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तीन-तीन दिनों तक बिना खाए- बिन सोए लड़ते रहे

विश्वरूप पांडा, जमशेदपुर : वर्ष 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में लौहनगरी के

By JagranEdited By: Published: Wed, 25 Jul 2018 01:30 AM (IST)Updated: Wed, 25 Jul 2018 01:30 AM (IST)
तीन-तीन दिनों तक बिना खाए- बिन सोए लड़ते रहे
तीन-तीन दिनों तक बिना खाए- बिन सोए लड़ते रहे

विश्वरूप पांडा, जमशेदपुर : वर्ष 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में लौहनगरी के वीरों ने भी अपने पराक्रम का प्रदर्शन किया था। 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में भारतीय सेना विजयी हुई। इस दिन को पूरे देश भर में कारगिल विजय दिवस के रुप में मनाया जाता है। लौहनगरी के वीर सपूतों ने भी कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने में अहम भूमिका निभाई थी। युद्ध में करीब 30 हजार भारतीय सैनिक शामिल हुए थे। इस युद्ध में शामिल शहर के सैनिक तीन-तीन दिनों तक बिना कुछ खाए और बिना सोए युद्ध के मैदान में डटे रहे। उन्हें युद्ध रुकने के बाद भी खाना नहीं मिल पाता था। उन्होंने बासी चावल खाकर युद्ध में विजय पताका फहराया। कारगिल युद्ध में शामिल शहर के सैनिकों के जेहन में आज भी युद्ध का वो मंजर ताजा है।

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बासी चावल धोकर खाना पड़ा था

मैं आर्टिलरी (फाइटिंग कोर) में था। युद्ध के समय कुछ दिनों की छुट्टी लेकर घर आया था। लेकिन, युद्ध होने की आशंकाओं के मद्देनजर छुट्टी रद्द कर दी गई और मुझे वापस बुला लिया गया। घर से सीधे जम्मू चला गया। वहां पहुंचते ही युद्ध में जाने की तैयारी करने को कहा गया। मंगलवार का दिन था। कैंप में शाम के समय पूजा चल रही थी। इसी दौरान वरीय पदाधिकारी द्वारा बटालियन तैयार करने का आदेश दिया गया। कैंप से करीब 800 किलोमीटर दूर पाकिस्तान के बॉर्डर क्षेत्र में युद्ध शुरू हो चुका था। वहां रात भर सफर करके पहुंचे। सैनिकों को किसी तरह की परेशानी नहीं हो इसलिए सभी गाड़ियों की आवाजाही बंद कर दी गई थी। बॉर्डर पर पाकिस्तानी सेना की ओर से लगातार गोले दागे जा रहे थे। इधर भारतीय सेना की संख्या कम थी। जहां एक गन को चलाने में सात सैनिकों की जरुरत पड़ती है। उसमें चार-चार सैनिक थे। तीन दिनों तक बगैर कुछ खाए-पिए और बिना सोए युद्ध चलता रहा। युद्ध शांत होने के बाद भूख से सभी जवान छटपटा रहे थे। भूख के मारे तीन दिन पुराना बासी चावल को पानी से धोकर खाना पड़ा था।

- विनय कुमार यादव (कारगिल योद्धा) ------------------------

जम्मू के रजौरी सेक्टर (मंडेर) में मैं तीन महीने तक तैनात था। यहां रहकर लगातार युद्ध में भाग लिया। रुक-रुक का युद्ध होता था। आजकल के युवाओं को सेना में शामिल होकर देश के लिए लड़ाई लड़नी चाहिए।

गौतम लाल कारगिल योद्धा

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1998 में सेना में योगदान दिया और एक साल बाद ही कारगिल युद्ध में जाने का मौका मिला। कारगिल में रेडियो ऑपरेटर के रूप में तैनात था। सूचना का आदान - प्रदान करना होता था।

- सत्य प्रकाश, कारगिल योद्धा

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एलओसी पर तैनात था और पूरे युद्ध में शामिल था। 19 मई 1999 से 2000 तक कारगिल में ही तैनात रहा।

- हवलदार बिरजू, कारगिल योद्धा

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एयर अ‌र्ब्जवेशन (वायु सेना) में तैनात था। युद्ध के दौरान घायलों के इलाज के लिए मेडिकल टीम तैयार कर हेलिकॉप्टर भेजना व युद्ध क्षेत्र में आवश्यकता अनुसार फाइटर जेट को सूचना देना आदि मुख्य काम था। थल सेना को पूरी तरह से मदद देने का काम किया गया।

तापस कुमार मजूमदार, कारगिल योद्धा

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पटाली सेक्टर तुर्तक में जाट रेजिमेंट में तैनात था। वहां सर्दी के दिनों में काफी परेशानी होती थी। प्रति दिन अपने इलाके में पेट्रोलिंग करते थे। पेट्रोलिंग टीम में 35-40 सैनिक होते थे। बर्फ से पूरा इलाका ढका हुआ होता था। इसका फायदा उठाकर पाकिस्तानी घुसपैठी करते थे। अप्रैल माह में बर्फ हटते ही घुसपैठियों की जानकारी मिलने लगी। जिसके बाद आला कमान को सूचना दी गई। आला कमान की ओर से आदेश मिलने के बाद अतिरिक्त फोर्स बुलाया गया ओर जून माह में पाकिस्तानी फौज पर हमला बोल दिया। करीब 72 घंटे लगातार गोली चली थी।

- नायाब सुबेदार कृष्णा मोहन सिंह, कारगिल योद्धा

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