आया बनकर आई थी, बेटी बनकर दी मुखाग्नि
वह आया बन कर सेवा करने के लिए घर आई थी और बेटी बनकर उसने जब मां रूपी मालकिन को मुखाग्नि दी तो हर कोई दंग रह गया।
जमशेदपुर,[दिनेश शर्मा]। वह आया बन कर सेवा करने के लिए घर आई थी और बेटी बनकर उसने जब मां रूपी मालकिन को मुखाग्नि दी तो हर कोई दंग रह गया। यह वाकया जमशेदपुर के कदमा के फार्म एरिया रोड नंबर चार के बंगला नंबर पांच निवासी देवयानी चटर्जी के घर का है।
देवयानी कोल्हान प्रमंडल के पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर में निर्मला स्कूल की संस्थापिका स्निग्धा चटर्जी की सबसे बड़ी संतान थी। वह टाटा स्टील में स्पोट्र्स एंड कल्चरल विभाग में अधिकारी थीं। शारीरिक समस्याओं के कारण उन्होंने अपनी देखभाल के लिए पश्चिम सिंहभूम के चक्रधरपुर के चन्द्रजारकी गांव की सुनीता कुजूर को करीब 16-17 वर्ष पूर्व घर लाया।
पति को बता गर्इ थी इच्छा
सुनीता का कार्य भी वहीं था जो आम मेड आया या नौकरानी का होता है। लेकिन डेढ़ दशक से सुनीता की देखभाल के दौरान लगाव कुछ ऐसा हो गया कि देवयानी ने पति से कह दिया था कि सुनीता उन्हें मुखाग्नि देगी। टीएमएच में देवयानी की मौत हो गई। अंतिम क्षण में उन्हें नि:संतान होने के दर्द से ज्यादा खुशी इस बात की थी कि सुनीता जैसी बेटी उनके पास है।
हैरान हुए लोग
उनका पार्थिव शरीर बिष्टुपुर के पार्वती घाट लाया गया। यहां तमाम परंपराओं का निर्वहन पुत्रवत सुनीता कुजूर ने करना शुरू किया तो लोग हैरान रह गए। देवयानी को मुखग्नि देते वक्त सुनीता का हाथ देवयानी के पति एमपी सारथी ने थाम रखी थी।