डॉ. राहत इंदौरी ने शेरो शायरी ने बूढ़ों को भी दिलाया जवानी का एहसास, बांधा समां
साकची के रवींद्र भवन में आयोजित दैनिक जागरण के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में श्रोता सराबोर रहे। डॉ. राहत इंदौरी से लेकर अन्य कवियों ने जमायी महफिल।
वेंकटेश्वर राव, जमशेदपुर : दैनिक जागरण द्वारा साकची के रवींद्र भवन में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में प्रख्यात गीतकार व शायर डॉ. राहत इंदौरी ने ऐसा समां बांधा की उन्होंने बूढ़ों को भी जवानी का एहसास दिला दिया। उन्होंने इश्क की बारीकियों को शायरी की अंदाज में इस तरह सुनाया कि तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज उठा। उन्होंने अपनी पहली शायरी को पढ़ते हुए कहा कि गुलाब, ख्वाज, दवा, जहर, जाम क्या-क्या है, मैं आ गया हूं बता इंतजाम क्या-क्या है? फकीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या-क्या है, तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या-क्या है? जमीं पे सात समंदर सरो पे सात आकाश, मैं कुछ नहीं तेरा एहतराम क्या-क्या है?
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लेकिन आने-जाने में किराया लगता है
राहत इंदौरी ने दूसरा शेर पढ़ते हुए कहा कि किसने दस्तक दी, किसने दस्तक दी ये दिल पर.कौन है आप तो अंदर है बाहर कौन है। सुना कि मेरी सांसों में समाया भी बहुत लगता है और वही शख्स भी पराया भी लगता है और मेरी मिलने की तमन्ना बहुत है लेकिन आने-जाने में किराया बहुत लगता है।
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इश्क खता है तो ये खता एक बार नहीं सौ बार करों
तीसरी शायरी पेश करते हुए डॉ. राहत इंदौरी ने कहा कि तूफानों से आंख मिलाओ सैलाबों पर वार करों, मल्लाह का चक्कर छोड़ो तैर के दरिया पार करों। फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करों, इश्क खता है तो ये खता एक बार नहीं सौ बार करों। सुनो साहब इश्क दोनों की जरूरत है चलो इश्क करें। इसमें नुकसान का खतरा ही नहीं रहता है ये मुनाफे की तिजारत है चलों इश्क करें। आप ¨हदू, मैं मुसलमान, ये इसाई वो सिख, यार छोड़ ये सियासत है चलो इश्क करें।
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यारो तुमलोग भी लाहौर से बोला करो
डॉ. राहत इंदौरी ने आज के राजनीतिक व सांप्रदायिक तनाव का जिक्र करते हुए शायरी से कहा कि साहब सरहदों पर बहुत तनाव है क्या कुछ पता करो चुनाव है क्या। पाकिस्तान के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि जो तौर है दुनिया का उसी तौर से बोलो, बकरों का इलाका है जरा जोर से बोलो। साहब दिल्ली में हमीं बोला करे अमन की, यारो तुमलोग भी लाहौर से बोला करो। इसके अलावा भी कई शायरी डॉ. इंदौरी ने पढ़ी। वाह-वाह की आवाज से सारा हॉल गूंजता रहा।
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आपने तो पैदा करके छोड़ दिया हम उसे गिनने में लगे है : डॉ. हरीश
जमशेदपुर : आगरा से आए हास्य और व्यंग्य कलाकार डॉ. हरीश चतुर्वेदी ने सरकारी शिक्षा और शिक्षकों पर जमकर व्यंग्य कसे। उन्होंने कहा कि सरकारी शिक्षकों के पास पढ़ाने के अलावा सभी काम है। कहा कि एक सरकारी शिक्षक से पूछा कि आपने होली-दीवाली कैसे मनाई तो शिक्षक ने कहा कि अपनी कहां किस्मत कहा दीवाली मनाने की। रजिस्टर कंधे पर लटकाएं आंकड़ों का जाल बुनने में लगे है। आपने तो पैदा करके छोड़ दिया हम उसे गिनने में लगे हैं।
इसके अलावा उन्होंने मिड डे मील पर कहा कि चपरासी चीत के पतीते पर दंड पेल रहे, हेडमास्टर रोटी बेल रहे, सारा मास्टर खाना परोस रहे हैं। इस तरह स्कूलों में शिक्षा के बादल गरज रहे हैं। खाना स्वादिष्ट नहीं हुआ तो अधिकारी गोला दाग रहे हैं। खाना स्वादिष्ट बन जाए तो बच्चे भाग रहे हैं। स्कूल में गणित वाले मास्टर के नाम से नहीं खीर-पूरी बनाने वाले मास्टर के नाम से विख्यात हो गए है।
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अबे हजार के न मंदिर के रहे न मजार के
नोटबंदी पर बोलते हुए डॉ. हरीश ने 500 और एक हजार के नोट के बीच की बातचीत से एक बड़ा संदेश दे दिया। 500 का नोट हजार के नोट को डांट रहा है। कह रहा है कि अबे हजार के न मंदिर के रहे न मजार के, और भीड़ में घुसकर चिल्ल मोदी-मोदी, उसी ने सरकार में आकर तेरी कब्र खोद दी। यह सुनते ही श्रोता हंसते-हंसते लोटपोट हो गए। सड़क पर पड़े 20 रुपये के नोट के जरिए उन्होंने देश में फैले भ्रष्टाचार को बड़ी ही खूबसूरती से जनता के समक्ष प्रस्तुत किया।
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प्यार के दम पर ही चमकेगा अपना ¨हदुस्तान जमशेदपुर : जय है वीणा वादिनी, जय है वीणा वादिनी, सात सुरों की सृजन हार तू, वीणा की नव तार तू, धन्य-धन्य हे मां सरस्वती. जैसी पावन वंदना के साथ कवयित्री डॉ.सुमन दुबे ने कविताओं की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक काव्यगीत पेश किए। जमशेदपुर वासियों के लिए उन्होंने एक नई गीत प्रस्तुत की।
कहा कि प्यार बिना बेकार है जीना, प्यार है तो पत्थर को भी भगवान बना देता है। प्यार के दम पर ही चलती है सांसों की पतवार, लैला-मजनू, हीर-रांझा या हो राधा रानी का प्यार। प्यार जिसे हो गई, उसकी अमर कहानी। इसलिए तो मैने तुमसे कर डाला इजहार। प्यार ही रब है, प्यार ही मजहब गीता और कुरान। प्यार के दम पर ही चमकेगा अपना ¨हदुस्तान, प्यार बिना बेरारी रहेंगे जन-गण-मन के तार।
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एक शाम मुहब्बत का मेरे
नाम भी लिख देना
जमशेदपुर : डॉ. सुमन दुबे ने गीत प्रस्तुत करते हुए कहा कि अंजाम भी लिख देना, भेजे हैं कबूतर तो पैगाम भी लिख देना, उम्मीद की जुगनू लेके तेरे दर पे आयी हूं, एक शाम मुहब्बत की मेरे
नाम भी लिख देना, हम दिल नहीं रखते, जज्बात भी रखते हैं, जुल्फों में
बरसात भी रखते हैं, जो फूल समझते हैं, उनका ये खबर दे दो, हम कांटों से
निभाने की औकात भी रखते हैं गीत ने श्रोताओं को विभोर कर दिया। वहीं
मैं सुमन, मैं सुमन शीर्षक के साथ खुद को परिभाषित करने की उनकी अदा भी श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट का कारण बनी।
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मैं दौलत नहीं कमा पाया, मगर तुम्हारा हर एक गम खरीद सकता हूं..
जमशेदपुर : कवि डॉ विष्णु सक्सेना की चार-चार पंक्तियों के मुक्तकों ने श्रोताओं का दिल जीत लिया। खासकर 'प्यास बुझ जाए तो शबनम खरीद सकता हूं। जख्म मिल जाए तो मरहम खरीद सकता हूं। ये मानता हूं मैं दौलत नहीं कमा पाया। मगर तुम्हारा हर एक गम खरीद सकता हूं। सोचता था मैं कि तुम गिर के सम्भल जाओगे। रौशनी बन के अंधेरे को निगल जाओगे। ना तो मौसम थे ना हालात ना तारीख ना दिन। किसे पता था कि तुम ऐसे बदल जाओगे। जब भी कहते हो आप हमसे की हम चलते हैं। हमारी आंख से आंसू नहीं सम्भलते हैं'। श्रोताओं को इतना पंसद आया कि वे बार-बार चार पंक्तियां सुनाने का निवेदन डॉ. विष्णु सक्सेना से करते रहे।