Happy Nurse Day : कभी मां बन जाती तो कभी बहन, नई जिंदगी देकर ‘भगवान’ बन जाती हैं नर्स
International Nurse Day नर्स की भूमिका मां से कम नहीं होती इसलिए शायद मदर्स डे के दो दिन बाद नर्स डे मनाया जाता है। कोरोना काल में नर्सों की अलग-अलग भूमिका देखकर आप भी हैरान हो जाएंगे।
जमशेदपुर : नर्स (Nurse) की भूमिका मां से कम नहीं होती, इसलिए शायद मदर्स डे (Mothers Day) के दो दिन बाद नर्स डे (Nurse Day) मनाया जाता है। कोरोना काल (Corona virus) में नर्सों की अलग-अलग भूमिका देखकर आप भी हैरान हो जाएंगे। ये नर्सें अपने घर-परिवार, बेटा-बेटी सबकुछ त्याग कर आपकी जान बचाने में जुटी हुई है। कोई गांव-गांव घूमकर प्रसव करा रहा है तो कोई कोरोना मरीजों की जान बचा रहा है। कोई वैक्सीन दे रहा है तो कोई घर-घर जाकर जांच कर रहा है। इस दौरान, वो कभी मां बन जाती है, तो कभी बहन, कभी गुस्सा करती है तो कभी प्यार जताती है, वो हमारी सेवा करती है, वो निस्वार्थ भाव से मदद करती है, वो नई जिंदगी देती है इसलिए वह ‘भगवान’ भी बन जाती है। इनपर आंख बंद कर भरोसा करते है। जैसा बोलती वैसा करते हैं। तत्परता के साथ सेवा में जुटी ऐसी नर्सों को हम सलाम करते हैं। मानवता की मिसाल देते हैं। ये नर्सें समर्पण के साथ सेवाभाव को समर्पित हैं।
एक साल में कराई 397 प्रसव
घाटशिला के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र काराडूबा में तैनात नर्स सुबोधिनी बेरा उस क्षेत्र के लोगों के लिए ईश्वरीय वरदान है। सुबोधिनी बेरा बीते एक साल में कुल 397 प्रसव कराई है, जिसकी सराहना जिला प्रशासन ने भी की है। सुबोधिनी बेरा की निस्वार्थ सेवा देखकर इनके पास दूर-दराज से ग्रामीण आते हैं। वे कहते हैं कि एक निजी अस्पताल में प्रसव करवाने में अधिक पैसा भी लगता है और ऑपरेशन भी कराना होता था लेकिन यहां न तो ऑपरेशन की चिंता होती है और न ही पैसा लगती है। बल्कि दवा व इंजेक्शन भी मुफ्त में मिलती है।
काराडूबा में तैनात नर्स सुबोधिनी बेरा
वैक्सीन लगाकर बचा रही जान
मंजू हसा पूर्ति फिलहाल रेड क्रास के वैक्सीनेशन सेंटर में तैनात है। वह अभी तक दो हजार से अधिक लोगों को वैक्सीन दे चुकी है। इससे पूर्व वह जिला सर्विलांस विभाग में तैनात थी, जहां पर नमूना संग्रह कर उसे लैब भेजने का कार्य करती थी। साथ ही संक्रमित मरीजों के संपर्क में आए लोगों की पहचान करने के लिए घर-घर भी जाती थी। उस दौरान काफी परेशानी भी होती थी। लोग कुछ भी बताना नहीं चाहते थे लेकिन तब समझदारी के साथ शांत दिमाग से उन्हें समझाना पड़ता था। कोरोना से होने वाले खतरा के बारे में बताना पड़ता था तब जाकर लोग सही जानकारी देते थे और उनकी जांच हो पाती थी।
रेड क्रास के वैक्सीनेशन सेंटर में तैनात मंजू हसा पूर्ति
ड्यूटी करते-करते पॉजिटिव हो गई श्रीति
कदमा निवासी श्रीति कुमारी परसुडीह सदर अस्पताल के कोविड वार्ड में ड्यूटी करते करते पॉजिटिव हो गई। इसके बाद वे टेल्को स्थित डीलर्स हॉस्टल क्वारंटाइन सेंटर में भर्ती है। श्रीति को ज्यादा कुछ परेशानी नहीं है लेकिन जब तक उनकी रिपोर्ट निगेटिव नहीं आ जाती तब तक वे घर नहीं जा सकती है। श्रीति कहती है कि कोविड वार्ड में एक सप्ताह तक ड्यूटी करने के बाद उन सभी का कोरोना जांच होता है। उसके बाद ही घर जाने की इजाजत होती है। रिपोर्ट पॉजिटिव आने से क्वारंटाइन सेंटर में ही रहना पड़ता है।
परसुडीह सदर अस्पताल में तैनात श्रीति कुमारी
नियम का करती हूं सख्ती से पालन
परसुडीह स्थित सदर अस्पताल के कोविड वार्ड की इंचार्ज रानी सिंह अपनी ड्यूटी ईमानदारी पूर्वक निभा रही है। वे सुबह नौ बजी आती तो रात नौ बजे घर जाती है। घर जाने के बाद वे गर्म पानी से स्नान करती। इसके बाद भी रूम में प्रवेश करती। रानी सिंह कहती है कि कोरोना काल में उनकी भूमिका काफी बढ़ गई है। मरीजों को
बेहतर सेवा देने को हर संभव प्रयास करती हूं। इस दौरान कोविड नियम का सख्ती से पालन करती हूं। अभी तक एक बार भी पॉजिटिव नहीं हुआ हूं।
परसुडीह स्थित सदर अस्पताल के कोविड वार्ड की इंचार्ज रानी सिंह
सेवा के लिए घर-परिवार छोड़ कर आई हूं
एमजीएम अस्पताल के कोविड वार्ड में तैनात अल्का डुंगडुंग मरीजों की सेवा करने के लिए सीमडेगा से जमशेदपुर आई है। अल्का कहती है कि कोरोना काल में उनकी भूमिका बढ़ गई है। मरीजों की संख्या अधिक है और नर्सों की कमी। जिसके कारण एक साथ कई मरीज बुलाने लगते है। बारी-बारी से उनकी समस्या सुनना पड़ता है। इसके बाद दवा दी जाती है। अगर जरूरत होती है तो चिकित्सक को बुलाया जाता है। ताकि मरीजों को किसी तरह की परेशानी नहीं हो। खुद का बचाव करने के लिए नियम का सख्ती से पालन करता हूं।
एमजीएम अस्पताल के कोविड वार्ड में तैनात अल्का डुंगडुंग
कभी गुस्सा भी आता तो कभी दया भी
एमजीएम अस्पताल के कोविड वार्ड में तैनात नूतन तिर्की मरीजों की सेवा में दिन-रात लगी हुई है। इस दौरान उन्हें कभी गुस्सा भी आता तो कभी दया भी। वे कहती है कि मरीजों पर गुस्सा कभी नहीं आती लेकिन व्यवस्थागत खामियों की वजह से गुस्सा आती है। एमजीएम में अधिकांश मरीज गरीब आते है। इस दौरान जो दवाएं उपलब्ध नहीं होती उसे बाहर से लाने को कहा जाता है लेकिन उनके पास पैसा नहीं होती। वैसी परिस्थिति में गुस्सा आता है। लगता है कि इतनी सेवा के बाद भी हम उन्हें संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं।
एमजीएम अस्पताल के कोविड वार्ड में तैनात नूतन तिर्की
सारा रिपोर्ट करती हूं तैयार
भुईयांडीह निवासी ज्योति कुमारी एमजीएम अस्पताल के कोविड वार्ड में तैनात है। यहां भर्ती होने वाले सभी मरीजों की डाटा संग्रह कर जिला सर्विलांस विभाग को भेजना पड़ता है। इसमें रोजाना आने वाले मरीज, मृतकों की संख्या व स्वस्थ होकर घर जाने वालों की संख्या शामिल होती है, उस जिम्मेदारी को मैं संभाल रही हूं। मैं सुबह आती तो देर रात घर लौटती। माता-पिता इंतजार करते रहते हैं। देर होने पर फोन भी करते हैं।
भुईयांडीह निवासी ज्योति कुमारी