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कुरनूल से टाटानगर पहुंचे प्रवासी मजदूरों ने कहा- रात भर भूख से बिलबिलाते रहे, सुबह हिजली में परोसा बासी उपमा Jamshedpur News

तपती गर्मी में भूखे प्यासे आंध्रप्रदेश के कुरनूल से टाटानगर पहुंचे 1135 प्रवासी झारखंड के 21 जिलों में सर्वाधिक पश्चिम सिंहभूम के 481 मजदूर।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 10:47 PM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 10:47 PM (IST)
कुरनूल से टाटानगर पहुंचे प्रवासी मजदूरों ने कहा- रात भर भूख से बिलबिलाते रहे, सुबह हिजली में परोसा बासी उपमा Jamshedpur News
कुरनूल से टाटानगर पहुंचे प्रवासी मजदूरों ने कहा- रात भर भूख से बिलबिलाते रहे, सुबह हिजली में परोसा बासी उपमा Jamshedpur News

जमशेदपुर (जागरण संवाददाता)। तपती गर्मी में आंध्रप्रदेश के कुरनूल से 1500 किलोमीटर का सफर तय कर जैसे ही मंगलवार को जैसे ही श्रमिक टाटानगर पर पहुंचे, उनके चेहरे पर तनाव साफ झलक रहा था। जैसे ही टाटानगर स्टेशन पर ट्रेन का पहिया थमा, वैसे ही किसी तरह बोतल में पानी भर लेने की होड़ मच गई। क्या बच्चे, क्या जवान, क्या बुजुर्ग, सभी बस एक बोतल पानी भर लेने के लिए एक-दूसरे को धकिया रहे थे। 

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पैरों में चप्‍पल नहीं, तपती सड़क पर बस में चढ़ने चले बच्‍चे

चाईबासा के राम मुंडारी अपने अपने  बच्चों के साथ बस की ओर बढ़ रहे थे। तीनों बच्चों के पैर में चप्पल नहीं थी। सड़क आग उगल रही थी तो बच्चे भी जल्द से जल्द बस पर जाना चाहते थे। लेकिन स्टेशन से बाहर निकलने तक कई प्रक्रियाओं से गुजरना है। वे अधीर हो रहे हैैं। जब बच्चे से पूछा गया, बेटा आने में कोई परेशानी हुई। उसने शरमाकर मुंह घुमा लिया।

एक सीट पर बैठाए गए तीन यात्री

तभी मार्कंडेय मुंडारी का दर्द छलक पड़ा। बोले, साहब क्या बताऊं। ट्रेन में हालत बड़ी बुरी थी। एक तो महामारी और दूसरी ओर एक सीट पर तीन लोगों को बैठाकर लाया गया। भूख के मारे हालत खराब है। आंध्रप्रदेश के कुरनूल से चला। रात भर भूखा रहा। हिजली में हम सभी को खाने में उपमा व बिस्कुट दिया गया। लेकिन उपमा भी बासी निकला। उपमा खाते ही बच्चे मुंह बिचकाने लगे। क्या करता, बीमारी ना हो जाए, सभी ने उपमा स्टेशन पर ही फेंक दिया। बस 24 घंटे में दो बिस्कुट खाकर 1500 किलोमीटर का सफर तय किया हूं। ट्रेन छह बजे टाटानगर पहुंचनी थी, लेकिन तीन घंटे देर से पहुंची। 

झलका दर्द- गए थे कमाने, सब कुछ लुटाकर आ गए

बगल में खड़ी मार्कंडेय पत्नी पानो मुंडारी ने दर्द साझा करते हुए कहा, गए थे कमाने, सब कुछ लुटाकर आ रहे हैैं।  जब तक राशन था खाया। बाद में दुकानदार ने भी उधार देना बंद कर दिया। एक टाइम खाना मिला तो भी हम सब खुश हो जाते थे। ट्रेन की जानकारी मिली तो सोचा, गाड़ी में लटककर घर चले जाएंगे, लेकिन यहां नहीं रहेंगे। 

आंखों में झलक रही थी अपने घर पहुंचने की खुशी

करीब तीन घंटे देर से टाटानगर पहुंची ट्रेन से बच्चों को गोद में लिए महिलाओं की आंखों में अपने घर पहुंचने की खुशी साफ दिख रही थी। 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में बच्चे के साथ टे्न के सफर से श्रमिकों का हाल बेहाल था। सभी की बसें स्टेशन परिसर पर लगी थी, लेकिन अपने घर जाने की बदहवासी दिख रही थी। तपती ट्रेन से उतरे प्रवासी श्रमिकों का हाल बेहाल था। गर्मी और प्यास से गला सूख रहा था, जैसे ही लोग टाटानगर रेलवे स्टेशन उतरे, उन्हें थर्मल स्क्रीनिंग के बाद ठंडे पानी का बोतल व खाने का पैकेट दिया गया। कुछ श्रमिक इतने भूखे प्यासे थे कि स्टेशन परिसर में ही खाना-पीना शुरू कर दिया। 

पूर्वी सिंहभूम का एक भी श्रमिक नहीं

आंध्रप्रदेश से टाटानगर स्टेशन पर जो ट्रेन आई, उसमें पूर्वी सिंहभूम जिले का एक भी श्रमिक नहीं था। रेलवे स्टेशन पर उतरे 1135 श्रमिकों में झारखंड के 21 जिलों के 1077 श्रमिकों के अलावा बिहार के 58 श्रमिक थे। स्टेशन पर चिकित्सकों की टीम ने श्रमिकों की थर्मल स्क्रीङ्क्षनग की। इसके बाद पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन ने सभी संबंधित जिले के मजिस्ट्रेट की देखरेख में मजदूरों को उनके जिले से आए बसों से रवाना कर दिया। 


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