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JRD Tata Birth Anniversary : जब चीनी प्रधानमंत्री चू ऐन लाई ने जेआरडी से किराये पर लिया विमान, भारत से भी गरीब था चीन

JRD Tata Birth Anniversary एक समय चीन भारत से भी ज्यादा गरीब था। तब चीन के पास हवाई जहाज की कमी थी। उस समय भारतीय उद्योग के पुरोधा कहे जाने वाले जेआरडी टाटा ने चीन के प्रधानमंत्री को हवाई जहाज देकर मदद की थी।

By Jitendra SinghEdited By: Published: Thu, 29 Jul 2021 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 29 Jul 2021 09:32 AM (IST)
JRD Tata Birth Anniversary : जब चीनी प्रधानमंत्री चू ऐन लाई ने जेआरडी से किराये पर लिया विमान, भारत से भी गरीब था चीन
भारत से भी गरीब था चीन, प्रधानमंत्री चू ऐन लाई जेआरडी से किराये पर लेते थे विमान

वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर : चीन भले ही आज पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को अपने इशारे पर नचा रहा है, लेकिन एक समय वह भारत से भी गरीब था। उसके पास एक हवाई जहाज तक नहीं था। यह बात करीब 60-70 वर्ष पहले की है। चीन के प्रधानमंत्री चू ऐन लाई अक्सर विदेश यात्रा के लिए जेआरडी टाटा से किराये पर विमान लेते थे।

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पहली बार मई-जून 1954 के मध्य में चू ऐन को प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से मिलने दिल्ली आना था। इसके लिए उन्होंने जेआरडी टाटा को पत्र लिखकर किराये पर विमान उपलब्ध कराने को कहा। उस समय तक भारत सरकार के पास भी अपना विमान नहीं था। जेआरडी ही विमानन सेवा के सर्वेसर्वा थे। भारत सरकार इसके लिए उन्हें कोई शुल्क नहीं देती थी, ना लेती थी। केंद्र सरकार में नागर विमानन विभाग जरूर था, लेकिन उसका काम सिर्फ सर्टिफिकेट, लाइसेंस आदि देने तक सीमित था। एयर इंडिया निगम के रूप में काम करता था। बहरहाल, इस यात्रा के बाद जेआरडी ने नेहरू को पत्र लिखा ‘मुझे खुशी है कि चीन के प्रधानमंत्री के लिए हमने जिस उड़ान की व्यवस्था की थी, वह ठीक रही। प्रधानमंत्री ने हमारी सेवा की प्रशंसा की’।

चीन को मुख्यधारा में लाने की कोशिश कर रहे थे नेहरू

उस वक्त नेहरू चीन को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयासरत थे, क्योंकि अमेरिका का चीन सहित कई देशों के प्रति अच्छा नजरिया नहीं था। इसी बीच अप्रैल 1955 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पहला सम्मेलन इंडोनेशिया के बांडुंग में हुआ था। उसमें शामिल होने के लिए कई राष्ट्राध्यक्ष सहित चीन भी जाने को उत्सुक था।

तब चीन के पास कोई विमान नहीं था

चीन के पास विमान नहीं था जो उसके प्रधानमंत्री और उनके सचिवों को लेकर इतनी लंबी यात्रा कर सके। इसलिए उन्होंने एयर इंडिया का एक विमान किराये पर लिया। कश्मीर प्रिंसेस नामक इस विमान को चू ऐन लाई को दोपहर के समय हांगकांग में लेना था। लेकिन न तो चू ऐन लाई आए, ना उनके साथी मंत्री। कुछ छोटे अधिकारी अपने टाइपराइटर लेकर आ गए थे। विमान उन्हीं कर्मचारियों को लेकर उड़ा।

जब विमान में हो गया विस्फोट

करीब पांच घंटे की उड़ान के बाद जब यह करीब 18 हजार फुट की ऊंचाई पर समुद्र के ऊपर उड़ रहा था, तो उसमें विस्फोट हो गया। बाद में जेआरडी को पता चला कि उसमें टाइमबम रखा था। विमान में कुल 11 यात्री थे, जिनमें तीन बच गए। मरने वालों में आठ चीनी नागरिक थे। घटना की सूचना मिलने पर चू ऐन लाई एयर इंडिया के विमान डीसी-4 से सिंगापुर पहुंचे। उन्होंने राहत कार्य देख रहे दूसरे कैप्टन विश्वनाथ से पूछा, आपको चेतावनी नहीं दी गई थी। चीनी समाचार एजेंसी ने हमें चेतावनी दे दी थी। जेआरडी की जीवनी लिखने वाले आरएम लाला ने लिखा है कि विश्वनाथ अवाक रह गए। वह चीनी प्रधानमंत्री से यह भी नहीं पूछ सके कि आपने हमें क्यों नहीं बताया। चू ऐन लाई उसी विमान से इंडोनेशिया गए, जिससे वे सिंगापुर आए थे।

जेआरडी के कार्यकाल में चार विमान दुर्घटना हुई

जब जेआरडी टाटा एयर इंडिया के अध्यक्ष थे, उस दौरान चार विमान दुर्घटना हुई थी। पहली दुर्घटना 1949 में हुई, जब एक कांस्टेलेशन विमाान, जिसमें 40 नाविक थे, मांटब्लांक से टकराकर नष्ट हो गया। दूसरी 1955 में हुई, जो चीनी यात्रियों को लेकर इंडोनेशिया जाते समय विस्फोट से नष्ट हो गई। तीसरी दुर्घटना कुछ दिनों बाद आल्प्स पर्वतमाला पर हुई, जिसमें उनके प्रिय मित्र डा. होमी भाभा और बहनोई जियानी बेरतोली मारे गए। चौथी दुर्घटना उस समय हुई, जब एक जंबो विमान बम्बई से उड़ान भरने के कुछ ही समय बाद समुद्र में जा गिरा। यह 1978 की बात है।

1948 में हुई थी एयर इंडिया की स्थापना

भारत में एयर इंडिया इंटरनेशनल एयरलाइन 1948 में प्रारंभ हुई थी और 1978 में ही भारत सरकार ने जेआरडी टाटा को हटाकर एयर चीफ मार्शल पीसी लाल को इंडियन एयरलाइंस का अध्यक्ष बना दिया। जेआरडी को सरकार ने बिना बताए बर्खास्त कर दिया। संयोग से पीसी लाल इंडियन ट्यूब कंपनी के अध्यक्ष होने के नाते टाटा की सेवा में थे, लिहाजा लाल ने इस बात की सूचना जेआरडी को फोन पर दी। जेआरडी ने जमशेदपुर से मुंबई जाने के बाद नाराजगी भरा पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को लिखा था। जेआरडी को इस बात का दुख था कि जिस देश को उन्होंने 45 वर्ष तक निश्शुल्क सेवा दी, उस सरकार ने ऐसा क्यों किया।


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