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एक डांट से बने जलपुरुष, 40 साल से गांव में अकेले खोद रहे तालाब

इस शख्स ने अपनी जिद और जुनून से अपने ग्रामीण इलाके की तस्वीर बदल दी । आज दूसरे लोग इनसे प्रेरणा लेकर नई शुरुआत रहे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 02:50 PM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 02:50 PM (IST)
एक डांट से बने जलपुरुष, 40 साल से गांव में अकेले खोद रहे तालाब
एक डांट से बने जलपुरुष, 40 साल से गांव में अकेले खोद रहे तालाब

जमशेदपुर,विश्वजीत भट्ट। नाम चुम्बरू तामसोय। उम्र 70 वर्ष। पहचान जलपुरुष की। वजह? अपनी जिद और जुनून से अपने ग्रामीण इलाके की बदल दी तस्वीर। आज दूसरे लोग इनसे प्रेरणा लेकर नई शुरुआत रहे हैं। यहां बात हो रही है पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय चाईबासा से 62 किलोमीटर पूर्व और कुमारडुंगी प्रखंड मुख्यालय से लगभग छह किलोमीटर दूर जंगल में स्थित कुमिरता पंचायत के गांव लोआसाई निवासी चुम्बरू तामसोय की। पिछले 40 वर्षों से अनवरत अपनी जमीन पर तालाब खोद रहे हैं।

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लगभग 100 गुणा 100 और 20 फीट गहरा तालाब तैयार है। इसमें वर्ष भर पानी रहता है और पूरे गांव के लोग इसका नहाने-धोने के लिए उपयोग करते हैं। तालाब के आस-पास स्थित चुम्बरू के लगभग पांच एकड़ खेत के साथ गांव के अन्य लोगों के खेतों की सिंचाई हो रही है। इसी पानी के दम पर चुम्बरू ने लगभग 50 पेड़ों का बागीचा भी तैयार कर लिया है। इसमें काश्मार, नीम, इमली, आम और अर्जुन के पेड़ हैं। इस इलाके में पहले वर्ष भर में केवल धान की एक फसल होती थी। अब चुम्बरू के साथ गांव के लोग अपने खेतों में टमाटर, गोभी, हरी मिर्च, धनिया आदि की भी खेती कर रहे हैं। 

ऐसे हुई इस महाअभियान की शुरुआत 

आज से लगभग 40 साल पहले चुम्बरू के गांव में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले का एक ठेकेदार मजदूर खोजने आया था। चुम्बरू के साथ उनके गांव के पांच युवक और आस-पास के गांवों लगभग दर्जन भर युवक काम करने के लिए रायबरेली उत्तर प्रदेश गए। वहां इन सभी को नहर बनाने के लिए मिट्टी खोदने के काम में लगाया गया। चुम्बरू आठ से 10 घंटे तक मिट्टी खोदते थे। न खाने का ठिकाना न सोने का। ऊपर से ठेकेदार की डांट और गाली अलग। बस यही बात उनके मन में घर कर गई। लगभग महीनेभर काम करने के बाद एक दिन चुम्बरू ने ठान लिया कि जब मिट्टी ही खोदनी है तो दूसरे की क्यों? अपनी क्यों नहीं? चुम्बरू गांव लौट आए और जुट गए अपने महाअभियान में। चुम्बरू बताते हैं कि रायबरेली से यही सोचकर गांव आया कि अपनी मिट्टी खोदेंगे। अपनी जमीन पर तालाब बनाएंगे। बगान लगाएंगे। धान और सब्जी की खेती करेंगे। 

दिन तो दिन, डिबरी जला रात में भी खोदी मिट्टी 

चुम्बरू के मुताबिक ऐसा नहीं कि दिन-रात तालाब खोदने में ही जुटे रहे। खेती-किसानी और घर के तमाम कामों से फुर्सत मिलते ही तालाब खोदने में जुटे जाते थे। कभी दो घंटे, कभी चार घंटे तालाब खोदा। यदि किसी कारणवश दिन में समय नहीं मिला तो रात में ढिबरी जलाकर तालाब खोदा। 

न किसी से मांगी न ही किसी ने दी मदद 

तालाब खोदने में चुम्बरू ने न किसी से मदद मांगी और न ही कोई मदद के लिए आगे आया। वे तो बस अपनी धुन के पक्के जुटे रहे और इंच-इंच कर 100 गुणा 100 फीट का तालाब तैयार कर दिया। चुम्बरू अभी इतने से ही संतुष्ट नहीं हुए हैं और न ही उन्होंने हार मानी है। 

जब तक हाथ चलेंगे, तब तक तालाब खोदने का संकल्प 

चुम्बरू बताते हैं कि यह अभियान रुकेगा नहीं। जब तक हाथ चलेंगे, तब तक तालाब खोदूंगा। चुम्बरू का सपना है कि उनके जीते जी यह तालाब 200 गुणा 200 फीट का हो जाए और गांव वालों को पानी की कभी दिक्कत न हो। साथ में यह विश्वास भी है कि वे अपना यह सपना पूरा किए बिना इस दुनिया से नहीं जाएंगे। 

आयुष्मान योजना से हुआ ऑपरेशन 

हाइड्रोसील की बीमारी के कारण चुम्बरू के अभियान पर कुछ दिन के लिए ब्रेक लग गया था। उन्हें पता ही नहीं था कि इसका इलाज भी संभव है। आयुष्मान मित्र अनंतलाल तांती उन्हें अस्पताल ले गए। ऑपरेशन हो गया है। डॉक्टर ने लगभग 10 दिन आराम करने को कहा है। स्वस्थ होने के बाद चुम्बरू फिर अपने सपने को पूरा करने में जुट जाएंगे।


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