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चीनी राखियों का हो रहा बहिष्कार, गिन्नी व नग वाली राखियों से पटा बाजार

इस वर्ष रक्षा बंधन तीन अगस्त को है। दुकानें रंग-बिरंगी राखियों से पट गई हैं। इस बार त्योहार पर बाजार में देशी राखियों की भरमार है।

By Edited By: Published: Mon, 13 Jul 2020 01:19 AM (IST)Updated: Mon, 13 Jul 2020 11:31 AM (IST)
चीनी राखियों का हो रहा बहिष्कार, गिन्नी व नग वाली राखियों से पटा बाजार
चीनी राखियों का हो रहा बहिष्कार, गिन्नी व नग वाली राखियों से पटा बाजार

जमशेदपुर (जासं)। इस वर्ष रक्षा बंधन तीन अगस्त को है। दुकानें रंग-बिरंगी राखियों से पट गई हैं। लेकिन इस बार त्योहार पर जहां कोरोना महामारी का प्रकोप देखने को मिल रहा है, वहीं देशप्रेम का भी रंग चढ़ा है। यही कारण है कि बाजार में सजी राखियों की दुकानों से चीनी राखियां गायब हैं। हर साल चमकीली और फैशनेबल चीनी राखियों से भाई के प्रति अपने प्यार का इजहार करने वाली बहनें भी इस बार देशी राखियों को ही तवज्जो दे रही हैं। वहीं स्टोन (नग) वाली राखी के साथ गिन्नी राखी, लूंबा राखी और मोदी राखियों की मांग भी बढ़ी है। इन राखियों की कीमत पचास रुपये से लेकर पांच सौ रुपये तक है। लड़कियां अपने भाई के लिए पूरी कलाई को स्टोन की खूबसूरत डिजाइन से ढकने वाली और ब्रेसलेट स्टाइल की राखी अधिक पसंद कर रही हैं। बहनों को खास तौर पर जरी और धागे वाली राखी पसंद आ रही है। 10 से 50 रुपये तक मिलने वाली इन राखियों की भी बहुत मांग है। मोती में पिरोए धागे की राखियां काफी आकर्षक है।

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कोरोना महामारी के कारण अन्य वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष राखी की बिक्री कम है। व्यापारी नहीं ले रहे रिस्क लौहनगरी का कोई व्यापारी चीनी माल को बेचने का रिस्क नहीं उठा रहा है। इस बार कोलकाता व मुंबई की बनी राखियां बाजार में ज्यादा दिख रही हैं। वहीं स्थानीय राखियां भी बाजार में मौजूद हैं। साकची और जुगसलाई स्थित राखी के थोक विक्रेता बिक्री शुरू कर दिए हैं। महामारी के दौर में व्यापारी अन्य वर्ष की तुलना में इस बार कम राखी मंगाए हैं। भारत और चीन के बीच हाल ही में पनपे सीमा विवाद के बाद चीनी सामानों का विरोध का सिलसिला शुरू हुआ। सोशल मीडिया के बाद चौक-चौराहों पर विरोध प्रदर्शन किए गए। अब धरातल पर व्यावहारिक तौर पर चीन का विरोध दिखने लगा है। पचास करोड़ का है कारोबार लौहनगरी में राखी का कारोबार करीब पचास करोड़ का है। शहर में 45 से 50 बड़े थोक व्यवसायी हैं। यहां से पूरे कोल्हान प्रमंडल के अलावा पश्चिम बंगाल व ओडिशा के कुछ क्षेत्रों में राखी की खरीदारी की जाती है। रक्षा बंधन के 20-25 दिन पहले से ही राखी बाजार सज जाते हैं। राखी के हर थोक बिक्रेता 15 से 20 लाख का कारोबार करते हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में खुदरा बिक्रेता हैं। इनमें से कई सीधे कोलकाता से राखी मंगाकर बेचते हैं।

क्या कहते हैं व्यापारी

अन्य वर्ष की तुलना में राखी की बिक्री कम हो रही है। कोरोना महामारी के दौर में हर व्यापारी कम राखी मंगाए हैं। कब लॉकडाउन लग जाए कहना मुश्किल है। चीन से बच्चों के लिए राखी आती थी। इस वर्ष भी बाजार में चीनी राखी हैं, लेकिन खरीदार इसे लेने से परहेज कर रहे हैं। - हितेश, व्यवसायी

कोरोना संक्रमण के कारण इस वर्ष राखी की बिक्री अबतक परवान नहीं चढ़ी है। शहर के लगभग सभी कारोबारी चीनी राखी का बहिष्कार कर रहे हैं। शहर में बनाई जाने वाली राखी की मांग भी काफी है। गिन्नी और लूंबा डिजाइन वाली राखी अधिक पसंद की जा रही है। - जगदीश शर्मा, व्यवसायी

इस बार हमने चीनी राखियों को नकारते हुए अपने कारीगरों द्वारा बनाए गए राखियों को अधिक परोसा है। बाजार में स्टोन की राखियां इस बार काफी चलन में हैं और लोग इसकी मांग कर रहे हैं। कई महिलाएं है प्रतिवर्ष कारीगर लगाकर राखी बनवाती हैं। - अपर्णा कजरिया, व्यवसायी

लोगों का क्या है कहना

रक्षा बंधन के मौके पर भाई को पहले चीन निर्मित डिजाइन वाली राखी बांधती थी। इस बार ऐसा नहीं होगा। जो हमारे देश से दुश्मनी करेगा हमें उस देश में निर्मित सामान का बहिष्कार करना चाहिए। इस वर्ष कोरोना के कारण सादगी पूर्वक रक्षा बंधन का त्योहार मनाऊंगी। - रेणू शर्मा

रक्षा बंधन पर चीन का विरोध करते हुए इस वर्ष मौली और अक्षत के साथ राखी बांधने का प्लान तैयार की हूं। कोरोना माहामारी के कारण इस बार सिर्फ परंपरा का निर्वाह किया जाएगा। किसी प्रकार का विशेष कार्यक्रम नहीं होगा। - सुष्मिता सरकार

इस वर्ष रक्षा बंधन त्योहार पर भाई घर नहीं आएंगे। बाहर रहने वाले भाई को डाक से राखी भेज दी हूं। कोरोना महामारी के कारण उन्हें घर नहीं आने के लिए कहा गया। जो घर में हैं, उन्हें शहर में बनाई गई राखी बांधकर त्योहार मनाऊंगी। - प्रभा तिवारी


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