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JRD Tata : जेआरडी टाटा सिर्फ विमान के पायलट नहीं थे, उद्योग के सफल नाविक भी थे

JRD Tata भारतीय उद्योग के अगुआ भारत रत्न जेआरडी टाटा ने जब टाटा समूह को संभाला था तो उसकी हालत अच्छी नहीं थी। होटल उद्योग से लेकर स्टील उद्योग तक मंदी के दौर से गुजर रहा था। जानिए जेआरडी ने कैसे स्थिति को संभाला

By Jitendra SinghEdited By: Published: Sat, 04 Dec 2021 09:10 AM (IST)Updated: Sat, 04 Dec 2021 09:10 AM (IST)
JRD Tata : जेआरडी टाटा सिर्फ विमान के पायलट नहीं थे, उद्योग के सफल नाविक भी थे
JRD Tata : जेआरडी टाटा सिर्फ विमान के पायलट नहीं थे, उद्योग के सफल नाविक भी थे

जमशेदपुर, जासं। टाटा संस के पूर्व चेयरमैन जेआरडी को सफल पायलट के रूप में सबसे पहले याद किया जाता है, लेकिन उन्होंने अपने जीवन में यह साबित कर दिया कि वे सिर्फ विमान के पायलट नहीं थे। उद्योग जगत के भी सफलतम नाविक रहे। 1932 में जब हवाई जहाज सिर्फ अमीरों के लिए सुलभ था, जेआरडी ने टाटा एयरलाइंस की शुरुआत की थी। इसके करीब तीन माह बाद उन्होंने कहा था कि एक दिन ऐसा आएगा जब लोग हवाई यात्रा के अलावा किसी अन्य माध्यम से यात्रा करने के बारे में नहीं सोचेंगे।

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जब नाज़ी दुनिया पर अत्याचार कर रहे थे, तो वह सोच रहे थे कि इस युद्ध के बाद भारत को कैसे आगे बढ़ाया जाए। उन्होंने 1945 में जमशेदपुर में टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी की स्थापना की, जिसे आज टाटा मोटर्स के नाम से जाना जाता है। भारत के लिए एक महान इंजीनियरिंग कंपनी स्थापित करना उनका सपना था।

नेहरू के जिगरी दोस्त रहे

जेआरडी टाटा देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के जिगरी दोस्त थे। उनकी सहायत से जेआरडी ने 1948 में एयर इंडिया इंटरनेशनल की शुरुआत की, जो पश्चिमी देशों के लिए उड़ान भरने वाली पहली एशियाई एयरलाइन थी। उन्होंने नेहरू को प्रस्ताव दिया कि केंद्र सरकार टाटा के साथ साझेदारी करे। नेहरू ने ऐसा किया भी।

जेआरडी का सपना था कि निजी उद्यम और सार्वजनिक उद्यम दो पहिए ही भारत को आगे ले जाएंगे। हालांकि एयर इंडिया इंटरनेशनल अपनी तरह का पहला और आखिरी उपक्रम बनकर रह गया। नेहरू और उनकी बेटी इंदिरा विमानन में उनकी क्षमता के लिए जेआरडी का सम्मान करते थे, लेकिन विचारधारा में मतभेदों के कारण नेहरू ने कभी उनसे भारतीय अर्थव्यवस्था और औद्योगीकरण पर उनसे परामर्श नहीं किया। जब पं. नेहरू का निधन हुआ तो जेआरडी बहुत दुखी थे।

लीडरशिप को नई परिभाषा दी

जेआरडी ने मैनेजमेंट का कोई कोर्स नहीं किया था, लेकिन इस क्षेत्र के माहिर माने जाते थे। उन्हें इस बात का गर्व था कि उन्होंने अपने जीवनकाल में सौ निदेशकों के साथ काम किया, जिन्हें उनकी विशिष्ट योग्यता के लिए भुगतान भी किया गया। जेआरडी कहते थे कि किसी व्यक्ति का नेतृत्व करना है, तो स्नेह के साथ करना होगा। जेआरडी के निधन के बाद रतन टाटा ने कहा था कि मैं उन्हें अपने चेयरमैन के रूप में नहीं, स्नेह के लिए याद करता हूं।

भाभा के लिए किया था योगदान

बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि जब होमी जहांगीर भाभा द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ने के बाद भारत में फंसे हुए थे। जेआरडी ने भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरू में विशेष न्यूक्लियर एनर्जी विभाग शुरू किया था, ताकि भाभा अपना काम जारी रख सकें, जो उन्होंने कैम्ब्रिज में किया था।

चार साल बाद उनके पास टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के लिए भाभा की योजना का समर्थन करने की दृष्टि थी। भाभा ने कहा कि भारत परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का उद्गम स्थल बन गया है। उनके निधन के करीब डेढ़ वर्ष पहले उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। मार्च 1992 में एक अमेरिकी अर्थशास्त्री ने कहा था कि अगली सदी में भारत एक आर्थिक महाशक्ति होगा। तब जेआरडी ने कहा था कि भारत आर्थिक महाशक्ति बने या नहीं, खुशहाल देश अवश्य बने


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