झारखंड के लांगो गांव की पहली ग्रेजुएट बिटिया बन माधवी ने रचा इतिहास
सौ वर्ष पुराने इस गांव से आज तक कोई भी बेटी ग्रेजुएट बनने का सपना पूरा नहीं कर पाई थी। माधवी ने नई राह खोल दी है।
जमशेदपुर, वेंकटेश्वर राव। नक्सलियों के आतंक के बीच पली-बढ़ी माधवी हेम्ब्रम झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित लांगो गांव की पहली ग्रेजुएट बिटिया हैं। सौ वर्ष पुराने इस गांव से आज तक कोई भी बेटी ग्रेजुएट बनने का सपना पूरा नहीं कर पाई थी।
साल 2003 में नौ नक्सलियों की यहां ग्रामीणों ने हत्या कर दी थी। तब यह गांव सुर्खियों में आया था। जिले के घाटशिला अनुमंडल के डुमरिया प्रखंड के इस गांव में जीवन-यापन करना बेहद मुश्किल भरा है। नक्सलवाद के कारण बुनियादी सुविधाएं अब तक यहां नहीं पहुंच पाई हैं। ऐसे में पहली ग्रेजुएट बिटिया पाकर ग्रामीण फूले नहीं समा रहे हैं। हालांकि आदिवासी समुदाय से आनेवाली माधवी हेम्ब्रम इस उपलब्धि को पड़ाव भर मानती हैं। उन्होंने पुलिस सेवा या स्वास्थ्य सेवा को मंजिल बना रखा है। अब मंजिल पाने के लिए प्रयासरत हैं।
नक्सली आतंक से परेशान लोगों ने 2003 में योजनाबद्ध तरीके से नौ नक्सलियों को मार डाला था, तब माधवी हेम्ब्रम तीन वर्ष की थीं। 165 परिवारों वाले इस गांव की आबादी करीब 900 है। गांव में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त लोगों की संख्या ठीकठाक है, लेकिन उच्च शिक्षा तक पहुंच नहीं है। यहां केवल प्राथमिक विद्यालय है। ऐसे में आगे की शिक्षा के लिए बाहर जाने की मजबूरी होती है। इस वजह से ग्रामीण उच्च शिक्षा से तौबा कर लेते हैं।
ऐसे बनी ग्रेजुएट
माधवी हेम्ब्रम के अनुसार, बचपन से ही पढ़-लिखकर खास बनने की उनकी ललक रही है। गांव में उच्च शिक्षा की व्यवस्था नहीं होना सबसे बड़ी बाधा था। ऐसे में डुमरिया प्रखंड मुख्यालय स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय का खुलना वरदान साबित हुआ। नामांकन के लिए आवेदन किया। दाखिला भी मिल गया। विद्यालय आवासीय था, सो रहने की समस्या नहीं हुई। इस विद्यालय से वह अच्छे नंबर से मैट्रिक और फिर इंटर की परीक्षा पास करने में सफल रहीं। इसके बाद स्नातक की पढ़ाई की समस्या खड़ी हो गई।
पढ़ने की उमंग और मां के सहयोग ने उन्हें चाईबासा पहुंचा दिया, जहां महिला कॉलेज में दाखिला मिला और तीन वर्षों में स्नातक हो गईं। माधवी के अनुसार, इस सफर में मां गौना हेम्ब्रम और पिता मिर्जा हेम्ब्रम ने हर कदम पर साथ दिया। पिता का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। मजदूरी करने में असमर्थ हैं। ऐसे में मां ने खेतों में मजदूरी कर बेटी को पढ़ने के लिए चाईबासा भेजा। पढ़ाई व अन्य खर्चे वहन किए। किसी तरह की कमी महसूस नहीं होने दी।
परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। अब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में दिक्कत आ रही है। आर्थिक तंगी दूर करना लक्ष्य है। पुलिस या मेडिकल सेवा में जाना चाहती हूं।
- माधवी हेम्ब्रम, पहली ग्रेजुएट, लांगो गांव।