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'त्रिधारा' में आदिवासी संस्कृति की झलक ने मोहा मन

बिष्टुपुर स्थित जी टाउन मैदान में गुरुवार की शाम को छऊ के साथ-साथ फिरकाल दासांई और रिझा नृत्य का प्रदर्शन किया गया। इन पारंपरिक नृत्यों को देख शहरवासी भी साथ-साथ जमकर थिरके।

By JagranEdited By: Published: Thu, 27 Feb 2020 11:42 PM (IST)Updated: Fri, 28 Feb 2020 06:14 AM (IST)
'त्रिधारा' में आदिवासी संस्कृति की झलक ने मोहा मन
'त्रिधारा' में आदिवासी संस्कृति की झलक ने मोहा मन

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : बिष्टुपुर स्थित जी टाउन मैदान में गुरुवार की शाम को छऊ के साथ-साथ फिरकाल, दासांई और रिझा नृत्य का प्रदर्शन किया गया। इन पारंपरिक नृत्यों को देख शहरवासी भी साथ-साथ जमकर थिरके। मौका था सांस्कृतिक मंत्रालय, भारत सरकार के अनुदान योजना के तहत कलामंदिर द्वारा आयोजित पारंपरिक नृत्य व गीतों के सांस्कृतिक उत्सव त्रिधारा का। उत्सव में शास्त्रीय, लोक व आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिली।

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उत्सव का उद्घाटन आयकर विभाग के प्रधान मुख्य आयुक्त अविनाश किशोर सहाय ने किया। मौके पर उन्होंने कहा कि लुप्त होती इन पारंपरिक कलाओं को संरक्षण की आवश्यकता है। ऐसे आयोजनों से कला और कलाकारों को नई उर्जा मिलती है। कार्यक्रम के पूर्व कलामंदिर ने फेरी निकाली, जो कलामंदिर प्रांगण से शुरू होकर छप्पन भोग होते हुए जी टाउन मैदान पहुंचा। फेरी में कई कलाकार अपने वेशभूषा में थे।

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सरायकेला व खरसावां छऊ ने किया भाव विभोर

खरसावां व सरायकेला छऊ ने मौजूद दर्शकों को भाव विभोर किया। खरसावां शैली के छऊ नृत्य में मुखौटा के स्थान में रंग का इस्तेमाल किया जाता है। पुरुष द्वारा किए जाने वाले नृत्य में शैववाद, शक्तिवाद और वैष्णववाद में दर्शाए विषयों पर आधारित रहता है। यहां खरसावां के गुरू परमानंद नंद ने अपनी टीम के साथ बेहतरीन प्रस्तुति देकर लोगों की तालियां बंटोरी। वहीं मुखौटे के साथ किए जाने वाले सरायकेला शैली के छऊ नृत्य की अभिव्यक्ति इतनी सशक्त है कि बगैर संवाद के ही कलाकार पूरी कथा समझा देते हैं। जी टाउन मैदान में सरायकेला के छऊ गुरू रजतेंदु रथ ने अपनी टीम के साथ प्रस्तुति को दर्शकों ने खूब सराहा।

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दासांई, फिरकाल और रिझा ने किया मंत्रमुग्ध

आदिवासियों के पारंपरिक दासांई, फिरकाल और रिझा नृत्य की प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। दासांई नृत्य दसई माह यानि दुर्गा पूजा के समय किया जाता है। स्त्री वेशधारी पुरुष दासांई नृत्य करते हैं। इसके पीछे भी पौराणिक कहानी है। धलभूमगढ़ के बबलू हांसदा और टीम ने दासांई नृत्य का प्रदर्शन कर उपस्थित लोगों को इसके पीछे की कहानी से रूबरू कराया।

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उत्सव में रिंझा टीम ने मोहा मन

उत्सव के दौरान पोटका के शिबू सोरेन व उनकी टीम ने रिझा नृत्य पेश किया। रिझा एक समुदाय नृत्य है, जो सावन पूर्णिमा के मौके पर गोम्हा पर्व पर किया जाता है। इसके साथ ही यहां आदिवासियों के युद्ध कला को प्रदर्शित करती फिरकाल नृत्य का भी प्रदर्शन किया गया। भूमिज समाज के लोग आखाइन जातरा के दिन फिरकाल नृत्य करते है। उत्सव में पोटका के रघुनाथ सरदार और टीम ने नृत्य के तहत युद्ध की मुद्राएं, आक्रमण और प्रतिआक्रमण की मुद्राओं को दिखाया। इस नृत्य के पूर्व कलाकार अपने इष्टदेव की पूजा करते हैं।

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सरस्वती वंदना से उत्सव का शुभारंभ

उत्सव का शुभारंभ सरस्वती वंदना के साथ हुआ। शहर की कथक नृत्यांगना वर्षा चक्रवर्ती ने शास्त्रीय नृत्य में कथक प्रस्तुत किया। नृत्य में उन्होंने सरस्वती वंदना की और बेहतरीन प्रस्तुति देकर दर्शकों की तालियां बटोरी। उत्सव का संचालन रंगकर्मी मो. निजाम ने किया। मौके पर कलामंदिर के सचिव विमान दासगुप्ता, उपाध्यक्ष अमिताभ घोष समेत कई लोग मौजूद थे।


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