कोरोना का खौफ : पेड़ के नीचे, बकरी शेड के अंदर और तंबू गाड़ रह रहे प्रवासी
Coronavirus Fear. पश्चिम सिंहभूम के कुमारडूंगी में 30 मजदूर गांव से बाहर रहने को मजबूर हैं। स्कूल भवन और पंचायत भवन मांगने पर भी मुखिया व शिक्षक ने नहीं दिया।
By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 07 Jun 2020 07:52 AM (IST)Updated: Sun, 07 Jun 2020 07:52 AM (IST)
कुमारडुंगी (पश्चिमी सिंहभूम), मनीष दास। पश्चिम सिंहभूम जिले के कुमारडूंगी प्रखंड क्षेत्र में लगभग 30 प्रवासी मजदूर पेड़ के नीचे, बकरी शेड में और तंबू गाड़कर रहने को मजबूर हैं। ये सभी 10 दिन पहले तमिलनाडु, कर्नाटक व बेंगलुरु से लौटे थे।
जिला प्रशासन ने थर्मल स्कैनिंग के बाद इन सभी को अपने गांव में होम क्वारंटाइन के लिए भेज दिया था। ग्रामीणों ने कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे के डर से इन प्रवासी श्रमिकों को गांव में घुसने नहीं दिया। मजदूरों ने स्कूल भवन अथवा पंचायत भवन में ठहरने की मांग की। पर स्कूल शिक्षकों व पंचायत के मुखिया ने भी चाभी देने से मना कर दिया। मजबूरन यह मजदूर अब गांव के बाहर ही आशियाना बना कर क्वारंटाइन की अवधि पूरी कर रहे हैं। यह तस्वीर कुमारडुंगी की छोटारायकमन पंचायत के बड़ारायकमन गांव की है। यहां कोरोना वायरस ने ग्रामीणों को इतना डरा दिया है कि बाहर से आए लोगों को गांव में घुसने नहीं दे रहे हैं।
बकरी आवास में होम क्वारंटाइन की अवधि पूरी कर रहे
पश्चिम सिंहभूम जिले के कुमारडूंगी प्रखंड के बड़ा लुंती गांव के बाहर पेड़ के नीचे प्लास्टिक बिछा कर दिन गुजारते मजदूर।
बड़ा रायकमन गांव के आठ श्रमिक गांव से आधा किलो मीटर दूर बीएसएनएल टावर के समीप बने बकरी आवास में होम क्वारंटाइन की अवधि पूरी कर रहे हैं। इन मजदूरों ने बताया कि 24 मई को तमिलनाडु से आए हैं। गांव के स्कूल भवन में रुकना चाहा पर शिक्षक ने चाभी देने से मना कर दिया। इसलिए मजबूर होकर बकरी आवास में रह रहे हैं। रात को सोने के लिए आठ लोगों के लिए जगह नहीं होती। इसलिए बाहर में भी सो जाते हैं। यही नहीं खुद ही भोजन तैयार करते हैं।
आम पेड़ के नीचे तंबु बनाकर कर रह रहे 15 श्रमिक
पश्चिम सिंहभूम जिले के कुमारडूंगी प्रखंड के बड़ा रायकमन गांव में प्लास्टिक का तंबू लगा कर पेड़ के नीचे रहते प्रवासी मजदूर।
इसी तरह बड़ा रायकमन गांव के महाराणा बस्ती स्थित आम पेड़ के नीचे तिरपाल से तंबु बनाकर दो परिवार समेत 15 श्रमिक रहते हैं। दो श्रमिक बेंगलुरु से 29 मई को आए थे। पांच कर्नाटक से व आठ श्रमिक तमिलनाडु से आए थे। सभी थर्मल स्कैनिंग के बाद होम क्वारंटाइन के लिए आए। लेकिन ग्रामीणों ने गांव में घुसने नहीं दिया। वहीं पंचायत भवन में मुखिया साधु हेम्बम ने ताला बंद कर दिया। स्कूल में भी जगह नहीं मिली। ऐसे में कहां रहते, इसलिए फटे- पुराने तिरपाल से तंबू बनाकर क्वारंटाइन की अवधि पूरी कर रहे हैं। खाने -पीने की व्यवस्था खुद करते हैं। लड़कियों के लिए अलग से दो तंबू लगा रखा है। कहते हैं ,रात को सांप का भय रहता है। इसलिए नींद भी पूरी नहीं पाती है।
पेड़ के नीचे कर रहे क्वारंटाइन अवधि पूरी
पश्चिम सिंहभूम जिले के कुमारडूंगी प्रखंड के बड़ालुंती गांव के बंद पड़े चाईना क्ले माइंस में दीवार के ऊपर सोते प्रवासी मजदूर।
उधर, बड़ा रायकमन गांव से करीब एक किलोमीटर दूर बंद पड़ी चाईना क्ले माइंस में सात श्रमिक पेड़ के नीचे क्वारंटाइन की अवधि पूरी कर रहे हैं। सभी कर्नाटक से 30 मई को आए थे। स्कूल व पंचायत में जगह नहीं मिलने के कारण बंद पड़े माइंस में चले आए। वहां खुद खाना बनाकर रह रहे हैं। श्रमिकों ने बताया की भीड़ में रहने से संक्रमण बढ़ सकता है।
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