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सवर्ण आरक्षण के दूरगामी परिणाम पर संदेह : प्रो. बल्लभ

upper cast reservation. देश के प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान एक्सएलआरआइ के प्रो. विश्व बल्लभ मानना है कि सवर्ण आरक्षण से कोई दूरगामी परिणाम निकलेगा, इसमें संदेह है।

By Edited By: Published: Mon, 14 Jan 2019 07:31 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 05:24 PM (IST)
सवर्ण आरक्षण के दूरगामी परिणाम पर संदेह : प्रो. बल्लभ
सवर्ण आरक्षण के दूरगामी परिणाम पर संदेह : प्रो. बल्लभ

जमशेदपुर,जागरण संवाददाता। केंद्र सरकार ने सवर्णो के लिए 10 फीसद आरक्षण की न केवल घोषणा की, बल्कि उसे तीन दिन के अंदर पारित कराकर ऐतिहासिक भी बना दिया। हालांकि, इस आरक्षण को लेकर ना कहीं कोई बवाल हुआ, ना कहीं बहुत विरोध हो रहा है। इसके बावजूद आरक्षण को लेकर एक बहस जरूर छिड़ गई है। ऐसे में दैनिक जागरण ने अपने नियमित कार्यक्रम 'जागरण विमर्श' में सोमवार को देश के प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान एक्सएलआरआइ-जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के प्रो. विश्व बल्लभ (अर्थशास्त्र) को आमंत्रित किया था। उन्होंने करीब एक घंटे तक आरक्षण के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला।

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विमर्श के दौरान सवाल उठा कि आरक्षण से किसे होगा फायदा? इसपर प्रो. वल्लभ ने कहा कि सबसे पहली बात कि सवर्ण आरक्षण का फायदा किसे मिलेगा। क्या इसका हश्र भी वैसा ही होगा, जैसा अब तक अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) को मिले आरक्षण के साथ हुआ। आजादी के सत्तर वर्ष बाद भी इनका स्तर क्यों नहीं सुधरा। आज भी अधिकांश आदिवासी या जनजाति हर स्तर पर पिछड़ी क्यों है?

राजस्थान में मीणा जाति अपवाद

राजस्थान की मीणा जाति अपवाद है, लेकिन उनकी तरक्की का कारण सिर्फ आरक्षण नहीं है। वैसे भी एससी-एसटी में आरक्षण का लाभ ज्यादातर वही परिवार के लोग ले पाए, जिसके पहले व्यक्ति ने अपनी स्थिति सुधार ली या बेहतर स्थिति में आ गया। कम पढ़े-लिखे, अनपढ़ और गरीब की स्थिति जस की तस है। इससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि सवर्ण आरक्षण का लाभ भी वैसे लोग ही उठाएंगे, जिनके संबंधी या रिश्तेदार प्रभावशाली होंगे। इस हिसाब से कहा जा सकता है कि सवर्ण आरक्षण से कोई दूरगामी परिणाम निकलेगा, इसमें संदेह है। जहां तक सामाजिक जीवन को उन्नत या बेहतर बनाने की बात है, तो हमें ऐसे समाज की परिकल्पना करनी चाहिए, जिसमें हर बच्चे को समान अवसर मिले। उसके लिए हर बच्चे को अनिवार्य रूप से शिक्षा उपलब्ध कराने के प्रयास करने होंगे। अभी यह नहीं है। आर्थिक स्थिति के हिसाब से अलग-अलग वर्ग-समुदाय के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

सिर्फ कुशल कामगार तैयार करना काफी नहीं

सिर्फ कुशल कामगार तैयार करने से भी काम नहीं चलेगा। बीए-एमए पास छात्रों को भी व्यवहारिक रूप से दक्ष बनाने की आवश्यकता है। हमें पारंपरिक शिक्षा पद्धति की ओर लौटना होगा। ज्ञान अर्जन के साथ उस ज्ञान का जीवन में उपयोग करना भी सिखाना होगा। वैसे सवर्ण आरक्षण की सीमा आठ लाख रुपये करने से लगभग 90 फीसद लोग आ जाएंगे। क्या सरकार के पास इतनी नौकरियां हैं कि पहले से आरक्षण के दायरे में शामिल लोगों के अतिरिक्त सवर्णो को भी इसका लाभ दिया जा सके। इसलिए सरकार को सबसे पहले नौकरी के अवसर बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए, तभी इसका कुछ फायदा होगा। आज बेरोजगारी भारत की नहीं, पूरी दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है।

किसी का विरोध नहीं होना आश्चर्य

एक्सएलआरआइ के प्रोग्राम मैनेजर (एंट्रेप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट सेंटर) राजीव सिंह का कहना है कि पहली बार जब आरक्षण को संविधान में शामिल किया गया था, तो लोकसभा व राज्यसभा में महीनों बहस हुई थी। नब्बे के दशक में मंडल कमीशन के लागू होने पर भी देश भर में आंदोलन हुए, जबकि सवर्ण आरक्षण तीन दिन में लागू हो गया, आश्चर्य का विषय है। राजद व एमआइएम को छोड़कर किसी क्षेत्रीय दल ने भी विरोध नहीं किया। इससे बड़ी बात कि मंडल कमीशन के समय अखबारों की हेडिंग 'आरक्षण की आग' होती थी, वह इसे 'आरक्षण की खुशी' लिखी गई। इन सब मसलों पर भी शोध-बहस होना चाहिए कि इन बीस-तीस वर्षो में लोगों की सोच में इतना परिवर्तन कैसे हो गया।


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