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जल संरक्षण कर आमदनी बढ़ाने का मंत्र दे रहे मिखेल सुरीन, ऐसी है इनकी कहानी

मिखेल सुरीन जल संरक्षण कर न तो सिर्फ पर्यावरण को संतुलित करने व क्षेत्र को हराभरा करने बल्कि थोड़ी मेहनत कर अच्छी आमदनी करने का लोगों को मंत्र दे रहे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 29 Jul 2020 01:47 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2020 01:47 PM (IST)
जल संरक्षण कर आमदनी बढ़ाने का मंत्र दे रहे मिखेल सुरीन, ऐसी है इनकी कहानी
जल संरक्षण कर आमदनी बढ़ाने का मंत्र दे रहे मिखेल सुरीन, ऐसी है इनकी कहानी

मनोहरपुर (पश्चिमी सिंहभूम ), रमेश सिंह।  पश्चिमी सिंहभूम जिले के मनोहरपुर प्रखंड के सुदूर गांव रायडीह में 60 वर्षीय मिखेल सुरीन जल संरक्षण कर न तो सिर्फ पर्यावरण को संतुलित करने व क्षेत्र को हराभरा करने बल्कि थोड़ी मेहनत कर अच्छी आमदनी करने का लोगों को मंत्र दे रहे हैं। मिखेल सुरीन खुद घर के बेकार व गंदे पानी का संग्रह कर लगभग 20 कट्ठे भूमि में  बागवानी कर लोगों के लिए मिशाल बने हुए हैं। बेकार पानी को संग्रह कर उस पानी से अपने बगान को हराभरा बनाये हुए हैं। अपने बगान में वे आम,कटहल,अनार,शरीफा, पपीता, लीची, अमरूद, चीकू, निम्बू, संतरा, तेजपत्ता, अंगूर के अलावे टमाटर, मिर्ची सहित कई तरह के फूल पौधे के अलावे साग -सब्जी का उत्पादन कर रहे हैं। मिखेल बताते हैं कि फलों से प्रत्येक वर्ष उन्हें फिलहाल 30 हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है।

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80 के दशक में केरल में खरीदना पड़ता था पानी

वर्ष 2016 में सीआएसएफ से रिटायर्ड हुए इचापिड़ गांव के रहने वाले मिखेल सुरीन बताते हैं कि वर्ष 1980 के आसपास जब वे मद्रास में नौकरी कर रहे थे तब उन्हें वहां से केरल जाना पड़ा था। केरल में उन्हें बिजली -पानी के एवज में 16 रुपये देना पड़ता था। केरल में आंध्रा से पानी आता था। वहां उन्हें पानी के लिए भी पैसा देना पड़ता था। केरल में ही उन्होंने पानी के महत्व को जाना। पानी बचाने व स्टॉक करना सीखा। वही से से प्रेरणा लेकर वे अपने गांव इचापिड़ में पानी का संरक्षण कर पानी बचाने ,बेकार गंदे पानी को संचय कर उससे पटवन कर बागवानी करने का काम शुरू किया। अपने घर के बगल खाली पड़े निजी जमीन की मिट्टी से सोना निकालने की दिशा में काम शुरू किया। पानी को लेकर एक डीप बोरिंग कराया। खाली जमीन पे एक 5/5 का हौदा निर्माण किया। घर के किचन का बेकार पानी का संग्रह करना शुरू किया। उसी पानी से पटवन कर बगान को हरा- भरा बनाना शुरू किया।  जल संरक्षण कर बगान को जमीन को नमी करने व पौधों को पटाने में उपयोग किया। मिखेल का यह प्रयास रंग लाया।  उनका पूरा बगान फल-फूल,साग-सब्जी के पेड़ पौधों से हरा भरा हो गया।  आज वे सिर्फ फ्लिन से ही सालाना 30 हजार की आमदनी कर लेते हैं। घर के लिए साग- सब्जी बाजार से खरीदना नहीं पड़ता है। 

ये देते हैं संदेश

मिखेल सुरीन लोगों को संदेश देते हुए बताते हैं नौकरी नहीं हो तो बागवानी कर परिवार का भरण पोषण जल संरक्षण से हो सकता है। बस थोड़ी मेहनत करने व पानी को बेकार जाने से बचाना होगा। मिखेल अपने गांव व आसपास के लोगों को जल संचयन संरक्षण का गुढ़ बताते हुए उन्हें जागरूक व उत्प्रेरित करने का काम भी कर रहे हैं।  कुछ लोग मिखेल से प्रेरित होकर अपने अपने यहां बागवानी का काम भी शुरू कर दिया है।

ये है जल संग्रह का तरीका 

जल किसी भी प्रकार का हो,वह चाहे वर्षा का,कुंआ का,घर कि  किचन का गंदा पानी ही क्यों न हो उसे बेकार बर्वाद न करें। उसका संचयन कर उस जल से पटावन का काम ले सकते हैं। बागवानी,साग -सब्जी का पटावन का काम ले सकते हैं। यह जल रोजगार व  आमदनी का साधन बन सकता है। बशर्ते इसका सही उपयोग किया जाय।


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