Weekly News Roundup Jamshedpur : फर्जी पत्र की नहीं आई जांच रिपोर्ट,पढ़िए चिकित्सा जगत की अंदरूनी खबर
Weekly News Roundup Jamshedpur.स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के नाम से फर्जी पत्र जारी होना गंभीर सवाल खड़े करते हैं। 22 जून को मंत्री के नाम से सिविल सर्जन को पत्र जारी हुआ था।
जमशेदपुर, अमित तिवारी। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के नाम से फर्जी पत्र जारी होना गंभीर सवाल खड़े करते हैं। 22 जून को मंत्री के नाम से सिविल सर्जन डॉ. महेश्वर प्रसाद को पत्र जारी हुआ था। इसमें पत्र संख्या से लेकर बन्ना गुप्ता का हस्ताक्षर तक शामिल है। हालांकि, कुछ ही देर के बाद मंत्री के प्रेस प्रवक्ता ने इसको फर्जी बताकर जांच कराने की बात कह दी। लेकिन, चार दिन बीतने के बाद अभी तक रिपोर्ट सामने नहीं आई है।
आखिर, किसने मंत्री के नाम पर फर्जी पत्र बनाने की ऐसी हिम्मत जुटाई। इस सवाल का जवाब सभी लोग जानना चाहते हैं। इस मामले को मंत्री को भी गंभीरता से लेने की जरूरत है। वैसे स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि मंत्री के किसी नजदीकी व्यक्ति ने ही गलत सूचना देकर पत्र जारी कराया है। यदि उन्हें कर्मचारी के बारे में जानकारी होती तो इस विवाद में नहीं पड़ते।
अरे पइसा काहे नहीं देते भाई
काम करा लिया, अब पैसा पाने के लिए कर्मचारी चक्कर लगा रहे हैं। एक-दो माह से नहीं, बल्कि दो वर्षो से। भारत सरकार के निर्देश पर पूर्वी सिंहभूम जिले में 27 जुलाई से चार अक्टूबर 2018 तक मिजिल्स रूबेला टीकाकरण अभियान चलाया गया था। कर्मचारियों ने दिन-रात एक कर अभियान को सफल बनाया। अभियान में शामिल सहिया, एएनएम, सपोर्ट स्टाफ को रोजाना 75 से लेकर 150 रुपये देने थे। इसके लिए फंड भी आया था। लेकिन, आजतक इन कर्मचारियों को पैसा नहीं दिया गया है। वहीं, अन्य जिलों में सभी कर्मचारियों को उसी समय पैसा बांट दिया गया। एक सहिया कहती हैं कि उन्हें सिर्फ प्रोत्साहन राशि मिलती है, फिर भी उनके साथ न जाने साहब लोग ऐसा बर्ताव क्यों कर रहे हैं। साहब लोगों को लाखों रुपये वेतन मिलता है। उनका काम तो चल जाता है, लेकिन 1500 रुपये के लिए कर्मचारी को चक्कर लगाना पड़ता है।
खुद किए बहाल, खुद बनाई जांच टीम
जिला यक्ष्मा विभाग में अनुबंध पर 18 कर्मचारियों की बहाली में पेच फंस गया है। इस मामले की जांच को लेकर सिविल सर्जन डॉ. महेश्वर प्रसाद ने तीन सदस्यीय टीम गठित की है। अब टीम ने जांच करने से इन्कार कर दिया है। टीम का तर्क है कि सिविल सर्जन की देखरेख में ही सभी का चयन हुआ है। ऐसे में हम जांच क्यों करें। इसका कोई मतलब नहीं बनता है। टीम में आरसीएच पदाधिकारी डॉ. बीएन उषा, सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. आएएन झा और डॉ. आलोक कुमार शामिल हैं। इससे पूर्व सिविल सर्जन ने यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. आरएन शर्मा को नियुक्ति का निर्देश दिया था। उन्होंने इन्कार करते हुए फाइल लौटा दी थी। यक्ष्मा विभाग की बहाली में अनियमितता बरतने का आरोप लग रहा है। एक आवेदक ने एक दिन में तीन पदों के लिए परीक्षा दे दी है। इस पर अब सवाल खड़ा हो रहा है।
पीपीई किट को तरस रहे सरकारी डॉक्टर
दावा कुछ भी हो लेकिन हकीकत यह है कि सरकारी डॉक्टरों को पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) किट भी नसीब नहीं है। वह जान की बाजी लगाकर मरीजों की सेवा कर रहे हैं। इसलिए हमें उनके बारे में जरूर सोचना चाहिए। महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सभी तरह के ऑपरेशन शुरू हो गए हैं। यहां रोज एक दर्जन से ज्यादा ऑपरेशन हो रहे हैं। इसमें महिला व प्रसूति विभाग, हड्डी, सर्जरी विभाग व ईएनटी सहित अन्य विभाग शामिल हैं, पर किसी भी डॉक्टर को ऑपरेशन के दौरान पीपीई किट नसीब नहीं है। यह चिंता की बात है। वहीं, निजी अस्पतालों में आलम यह है कि छोटे-छोटे ऑपरेशन करने से पूर्व डॉक्टर पीपीई किट पहन रहे हैं। इस मद का खर्च भी मरीजों से वसूल रहे हैं। ऐसे डॉक्टरों का कहना है कि ओपीडी में पीपीई किट जरूरी नहीं है, लेकिन ऑपरेशन के दौरान यह काफी मायने रखता है।