Jivitputrika Vrat 2020 : जिउतिया का नहाय-खाय कल, व्रती 10 को रहेंगी निर्जला
Jivitputrika Vrat 2020.पौराणिक कथाओं व मान्यताओं के आधार पर माताओं द्वारा किया जाने वाला प्रमुख व्रत जीवत्पुत्रिका है जिसे जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
जमशेदपुर, जासं। पौराणिक कथाओं व मान्यताओं के आधार पर माताओं द्वारा किया जाने वाला जीवत्पुत्रिका प्रमुख व्रत है, जिसे जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत आश्विन कृष्णपक्ष की उदया अष्टमी तिथि को किया जाता है।
ऐसी मान्यताएं हैं कि जीवत्पुत्रिका व्रत को करने से संतान शोक नहीं होता है। अत: इस व्रत को माताएं संतान की लंबी आयु, रक्षा, आरोग्यता, सबलता, सुख समृद्धि एवं कष्टमुक्ति की कामना से करती हैं। क्षेत्रीय लोकाचार एवं मान्यताओं के आधार पर इस व्रत में माताएं सप्तमी तिथि को दिन में नहाय-खाय, रात में विधिवत पवित्र भोजन करके, अष्टमी तिथि के सूर्योदय से पूर्व भोर में ही सरगही व चिल्हो सियारो को भोज्य पदार्थ अर्पण कर व्रत का प्रारंभ करती हैं। व्रत के दौरान राजा जीमूत वाहन की कथा को श्रवण करती हैं।
राजा जीमूतवाहन की पूजा क्यों
राजा जीमूतवाहन अत्यन्त दयालु परोपकारी व धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने सर्पों की रक्षा हेतु अपने शरीर को गरुड़ के समक्ष भोजन हेतु समर्पित कर सर्प की माता को पुत्र शोक से बचाया। राजा के इस परोपकारी कृत्य से गरुड़ जी अति प्रसन्न हुए तथा राजा के कहने पर सभी मारे गए सर्पों को उन्होंने जीवित कर दिया। इसी कारण इस व्रत में राजा जीमूतवाहन की पूजा होती है तथा इस व्रत को जीवत्पुत्रिका व्रत या जिउतिया व्रत कहा जाता है। काशी एवं मिथिला से प्रकाशित पंचांगों के अनुसार जिउतिया व्रत गुरुवार 10 सितंबर को है। इस बार बुधवार 9 सितंबर को रात्रि 9:46 बजे तक सप्तमी तिथि रहेगी, तदुपरांत अष्टमी तिथि लग रही है। अष्टमी तिथि गुरुवार 10 सितंबर को रात्रि 10:47 बजे तक रहेगी, तदुपरांत नवमी तिथि लग जाएगी। पौराणिक व शास्त्रीय उल्लेखों के अनुसार सूर्योदयकालीन शुद्घ अष्टमी तिथि में व्रत करके तिथि के अंत में अर्थात नवमी तिथि में पारण करना वर्णित है। सप्तमी विद्घ अष्टमी तिथि में व्रत प्रारंभ करना शास्त्र सम्मत नहीं है।
मिथिला पंचांग में भी 10 को जिउतिया
कात्यायन के अनुसार जिउतिया व्रत सूर्योदय के उपरांत की शुद्घ अष्टमी में करना शास्त्रानुसार उचित है। अत: जिउतिया व्रत हेतु बुधवार 9 सितंबर को दिन में नहाय-खाय, रात्रि में शुद्घ भोजन, भोर में अर्थात रात्रि शेष 3:30 से 4:15 बजे के मध्य सरगही एवं गुरुवार 10 सितंबर को शुद्घ उदया अष्टमी तिथि में जिउतिया व्रत एवं पूजन करना श्रेयस्कर रहेगा। मिथिला पंचांग से भी जीवत्पुत्रिका व्रत 10 सितंबर गुरुवार को ही है। शुक्रवार 11 सितंबर को सूर्योदय के उपरांत प्रात: काल में पारण करना शास्त्रोचित रहेगा। विशेष परिस्थिति में गुरुवार 10 सितंबर को रात्रि 10:47 बजे के बाद नवमी तिथि में जलपान या पारण करना भी शास्त्र सम्मत है। व्रत के दौरान शांत चित्त, क्रोध विवाद व निंदा से दूर रहकर सदविचार के साथ भगवत् भजन व ध्यान करें। - पं. रमाशंकर तिवारी, ज्योतिषाचार्य