कोल्हान की मनोरम वादियां बुलातीं हैं पर्यटकों को, स्थलों को विकसित करने की जरूरत
मनोरम वादियों से आच्छादित कोल्हान के तीनों जिलों में पर्यटन के विकास की असीम संभावनाएं हैं। जल जंगल एवं पहाड़ से आच्छादित यहां की वादियां वैसे तो सैलानियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती ही हैं जिले के आसपास मौजूद कई पुरातात्विक अवशेष भी लोगों के जानकारी और निरंतर खोज का विषय बन सकते हैं। इन सब के बावजूद विडंबना यह है कि सरकारी स्तर पर कोई भी प्रयास यहां के विकास के लिए नहीं हो रहा है।
दिलीप कुमार, जमशेदपुर : प्रकृति की मनोरम वादियों से आच्छादित कोल्हान के तीनों जिलों में पर्यटन के विकास की असीम संभावनाएं हैं। जल, जंगल एवं पहाड़ से आच्छादित यहां की वादियां वैसे तो सैलानियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती ही हैं, जिले के आसपास मौजूद कई पुरातात्विक अवशेष भी लोगों के जानकारी और निरंतर खोज का विषय बन सकते हैं। इन सब के बावजूद विडंबना यह है कि सरकारी स्तर पर कोई भी प्रयास यहां के विकास के लिए नहीं हो रहा है। सबसे बड़ी समस्या इन स्थलों में जरूरी सुविधा और सुरक्षा को लेकर है।
कोल्हान के सरायकेला-खरसावां ओर पूर्वी सिंहभूम जिले में कई स्थानों पर पुरातात्विक अवशेषों की भरमार है। ईचगढ़ गांव के निकट चतुर्मुर्खा शिव मंदिर में चार मुंह वाला प्राचीनकालीन शिव लिग स्थापित है। इसके इर्द गिर्द कई भग्नावशेष बिखरे पड़े है, जो हमारे ऐतिहासिक धरोहर की निशानी है। इन स्थानों की खुदाई कर ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित किया जा सकता है। जमशेदपुर शहर से सटे कुछ ऐसे स्थान हैं जहां प्रकृति ने अपने अनुपम सौंदर्य बिखेरी है। सरकार कम खर्च पर आसानी ऐसे स्थानों को बेहतर पर्यटन स्थल के रूप में विकसीत कर सकती है।
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राजा विक्रमादित्य के कहने पर बेताल ने बनाई थी यहां मूर्तियां पूर्वी सिंहभूम जिले के बोड़ाम प्रखंड के पहाड़ों और जंगलों से घिरा एक गांव है 'भुला'। इस गांव के बाहर एक स्थान पर प्राचीन काल की मूर्तियां और धरोहरों के भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। इस स्थान पर भूमिज मुंडा समाज का हाड़शाली यानी श्मशान है।
इन भग्नावशेष के महत्व को समझते हुए सरकार और विभाग नहीं बल्कि 'विरासत संरक्षण संस्थान' पीढ़ी दर पीढ़ी इसे सुरक्षित रखे हुए है। प्राचीन मूर्ति व भग्नावशेष राजा विक्रमादित्य काल के बताए जाते हैं। मूर्तियां व पुरातात्विक धरोहर यहां कब और कैसे पहुंची, यह किसी को भी पता नहीं है। गांव और आसपास के क्षेत्र में प्रचलित कथा के अनुसार राजा विक्रमादित्य ने 'बेताल' से अपने सभी इष्ट देवी-देवताओं की मूर्तियां बनवाने की इच्छा प्रकट की थी, तब बेताल ने ही इन मूर्तियों का निर्माण किया था। कुछ लोग इन विरासतों को गौतम बुद्ध और महावीर जैन से भी जोड़ कर देखते हैं। प्राचीन मूर्तियों और धरोहरों को बौद्ध व जैन के समय के बताते हैं। भुला के अलावा डांगडुंग और पवनपुर में भी पुरातात्विक धरोहर के भग्नावशेष हैं। पौष संक्रांति में जुटते हैं लोग
पौष संक्रांति में और अन्य विशेष अवसरों पर यहां पूजा-पाठ की जाती है। भुला में पौष मेला भी लगता है। दूर-दराज से लोग जुटते हैं।
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प्रकृति की अनुपम सुंदरता समेटे है पहाड़भांगा
हरी-हरी घास के ऊपर बादलों की चहलकदमी, बादलों के बीच सूरज की लुकाछिपी, कल-कल करती जलधारा व पहाड़ देखते ही बनते हैं। ऐसा ही एक स्थल है पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड का पहाड़ भांगा। इसे प्रकृति ने अनुपम सुंदरता से संवारा है। प्रकृति के सानिध्य का अहसास कराता यह पहाड़ भांगा वर्तमान में अपनी पहचान का मोहताज है। पहाड़ भांगा को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने से जहां स्थानीय बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलेगा, वहीं पर्यटन के मानचित्र पर जिले का सुदुरवर्ती गांव भी उभरेगा।
पहाड़ भांगा में कल-कल करती स्वच्छ जल की बहती नदी और नदी के बीच व आसपास चट्टान, ऊंचे-ऊंचे पहाड़ कोल्हान का खूबसूरत स्थल है। यहां आने वालों की निगरानी ग्राम सभा करती है। लोवाडीह के पास ग्राम सभा ने बोर्ड लगाया है। इसमें आवश्यक निर्देश दिए गए हैं। ग्राम सभा ने परिसर में प्लास्टिक के उपयोग पर पाबंदी लगा रखी है। पहाड़भांगा में सिर्फ परिवार के साथ ही आने की अनुमति है। प्रेमी जोड़े के पकड़े जाने पर पांच हजार रुपये जुर्माना के साथ कार्रवाई भी की जाती है। एक किलोमीटर के परिधि में शराब नहीं पी सकते।
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अनंत सौंदर्य समेटे है पहाड़ों से घिरे पालना डैम की सुहानी वादियां कुदरत ने अपनी चित्रकला से पालना डैम की पहाड़ियों व वादियों के सौंदर्य को मनमोहक ढंग से उकेरा है। हरे-भरे जंगलों से लदी पर्वत श्रेणियों की तलहटी में प्रकृति की सुंदरता के अनमोल खजाने हैं। यहां पर सैलानी मछली मारने का भी आनंद उठाते हैं। पालना डैम कुछ वर्ष पहले तक अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक था। नवंबर से लेकर मार्च माह तक सैलानी आते थे। अब यह रमणीक स्थल सरकारी उदासीनता और नक्सली खौफ का शिकार हो चुका है। हरी-भरी वादियों के बीच बसा यह डैम अब अपनी बर्बादी की दास्तां सुना रहा है। करीब दो दशक से सरकार द्वारा इस पर्यटन स्थल की ओर ध्यान न दिए जाने के कारण यह वीरान होता गया।
पालना डैम में पर्यटन के विकास के लिए सरकार यदि सैलानियों के ठहरने को रेस्ट हाउस, डैम में वोटिग, रेस्टोरेंट, पर्याप्त रोशनी की सुविधा उपलब्ध कराए तो फिर एकबार क्षेत्र गुलजार हो सकता है।
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प्रकृति की खूबसूरती निहारनी है तो आइए कांदरबेड़ा
जमशेदपुर शहर से रांची जाने वाले मार्ग पर करीब दस किलोमीटर दूर स्थित पिकनिक स्पॉट कांदरबेड़ा में नए साल के स्वागत और सूर्योपासना के महापर्व छठ के मौके पर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। प्रकृति ने कांदरबेड़ा में अपने अनुपम छटा बिखेरी है। दो ऊंचे पहाड़ों के बीच बहती स्वर्णरेखा की जलधाराएं लोगों को आनंदित करती हैं। वहीं पानी पर अटखेलिया करतीं मछलिया लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
कांदरबेड़ा पिकनिक स्पॉट पर किसी भी तरह की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है, बावजूद नववर्ष के पहले दिन और सूर्योपासना के महापर्व छठ के मौके पर यहां लोगों की जुटान होती है। यहां से दो किलोमीटर की दूरी पर टाटा-रांची राष्ट्रीय राजमार्ग-33 है। मुख्य सड़क के किनारे कई होटल व रेस्टोरेंट है, जहीं भोजन और ठहरने की उत्तम व्यवस्था है।
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एशिया का सबसे घना साल वन सारंडा एशिया का सबसे घना साल वन सारंडा लगभग 820 वर्ग किलोमीटर में फैला है। हो भाषा में सारंडा का अर्थ 700 पहाडि़यों से घिरी भूमि होती है। लंबे घने साल वृक्ष इस वन की सुंदरता में चार चांद लगा देते है। इस जंगल का अधिकांश हिस्सा पश्चिमी सिंहभूम जिले में पड़ता है। पहले यहां दूर-दराज से पर्यटक आते थे।
---------- पर्यटकों के लिए चांडिल में नहीं है सुविधाएं
स्वर्णरेखा नदी पर स्थित चांडिल डैम प्रकृति के सानिध्य का अहसास कराता है। डैम के पास स्थित पातकुम पुरातत्व संग्रहालय में चट्टानों पर लिखी गई लिपियां हैं, जो 2000 वर्ष पुरानी हैं। डैम की ऊंचाई 220 मीटर है और इसके पानी के स्तर की ऊंचाई अलग-अलग जगहों से 190 मीटर है। देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले पर्यटक नौकायन और आसपास की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेते हैं। प्रकृति के अनुपम धरोहर वाले चांडिल डैम में पर्यटकों के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।
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पर्यटन को बढ़ावा देने की बात हवा-हवाई चांडिल को विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल बनाने, दलमा में रोपवे लगाने, विलेज टूरिज्म को बढ़ावा देने समेत सरकार की कई घोषणाएं अबतक हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। चांडिल डैम में भी एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ तक रोपवे लगाने की घोषणा की गई थी। यहां पर्यटन के विकास के लिए दस एकड़ जमीन पर्यटन विभाग को सौंपे जाने की बात कही गई थी, जहां पर्यटकों को सभी सुविधाएं देने की बात थी। चांडिल डैम के समीप टूरिस्ट रिसॉर्ट बनाने का मामला भी अधर में लटका है। झारखंड पर्यटन विभाग ने पटमदा व चांडिल के आसनबनी के समीप से दलमा मंदिर तक रोपवे की योजना बनाई थी। रोपवे बनाने वाली कंपनी के प्रतिनिधियों के साथ पर्यटन विभाग ने स्थल का निरीक्षण भी किया था, लेकिन वन विभाग ने अड़ंगा डाल दिया, जो अबतक लंबित है। चांडिल डैम और दलमा पहाड़ पर एडवेंचर ट्रेकिग के लिए ट्रेकिग, साइकिलिग, मछली पकड़ने के साथ पर्यटकों के ठहरने के लिए कॉटेज बनाने की योजना खटाई में पड़ गई है।
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पर्यटक स्थलों तक जाने का केंद्र है जमशेदपुर वैसे तो जमशेदपुर अपने आप में पर्यटन स्थल है, इसके साथ ही यह शहर आसपास के कई बेहतरीन पर्यटन स्थलों तक पहुंचने का केंद्र भी है। लौहनगरी स्थित डिमना लेक, जुबिली पार्क, निक्को पार्क, जयंती सरोबर, हुडको डैम समेत कई दर्शनीय स्थलों को अपने अंदर सीमट कर रखी है। वहीं जमशेदपुर से दलमा पहाड़, बुरुडीह डैम, चांडिल डैम, पालना डैम, पहाड़भांगा, गुर्रा नदी, महादेवशाल मंदिर, जयदा मंदिर, पारडीह काली मंदिर, सारंडा जंगल, भूरीडीह डैम, चित्रेश्वर धाम, भारागिरी, भीमखांदा, आकर्षणी पहाड़, रंकिनी मंदिर, हाथीखेदा ठाकुर मंदिर समेत कई पर्यटन व दर्शनीय स्थलों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। जमशेदपुर के रेलवे स्टेशन पर राजधानी, दुरंतो समेत सभी प्रमुख ट्रेनों का ठहराव होता है। शहर राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ हवाई मार्ग से भी जुड़ा है।