ISC 2020 : ट्यूशन नहीं, मन लगाकर की पढ़ाई और बन गया झारखंड का टॉपर Jamshedpur News
राजेंद्र विद्यालय के आइएससी टॉपर आयुष को मिला 99.50 फीसद अंक कहा-मेरी लगन देख पापा कहते थे बेटा नाम करेगा।
जमशेदपुर (अमित तिवारी)। जो भी करें दिल से करें, सफलता जरूर मिलेगी। कोई भी काम जबरदस्ती नहीं करें। वह अपने आप को धोखा देने जैसा ही हैं।
उक्त बातें राजेंद्र विद्यालय के आइएससी टॉपर आयुष कुमार ने दैनिक जागरण से कही। शुक्रवार को जारी परिणाम के बाद आयुष कुमार को बधाई देने वालों की तांता लग गई। घर ही नहीं, पड़ोसी भी खुशी से झूम उठे। सीतारामडेरा स्थित न्यू ले आउट निवासी राकेश सिंह के पुत्र आयुष को 99.50 फीसद अंक लाकर झारखंड में पहला स्थान प्राप्त किया है। वह राजेंद्र विद्यालय का छात्र है।
गणित, फिजिक्स व कंप्यूटर साइंस में मिले पूरे सौ के सौ
आयुष को गणित, फिजिक्स व कंप्यूटर साइंस में 100-100 अंक मिला है। वहीं, अंग्रेजी में 98 व कमेस्ट्री में 97 अंक है। आयुष के पिता व्यापारी हैं। वहीं, मां नूतन गृहिणी है। आयुष का संयुक्त परिवार है। चाचा, चाची, दादा, दादी सभी एक साथ ही रहते हैं। लेकिन वह घर का इकलौता पुत्र है। आयुष अपने दादा श्याम सुंदर प्रसाद ङ्क्षसह को आदर्श मानते हुए कहते है कि मेरा पापा को मेरी मेहनत पर भरोसा था। वह कहते थे बेटा मेरा नाम रोशन करेगा। ठीक वैसा ही हुआ। उनके सपने को मैंने साकार किया लेकिन मुझे अभी बहुत कुछ करना बाकी है। आयुष इंजीनियिरिंग की तैयारी कर रहा है।
कभी ट़़यूशन की जरूरत नहीं पड़ी, स्कूल की पढ़ाई को घर में आकर दोहराना ही पर्याप्त
वह कहता है मैंने स्कूल का सिलेबस पूरा करने के लिए कभी ट््यूशन नहीं गया। बल्कि जो स्कूल में पढ़ाया जाता था उसे ही घर आकर अच्छी तरह से समझता, पढ़ता था। सिर्फ इंजीनियङ्क्षरग की तैयारी के लिए ट््यूशन जाता हूं। आयुष की ङ्क्षजदगी दूसरे बच्चों को प्रेरित करने वाली है। वह कहता है, कुछ माता-पिता सोचते हैं कि बेटा, बेटी को ट््यूशन भेजने से ज्यादा परीक्षा में ज्यादा अंक लेकर आ जाएंगे। ऐसा नहीं है। गुदड़ी के लाल भी टॉपर बनते हैं। उनसे सभी को सीखने की जरूरत है। पढऩे वाला कहीं से भी पढ़कर टॉपर बन सकता है। बस जुनून होनी चाहिए। बिना संघर्ष का फल अधूरा रहता है।
सामान्य जिंदगी जीना और भारतीय भोजन पसंद
मैं हमेशा सामान्य बच्चों की तरह जिदंगी जीना पसंद करता हूं। भोजन में भी भारतीय खाद्य-पदार्थ ही पसंद है। चाऊमीन, मैगी, इडली सहित अन्य आइटम मेरा कभी भी पसंद नहीं रहा है। आयुष को किताब पढऩे व कंप्यूटर का शौक है। उसको खेलने में ज्यादा रुचि नहीं है। आयुष का जब स्कूल खुला रहता था तो वह दिनभर में तीन से चार घंटे ही घर में पढ़ाई करता था लेकिन छुट्टी वाले दिन 10 से 12 घंटे पढ़ाई करता था।