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1886 में रामकृष्ण ने लिया था कल्पतरु का रूप

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : कल्पतरु का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इस वृक्ष के नीचे मांगी गइ

By Edited By: Published: Mon, 02 Jan 2017 03:08 AM (IST)Updated: Mon, 02 Jan 2017 03:08 AM (IST)
1886 में रामकृष्ण ने लिया था कल्पतरु का रूप

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : कल्पतरु का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इस वृक्ष के नीचे मांगी गई सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 1886 में एक जनवरी को रामकृष्ण परमहंस ने कल्पतरु का रूप धरा था। इस दिन भक्तों ने उनसे जो कुछ भी मांगा था, भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हुई थीं।

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उपरोक्त बातें रामकृष्ण मिशन के स्वामी करुणामयनंद और स्वामी कृष्णानंद ने कहीं। वे कल्पतरु महोत्सव कमेटी के तत्वावधान में रविवार को बागुननगर पूजा मैदान में रविवार को आयोजित श्री रामकृष्ण परमहंस का 132वें कल्पतरु महोत्सव में हुई धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि तभी से कल्पतरु महोत्सव के आयोजन की परंपरा शुरू हुई। दोनों वक्ताओं ने कल्पतरु महोत्सव के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। कार्यक्रम में बतौर अतिथि समाजसेवी शेखर डे, झाविमो नेता अभय सिंह, भाजपा महानगर अध्यक्ष दिनेश कुमार, कांग्रेस नेता रवींद्र झा, विकास मुखर्जी, नारायण पाल आदि शरीक हुए। शहर के कलाकार चीनू मजूमदार, सुष्मिता चक्रवर्ती, मीनू हलदर, लकी बिस्वास और विनय कालिंदी ने बांग्ला और ¨हदी में भक्ति गीतों की प्रस्तुति की। आयोजन में अध्यक्ष अशोक बरुआ, बिजन भट्टाचार्य, सुष्मिता चक्रवर्तीविमल हलदर, समीर दास, आशीष घोष, गौतम बागची, कल्याणी सेन, बनानी सेनगुप्ता, कृष्णा दास, मौली नंदी व गीता दास आदि ने सक्रिय भूमिका निभाई।


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