यहां की पूजा होती खास, जहरीले सांपों का खेल देखने जुटते श्रद्धालु
मनसा पूजा के समापन पर शोभा यात्रा निकलती है जिसमें सांपों का खेल देखने हजारों श्रद्धालु जमा होते है़।
जमशेदपुर(जेएनएन)। जी हां, यहां की पूजा अपने आप में अनोखी है। इस पूजा के समापन पर शोभा यात्रा निकलती है जिसमें सांपों का खेल देखने हजारों श्रद्धालु जमा होते है़। झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में यह परंपरा जमाने से चली आ रही है।
पिछले दिनों भी पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला अनुमंडल के पोटका प्रखंड के मध्यपाड़ा में श्रीश्री सार्वजनिक मनसा पूजा समिति शंकरदा मध्यपाड़ा की ओर से माता मनसा देवी की पूजा का आयोजन किया गया। यह पूजा के आयोजन का 105 वां वर्ष था। इसके समापन के मौके पर यात्रा निकाली गई। इसे झापान यात्रा के नाम से जाना जाता है। झापन यात्रा में पड़ोस के पश्चिम बंगाल से ओझा- गुणियों को बुलाया गया था। ओझा- गुनी जहरीले सांपों को गले में डालकर यात्रा में शामिल हुए। वे कभी सांप को हार बनाकर गले में डालते तो कभी सांप को अपने मुंह में डाल लेते। यह देखकर लोग अचरज से भर जाते।
होती मनोकामना पूर्ण
मान्यता है कि मां मनसा के पूजन से हर मांगी मुराद पूरी होती है। मां को विदाई देते हुए भी श्रद्धालु उनके चरणों मं मत्था टेकते हैं और परिवार और नाते- रिश्तेदारों की सुख-शांति व संपन्नता के लिए कामना करते हैं।मान्यता है कि मां मनसा पूरी तरह जाग्रत हैं। निसंतानों की संतान की मनोकामना पूरी होती है तो बीमारों की बीमारी ठीक हो जाती है। जिनकी मुराद होती है वे बलि चढ़ाते हैं।
भगवान भोलेशंकर के मस्तक से उत्पत्ति
मान्यता है कि मां मनसा की उत्पत्ति भगवान भोलेशंकर के मस्तक से हु्ई। इसी वजह से मनसा देवी नाम पड़ा। मां मनसा को नागराज वासुकी की बहन भी माना जाता है। मां मनसा की पूजा मुख्यत: आदिवासी समाज के लोग ही करते थे। हालांकि, अब अन्य समाज में भी पूजन की परंपरा शुरू हुई है।