अब हाईकोर्ट पहुंचेगी प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई
चौका क्षेत्र में बेहिसाब प्रदूषण फैला रही कंपनियों के खिलाफ लड़ा
By Edited By: Published: Sat, 21 Jul 2018 08:30 PM (IST)Updated: Sun, 22 Jul 2018 09:56 AM (IST)
विश्वजीत भट्ट, जमशेदपुर : चौका क्षेत्र में बेहिसाब प्रदूषण फैला रही कंपनियों के खिलाफ लड़ाई झारखंड हाईकोर्ट या ग्रीन ट्रिब्यूनल जाएगी। इस इलाके में पांच वर्ग किमी के दायरे में 10 स्पंज आयरन और दूसरी प्रदूषण फैलाने कंपनियां स्थापित हैं। वर्षो पूर्व स्थापित ये कंपनियां पारंपरिक जल स्रोत नदी-तालाब के साथ ही जमीन में डीप बो¨रग करके इलाके के पानी का पूरी तरह से दोहन कर चुकी हैं। लिहाजा लोगों को पीने के पानी के साथ-साथ खेती-बाड़ी के लिए जल संकट से जूझना पड़ रहा है। काबिलेगौर है कि ये कंपनियां वायु प्रदूषण को लेकर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश की धज्जियां उड़ा ही रही हैं, आम आदमी के जीने का अधिकार भी छीन रही हैं। साथ ही औद्योगिक नीति के दिशा-निर्देशों का भी खुला उल्लंघन कर रही हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने मार्च 2007 में स्पंज आयरन सहित दूसरी प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों के लिए विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए कई महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसमें उल्लेख है कि बिना औद्योगिक क्षेत्र घोषित किए किसी भी इलाके में ऐसी कंपनियों की स्थापना नहीं हो सकती। औद्योगिक क्षेत्र घोषित करने के लिए या तो सरकारी जमीन की जरूरत होती है या फिर कायदे-कानून के तहत जमीन अधिग्रहण का प्रावधान है। चौका में ऐसा किया ही नहीं गया है। ऐसी कंपनियां औद्योगिक क्षेत्र में ही लगाई जा सकती हैं और किसी भी गांव से कम से कम एक किमी दूर भी होनी चाहिए। चौका में ऐसा बिल्कुल नहीं है और सभी कंपनियां गांवों में ही स्थापित की गई हैं। प्रदूषण फैलाने वाली इस प्रकार की कंपनियां नेशनल और स्टेट हाइवे से कम से कम आधा किमी दूर होनी चाहिए। इसका भी खुला उल्लंघन हुआ है। अस्पताल से एक किमी दूर, नदी या प्राकृतिक जल स्रोत से एक किमी दूर होनी चाहिए। ऐसा भी नहीं किया गया है। औद्योगिक क्षेत्र में भी दो स्पंज आयरन कंपनियां पांच किमी के दायरे में नहीं लगाई जा सकतीं, जबकि चौका क्षेत्र में तो पांच किमी के दायरे 10 कंपनियां स्थापित हैं। सरकार द्वारा तय मानकों में यह भी शामिल है कि ये कंपनियां जमीन के पानी का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं, लेकिन चौका क्षेत्र की तमाम कंपनियां डीप बो¨रग करके जमीन के पानी का ही इस्तेमाल कर रही हैं और इलाके को बंजर बना चुकी हैं। प्रावधान तो यह भी है कि यदि इन नियमों का उल्लंघन हो रहा है तो प्रदूषण नियंत्रण विभाग ऐसी कंपनियां को हटाएगा या फिर बंद करेगा। लेकिन, प्रदूषण विभाग तो कान में तेल डालकर सो रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता निशांत अखिलेश ने इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने और मामले को 15 दिनों के अंदर झारखंड हाईकोर्ट या ग्रीन ट्रिब्यूनल में ले जाने की जिम्मेदारी ली है।
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