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तीसरे मत के लिए तीस साल से लड़ रहे जवाहरलाल

जमशेदपुर में लोगों को तीसरे मत (नगर निकाय) का अधिकार नहीं है। जवाहरलाल शर्मा पिछले तीस साल से तीसरे मत के लिए लड़ रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 18 Aug 2018 01:12 PM (IST)Updated: Sat, 18 Aug 2018 01:12 PM (IST)
तीसरे मत के लिए तीस साल से लड़ रहे जवाहरलाल
तीसरे मत के लिए तीस साल से लड़ रहे जवाहरलाल

वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर : जमशेदपुर में लोगों को तीसरे मत (नगर निकाय) का अधिकार नहीं है। यहा किसी तरह की नगर निकाय नहीं है। अधिसूचित क्षेत्र समिति के जरिए सरकार नागरिक सुविधाएं मुहैया कराती है। समिति में जन भागीदारी नहीं होती। जनता को अधिकार दिलाने के लिए सोनारी के जवाहरलाल शर्मा तीस वर्ष से अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं। तीसरी बार यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। इस बार यह केस बिना फीस के वरिष्ठ वकील प्रशात भूषण लड़ रहे हैं। उम्मीद है अब फैसला हो जाएगा कि जमशेदपुर में नगर निगम बनेगा या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने 13 जुलाई को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार, टाटा स्टील व जुस्को से आठ हफ्ते में जवाब मांगा है।

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सोशल ऑडिट से खुली पोल : जवाहरलाल शर्मा बताते हैं कि 35 वर्ष पहले टाटा स्टील के चेयरमैन जेआरडी टाटा ने सोशल ऑडिट कराया था। वह जानना चाहते थे कि कंपनी शहरवासियों के लिए क्या कर रही है। शहरवासी क्या चाहते हैं। सोशल ऑडिट की जो रिपोर्ट, उसे देखकर जवाहर लाल चौंक गए। टाटा मेन अस्पताल से सटी हरिजन बस्ती का जिक्र तक नहीं था। जवाहरलाल रिपोर्ट तैयार करने वाली कमेटी के एक सदस्य रजनी कोठारी के घर दिल्ली चले गए। तब कोठारी ने बताया कि रिपोर्ट में वही है जो कंपनी के लोगों ने बताया। फिर जवाहरलाल ने जेआरडी टाटा को शिकायती पत्र लिखा। जेआरडी ने बंबई मुख्यालय से विशेष तौर पर टाटा हाउस के अधिकारी वीएन फड़के को जमशेदपुर भेजा। वीएन फड़के जब जमशेदपुर पहुंचे तो उन्होंने जवाहरलाल शर्मा से मुलाकात की। इससे फायदा यह हुआ कि रिपोर्ट में जिस हरिजन बस्ती का जिक्र नहीं था, कंपनी ने उसमें फ्लैट बनाने के लिए 35 लाख स्वीकृत कर दिए। फ्लैट बने भी। यह 1983 की बात है।

सर्वप्रथम 1988 में गया सुप्रीम कोर्ट : सिर्फ हरिजन बस्ती में फ्लैट बना दिया गया, लेकिन शहर अन्य इलाकों के लिए कुछ नहीं हुआ। इसी बीच जवाहरलाल को लीज समझौते की प्रति मिल गई, जो बिहार सरकार और टाटा स्टील (तब टिस्को) के बीच हुआ था। लिखा था कि कंपनी आसपास रहने वाले लोगों को नागरिक सुविधाएं देने के लिए बाध्य है। इसे आधार बनाकर 1988 में वह सुप्रीम कोर्ट चले गए। जवाहर ने यह केस वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी को सौंपा। इसकेबाद केस फाइल हो गया। 1989 में सुप्रीम कोर्ट ने नगरपालिका बनाने का आदेश दे दिया। लेकिन इसके बाद भी तत्कालीन बिहार सरकार ने अधिसूचना जारी नहीं की। 1991 में सुप्रीम कोर्ट के अवमानना के नोटिस के बाद अधिसूचना की गई।

सुप्रीम कोर्ट चली गई टाटा कंपनी : टाटा कंपनी बिहार सरकार के अधिसूचना में खामियों को इंगित करते हुए इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई। कुछ तकनीकी खामियों के कारण अधिसूचना पर स्टे लग गया। निर्देश दिया गया कि इसे संशोधित कर फिर से जारी किया जाए। लेकिन तत्कालीन एमडी डॉ. जेजे ईरानी ने घोषणा कर दी कि मामला खत्म हो गया। जवाहरलाल फिर दिल्ली गए। राम जेठमलानी से पता चला कि सुप्रीम कोर्ट का निर्देश पटना हाई कोर्ट को भेजा जा चुका है। इसलिए पटना हाई कोर्ट में अर्जी देकर तामिला करवाएं। अदालत में आवेदन दाखिल किया। इस मामले में पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार को संशोधित नोटिफिकेशन जारी करने का आदेश देते हुए याचिका का निस्तारण कर दिया। हाई कोर्ट के फैसले की कॉपी मिलते ही जवाहरलाल ने 2005 में हाई कोर्ट में फिर अपनी बात रखी कि अदालत के आदेश को सरकार ने लागू नहीं किया। दो दिन सुनवाई के बाद बिहार सरकार को नोटिफिकेशन लागू कराने का आदेश हाई कोर्ट ने जारी किया। इसे लागू कराने के लिए झारखंड सरकार को भी लिखा गया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। तीसरी बार जवाहर लाल ने फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहा उनका केस इस बार प्रशात भूषण लड़ रहे हैं।


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