Chhath Puja 2019: छठ गीत देते सामाजिक समरसता और पर्यावरण संरक्षण के संदेश Jamshedpur News
Chhath Puja 2019. लोकगीतों की मिठास हमारी परंपरा को मजबूती प्रदान करती है। आने वाली पीढ़ी को यह संदेश देती है कि यह आस्था व विचार ज्ञान सत्कार जुड़ने और जोड़ने का पर्व है।
जमशेदपुर, जासं। छठ महापर्व सामाजिक समरसता और एकजुटता को बल देता है। छठ गीत परंपरा के साथ समाज को स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता का भी संदेश देते हैं। छठ पूजा के मौके पर गाए जाने वाले लोक गीतों में नारियों का सम्मान, प्रकृति संरक्षण सहित कई संदेश छिपे होते हैं।
शिक्षित समाज का संदेश
छठ के गीतों में स्वास्थ्य व शिक्षित समाज का संदेश भी छिपा है। छठ मइया के गीतों से समाज को कई संदेश मिलते हैं, जो विकसित समाज के लिए आवश्यक हैं। छठ मइया की एक गीत 'रूनकी झुनकी बेटी मागीला, मागीला पठंत पंडित दामाद..।' गीत सुशिक्षित समाज को संतुलित करते हुए समाज में बेटियों की महत्ता एवं शिक्षा पर बल देता है। इस पर्व में स्वच्छता पहली शर्त है। लोग दीपावली की शेष गंदगी को छठ में साफ कर देते हैं। घर तो घर श्रद्धालु झाड़ू लेकर सड़कों पर भी उतर आते हैं। छठ गीतों में साफ-सफाई के साथ पवित्रता का भी संदेश छुपा है। गीतों से समाज को सीख लेने की आवश्यकता है।
- तोमर सतेंद्र सिंह, गीतकार
कर्म की वंदना
लोकगीतों की अपनी ही एक परंपरा है। इन परंपराओं में निहित लोक संस्कार, मान्यताएं और ईष्ट को समर्पित भाव सामाजिक सरोकारों से जोड़ते हैं। पहली बार व्रत करने वाली स्त्री अपने मायके से अपने भाई को संदेशा भेजती हैं कि 'अबकी छठ करब हम भईया, लेले अईहा भईया गेहूं के मोटरिया..'। मैथिली के परंपरागत गीतों में कौवा, कागा, तोता, कोयल के माध्यम से संदेश दिया जाता है, जो कर्म की वंदना के साथ पारिवारिक पृष्ठभूमि को जोड़ता है। व्रती महिलाएं जब गीत गाती हैं तो अपने मा बाबा के आगन को याद करती हैं। अपने ससुराल की संपन्नता की सौगंध लेती हैं। जेठ, देवर, ननद, ननदोई के साथ जो मीठे संवाद करती हैं, वह अपने में ही एक पारिवारिक सत्ता को मजबूती प्रदान करती हैं।
- डॉ. उमा सिंह किसलय, साहित्यकार
परंपरा होती मजबूत
लोकगीतों की मिठास हमारी परंपरा को मजबूती प्रदान करती है। आने वाली पीढ़ी को यह संदेश देती है कि यह आस्था व विचार, ज्ञान, सत्कार जुड़ने और जोड़ने का पर्व है। व्रतधारी स्त्रिया छठ गीतों के माध्यम से अपने परिवार की कुशलता, उनकी दीर्घायु, आरोग्य और संपन्नता की कामना करती हैं। छठ के अवसर पर कई लोक गीत गाए जाते हैं। इन लोकगीतों की विशेषता सामाजिक समरसता है। अमीर-गरीब ऊंच-नीच का भेद किए बिना सभी के बीच मधुर संबंध इन गीतों में दिखते हैं। छठ के गीतों में बटोहिया, कहार, कहारन, पंडित आदि समेत हर वर्ग का जिक्र मिलता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि हमारा समाज मूलत: समरसता पर आधारित समाज है।
- डॉ. जूही समर्पिता, साहित्यकार
पारिवारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति
महापर्व छठ के गीतों में पारिवारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। पूर्ण रूप से प्रकृति से जुड़े पर्व के गीतों में भी प्रकृति का ही उल्लेख मिलता है। गीतों में नदी, फल, चिड़िया आदि का उल्लेख इनके संरक्षण का संदेश ही है। छठ व्रती अपने मन के बातों की अभिव्यक्ति गीतों के माध्यम से करती हैं। भगवान भास्कर से कुछ मांगना हो या परिवार की कुशलता सभी गीतों के माध्यम से मांगा जाता है। इसके साथ ही समाज को आपसी समरसता बनाए रखने के साथ प्रकृति की रक्षा, पशु-पक्षियों की सुरक्षा और जल संरक्षण का संदेश मिलता है। समाज को छठ गीतों से मिलने वाले संदेश पर अमल करना चाहिए।
- डॉ. निधि श्रीवास्तव, साहित्यकार