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झारखंड का एक ऐसा आंदोलन जिसकी तारीफ करने उस गांव में खुद पहुंचे थे नेताजी

Subhash Chandra Bose Jayanti 2021. नेताजी की याद सहेजे झारखंड का यह गांव। नेताजी सुभाष चंद्र बोस उस गांव में आए थे। आयोजित सभा को भी संबोधित किया। यह गांव पूर्वी सिंहभूम जिला के पोटका प्रखंड में स्थित है। इस गांव का नाम है कालिकापुर।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 08:46 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 10:01 AM (IST)
झारखंड का एक ऐसा आंदोलन जिसकी तारीफ करने उस गांव में खुद पहुंचे थे नेताजी
कालिकापुर मध्‍य विद्यालय परिसर में 1939 की सभा में नेताजी सुभाष चंद्र बोस। फाइल फोटो

जमशेदपुर, वेंकटेश्वर राव। parakram divas झारखंड के सिंहभूम में एक ऐसा गांव भी है, जिसकी तारीफ करने नेताजी सुभाष चंद्र बोस उस गांव में आए थे। सिर्फ यहीं नहीं वहां ग्रामीणों द्वारा आयोजित सभा को भी संबोधित किया। यह गांव पूर्वी सिंहभूम जिला के पोटका प्रखंड में स्थित है। इस गांव का नाम है कालिकापुर।

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देश की आजादी के लिए आंदोलनरत कालिकापुर ग्राम आज भी इतिहास के पन्नों से अछूता है। यहां के कुम्हारों के नेतृत्व में वर्ष 1934 में अंग्रेज शासन के दमन के खिलाफ किए गए आंदोलन के दौरान कालिकापुर थाना में तोड़फोड़ की गई व तत्कालीन दारोगा काली प्रसाद की पिटाई कर दी गई। इस घटना से देश की आजादी में मुख्य भूमिका निभाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसके बाद से कालिकापुर के लोगों से संपर्क साधने का प्रयास किया। उस वक्त के हालात को देखते हुए यह मौका नेताजी को 1939 में मिला। कालिकापुर आकर जनसभा को संबोधित करना आज भी सभी के दिल दिमाग में है। देश के आजादी के आंदोलन में कालिकापुर आंदोलन का नेतृत्व ईशान चंद्र भकत, कमल लोचन भकत और हरि चरण भकत के द्वारा किया गया।

थाना छोड़कर भाग गए थे थाना प्रभारी काली प्रसाद

कालिकापुर के आंदोलन को लेकर ईशान चंद्र भकत के पौत्र डा. विकास चंद्र भकत ने अपने दादाजी द्वारा सुनाई गई तत्कालीन घटना की जानकारी देते हुए बताया कि 1934 के पूर्व कालिकापुर ग्राम में अंग्रेजों ने थाना बनवाया था। 1934 में इस थाना में दारोगा के पद पर काली प्रसाद कार्यरत थे। जिनकी दमन कारी नीति से इस क्षेत्र के लोग काफी त्रस्त थे। इस दौरान पूरे भारतवर्ष में अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन का दौर चल रहा था। ईशान चंद्र भकत, कमल लोचन भकत और हरि चरण भकत इन तीनों भाइयों के आवास के सामने स्थानीय ग्रामीणों की एक बैठक हुई। बैठक में कालिकापुर थाना के तत्कालीन दारोगा काली प्रसाद के दमन और अत्याचार के खिलाफ आंदोलन करने का निर्णय लिया गया, लेकिन उस बैठक में भाग ले रहे कुछ बुजुर्गों ने कल करे सो आज कर की नीति पर चलने की बात कही।

तीन भाइयों ने संभाली थी अगुवाई की कमान

उन्होंने कहा कि क्यों न अभी तुरंत थाना पर आक्रमण किया जाए। इस पर सभी ग्रामवासियों ने उग्र हो कर थाना पर आक्रमण कर दिया एवं थाना परिसर में ही दारोगा यानि थाना प्रभारी की कर दी और थाना में तोड़फोड़ की। सबसे पहले ईशान चंद्र भकत और कमल लोचन भकत के बड़े भाई हरि चरण भकत ने दारोगा पिटाई की थी। इसके ग्रामीणों ने उनकी पिटाई। इस घटना के बाद वे थाना छोड़कर भाग गए। बाद में इस गांव से थाना को ही शिफ्ट कर दिया गया। पोटका में नया थाना बनाया गया।

जमशेदपुर के डिकोस्टा साहब की फोर्ड कार से नेताजी पहुंचे थे कालिकापुर

नेताजी के जमशेदपुर से सड़क मार्ग से हाता होते हुए कालिकापुर आने की सूचना पांच दिसंबर 1939 को निर्धारित थी। इसलिए नेताजी के स्वागत के लिए लोगों की भीड़ कालिकापुर से सवा किमी पश्चिम में सड़क मार्ग के किनारे खचा-खच भर गया था। स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रात: लगभग दस बजे जमशेदपुर के डिकोस्टा साहब की फोर्ड कार से कालिकापुर पहुंचे। पहुंचने के बाद लोगों में दुगुना उत्साह बढा और वंदेमातरम की आवाज से पूरा इलाका गुंजायमान हो उठा। स्वागत के लिए सड़क के दोनों किनारे खड़े महिल, पुरुष एवं बच्चों ने नेताजी पर फूल बरसाए और शंख की ध्वनि से महिलाओं ने वातावरण शुद्ध कर दिया। इस दौरान महिलाओं ने पारंपरिक रीति से पैर धुलाकर उनका स्वागत किया। समाज सेवी, स्वतंत्रता आंदोलनकारी और बाद में मुखिया बने स्व. ईशान चंद्र भकत एवं विशिष्ट ग्रामीण आदर सत्कार के साथ नेताजी को सभा स्थल कालिकापुर मिडिल स्कूल तक ले गए। इस सभा की अध्यक्षता ईशान चंद्र भकत एवं संचालन तत्कालीन शिक्षाविद और जाने-माने कविराज कमल लोचन भकत ने किया था। स्व. ईशान चंद्र भकत के पौत्र और स्व. डा. रमेश चंद्र भकत के पुत्र समाजसेवी डा. विकास चंद्र भकत ने अपने दादाजी द्वारा बताए गए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाषण को दोहराते हुए बताया कि नेताजी यहां लगभग दो घंटे तक लगातार बांग्ला भाषा में लोगों को संबोधित किया।

नेताजी ने कहा था कालिकापुर की घटना बनेगी स्वतंत्रता आंदोलन का अहम हिस्सा

कालिकापुर मिडिल स्कूल में सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भारत वर्ष में अभी अंग्रेजों का शासन चल रहा है। वे अपने इस शासन के दौरान भारत के लोगों पर दमन की नीति अपना रहे हैं। भारत वर्ष गुलामी की जंजीरों में जकड़ा है। इस जंजीर को देश प्रेमी ही तोड़ सकते हैं, इस जंजीर को तोड़ने के बाद ही हमें स्वतंत्रता मिलेगी। जिसके लिए भारत वर्ष के सभी जाति, धर्म व समुदाय के लोगों को एक साथ मिलकर स्वतंत्रता का आंदोलन करने की जरूरत है और स्वतंत्र होने की इच्छा शक्ति से ही देश आजाद होगा। नेताजी ने कहा था कि कालिकापुर के वासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ यहां की थाना पुलिस की दमनकारी नीति के खिलाफ जो कदम उठाया गया है, उससे ऐसा लगता है कि यहां की जनता में आंदोलन के प्रति काफी जोश खरोस है। कालिकापुर की घटना निकट भविष्य में स्वतंत्रता आंदोलन का अहम हिस्सा बनेगी।

आज भी यहां पूजी जाती है नेताजी की कुर्सी

कालिकापुर गांव आने वाले लोग तथा भकत परिवार के सदस्य आज भी नेताजी की कुर्सी की पूजा अर्चना उसी तरह करते हैं, जिस तरह अपने भगवान की। इसी कुर्सी में बैठकर नेताजी ने 1939 में पोटका के कालिकापुर मिडिल स्कूल में भाषण दिया था। सिर्फ यहीं नहीं नेताजी की स्मृति में यहां कई कार्य हुए हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्मृति में मिडिल स्कूल में स्वागत सत्कार के समय एक छोटे से चबुतरे में बैठे थे। उस सभास्थल में 1994 में कालिकापुर पंचायत के द्वितीय मुखिया हरे कृष्ण भकत द्वारा सरकार के अनुदान पर नेताजी के नाम से से चबुतरा का निर्माण करवाया। नेताजी की 100 वीं जयंती के अवसर पर 1996 में कालिकापुर तथा आसपास के ग्रामीणों के द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस उच्च विद्यालय की स्थापना की गई। जहां आज भी बच्चे पढ़ रहे हैं। 


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