा क्षेत्र अनारक्षित सीट हो जाएंगे, जो अभी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। परिसीमन होने के बाद यह ट्राइबल स्टेट रह ही नहीं जाएगा। राज्य में विरोध को देखते हुए उस समय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए झारखंड में परिसीमन पर रोक लगा दी थी, जिस पर राष्ट्रपति ने भी हस्ताक्षर कर दिया था।  

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