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बच्चे प्यास से बिलबिलाए तो महिलाओं ने खोद डाला कुआं

प्यास और प्रयास से जुड़ी जरकी गांव की यह कहानी बेहद दिलचस्प है। सुनकर कोई भी दंग रह जाएगा। आप उन तीन महिलाओं को जरूर सलाम करेंगे जिन्होंने इतिहास रच डाला।

By Edited By: Published: Sat, 21 Jul 2018 08:00 AM (IST)Updated: Sun, 22 Jul 2018 02:58 PM (IST)
बच्चे प्यास से बिलबिलाए तो महिलाओं ने खोद डाला कुआं
बच्चे प्यास से बिलबिलाए तो महिलाओं ने खोद डाला कुआं

मुजतबा हैदर रिजवी, जमशेदपुर : प्यास लगी तो चले कुआं खोदने, आपने चर्चित कहावत खूब सुनी होगी। लेकिन झारखंड के एक छोटे-से गांव में यह कहावत सच साबित हो चुकी है। बच्चे प्यास से बिलख रहे थे। हर रोज चार किलोमीटर सफर कर तालाब व नाले तक जाना। पानी लेकर घर आना..। यह सिलसिला वर्षों से चल रहा था। लाचार महिलाओं ने हिम्मत से काम लिया और गांव में ही कुआं खोद डाला। अब यही कुआं सबकी प्यास बुझा रहा है। पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय जमशेदपुर से 45 किलोमीटर दूर पहाड़ों से घिरा एक गांव है- जरकी। इसी गांव की यह सच्ची कहानी है।

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गांव में पानी का कोई इंतजाम नहीं था। गांव वाले चार किलोमीटर पैदल जाकर तालाब और नाले का पानी भर कर लाते थे। इसी से किसी तरह काम चलता था। मई की एक दोपहर किसी के घर पीने का एक बूंद पानी नहीं था। बच्चे प्यास से बिलबिला रहे थे। गांव की सुकुरमुनी टुडू, सूरजमुनी टुडू और बसंती मुर्मू से बच्चों का रोना नहीं देखा गया। मर्द पानी लेने के लिए निकले तो इन औरतों ने हिम्मत जुटा कर कुआं खोदना शुरू कर दिया। जबतक घर के पुरुष लौटकर आते कुआं खुदकर तैयार हो गया था। महज दस फुट खुदाई के बाद ही पानी आ गया। गांव में तब से यह इकलौता कुआं सबकी प्यास बुझा रहा है। यह दीगर बात है कि पानी की गुणवत्ता कैसी है? अबतक इसकी जांच नहीं हुई है। कुआं की उम्र एक साल से ज्यादा हो चुकी है।

पूरे गांव की प्यास बुझाने का बना एकमात्र जरिया
जरकी गांव की आबादी लगभग डेढ़ सौ है। हर तरह से उपेक्षित गरीब आदिवासियों के इस गांव की ओर सरकार व शासन का कभी ध्यान नहीं रहा। गांव में पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है। चापाकल तक नहीं लगाए गए हैं। तालाब व नाले के पानी को छानकर ग्रामीण प्यास बुझाते रहे हैं। कुंआ की खुदाई के बाद यही पूरे गांव का बड़ा और इकलौता जलस्रोत बन गया है। अब लोगों को चार किलोमीटर का सफर नहीं करना पड़ता है। इस कुएं पर पानी भरने के लिए लोगों की भीड़ लगती है। इस कुआं को खोदने वाली बसंती मुर्मू बताती हैं कि जब तीन महिलाओं ने खुदाई शुरू की तो कई और महिलाएं मैदान में उतर पड़ीं। सबने मिलकर पहाड़ों के बीच खेत के किनारे कुआं खोद डाला। सीमेंट का एक पीपा रखकर इस कुआं को संरक्षित कर दिया गया है। इस कुआं का पानी सिर्फ पीने के लिए इस्तेमाल होता है। नहाने के लिए लोग तालाब का इस्तेमाल करते हैं। हाथ से बाल्टी डूबो निकाल लेते हैं पानी

इस कुआं की गहराई दस फुट है। पानी निकालने के लिए रस्सी की जरूरत नहीं पड़ती। हाथ से बाल्टी डूबोकर कुआं से महिलाएं पानी निकाल लेती हैं। बसंती मुर्मू कहती हैं कि भू-जलस्तर काफी ऊंचा है। क्योंकि हमने कुआं खोदने के लिए जिस स्थल का चयन किया वह पहाड़ों के बीच खेत का क्षेत्र है। यहां बारिश का पानी भी ठहरता है। जमीन भी रिचार्ज होती रहती है। जरकी गांव पहाड़ों से घिरे होने के कारण पेयजल एवं स्वच्छता विभाग यहां हैंडपंप लगाने या डीप बोरिंग करने में असमर्थ है। यहां इसके लिए मशीन ले जाना कठिन है। एकबार प्रयास किया गया लेकिन सफलता नहीं मिली। इसी वजह से सरकारी स्तर पर पेयजल का कोई साधन नहीं है।
- शिव चरण सिंह सरदार, मुखिया बेल्डीह पंचायत


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