Hindi Diwas : हिंदी में रोजगार की अपार संभावनाएं, अभिभावकों को बदलनी होगी सोच, राष्ट्रभाषा के विकास में दें योगदान
हिंदी को लेकर खासकर अभिभावकों में यह भ्रम की स्थिति है कि इस विषय को पढ़ने पर रोजगार नहीं मिलता। यह बिल्कुल गलत है। हिंदी में सबसे ज्यादा रोजगार है। निजी स्कूलों में तो बच्चे हिंदी को एच्छिक विषय के तहत पढ़ते हैं। राष्ट्रभाषा को लेकर यह ठीक नहीं है।
जासं, जमशेदपुर : राष्ट्रभाषा हिंदी के विकास में अभिभावकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। वे अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी को भी बढ़ावा दें। अभिभावकों व छात्रों में जागरुकता की कमी के कारण कई बोर्ड में हिंदी को एच्छिक विषय के रूप में चयन हो रहा है। अब तो अच्छे पढ़ने वाले छात्रों को हिंदी में 100-100 नंबर मिल रहे हैं। अभिभावक यह भूलते जा रहे हैं कि हिंदी में राेजगार की अपार संभावनाएं है। विदेशों में हिंदी भाषा की मांग बढ़ी है। ऐसे में हमारी हिंदी को समृद्ध करने के लिए अपने स्तर से हर संभव प्रयास करना चाहिए। यह अब विश्व में लोकप्रिय हो चली है। इस लोकप्रियता को बनाए रखने की आवश्यकता है।
हिंदी है आमलोगों की भाषा, सीखना भी आसान : प्रो. अंजिला
जमशेदपुर महिला विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. (डा.) अंजिला गुप्ता ने कहा कि हिंदी आमलोगों की भाषा है। इसे किसी भी माध्यम से सीखा जा सकता है। विदेशों के लोग तो फिल्में देखकर हिंदी सीख लेते हैं। कक्षा दसवीं तक के बच्चों काे पूरा भाषा का ज्ञान हो जाता है। नई शिक्षा नीतियों में भारतीय भाषाओं के साथ-साथ हिंदी को भी बढ़ावा देने का कार्य हो रहा है। आज का युग तकनीकी युग है। आज 12 साल में बच्चा तकनीक में परिपक्व हो जा रहा है। हिंदी के विकास के लिए तो आज हिंदी में कामिक्स आ रहे हैं। हर तरह से इसे समृद्ध करने की कोशिश की जा रही है। यह समृद्ध है भी। विदेश में हमारी राष्ट्रभाषा की भारी मांग है। सारी प्रतियोगी परीक्षाएं हिंदी में आयोजित हो रही है। इसके लिए भारत सरकार ने राजभाषा विभाग अलग से गठन किया है।
भारत की जीडीपी में मात्र दस प्रतिशत अंग्रेजी का योगदान : डा. झा
एलबीएसएम कालेज के प्रिंसिपल डा. एके झा ने कहा कि भारत में एकीकृत शिक्षा व्यवस्था नहीं होने के कारण अलग-अलग बोर्डों के परीक्षार्थियों के प्राप्तांक एवं हिंदी के पाठ्यक्रम दोनों में अंतर है। राज्यों बोर्ड के स्कूल के शिक्षक गैर शैक्षणिक कार्य और प्रतिवेदन बनाने में ज्यादा समय देते हैं। शिक्षकों को सिर्फ अध्यापन कार्य तक रख जाना चाहिए। हिंदी के शिक्षक को तो समय से होमवर्क जांचने का भी फुर्सत नहीं मिला। हिंदी से परहेज व अंग्रेजी अपनाने वाले बच्चों एवं अभिभावकों को यह जानना चाहिए कि भारत की जीडीपी में मात्र दस प्रतिशत हिस्सा अंग्रेजी भाषा और इस भाषा पर आधारित कारोबार का है। देश की जीडीपी में हिंदी भाषा का बहुत बड़ा योगदान है। यह मानसिक भ्रम है कि अंग्रेजी के माध्यम से देश का विकास हो रहा है। हिंदी को किसी भी बोर्ड परीक्षाओं में अनिवार्य भाषा बनाएं रखना अत्यंत आवश्यक है।
चुनौतीपूर्ण कार्य है सरकारी स्कूल के बच्चों को हिंदी पढ़ाना
पटमदा प्रखंड की उत्क्रमित उच्च विद्यालय गोबरघुसी की हिंदी शिक्षिका हरप्रीत कौर बताती है कि सरकारी स्कूल के बच्चों को हिंदी सिखाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। वर्तमान में जो हालात है उन्हें शब्द उच्चारण व अक्षर ज्ञान कक्षा सांतवीं के बाद ही मिल पा रहा है। वह भी अगर स्कूल में हिंदी शिक्षिका है तब। सरकारी स्कूल के शिक्षकों पर इतना वर्कलोड है कि वे सही तरीके से अपना मूल कार्य नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें भटका कर रख दिया जा रहा है। उपर से रिजल्ट अच्छा करने के लिए दबाव होता है। वे दबाव में सारा पठन-पाठन कार्य कर रहे हैं, लेकिन उन्हें मन से अपने विषय को पढा़ना होगा। हिंदी ऐसी भाषा है जिसे आसानी से सीखा और सिखाया जा सकता है।
अंग्रेजी के चक्कर में हिंदी को भूल रहे : डा. अनिता
राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित लक्ष्मीनगर उच्च विद्यालय की शिक्षिका डा. अनिता शर्मा का मानना है कि हम अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने के चक्कर में हिंदी को भूला रहे हैं। हिंदी की समृद्धि के लिए हिंदी में ही रोजगार के अवसर तलाशने होंगे। कोई भी भाषा रोजगार परक होगी वह वृहत आकार लेगी। हिंदी की समृद्धि के लिए राष्ट्रभाषा में रोजगार के अवसर का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। विदेश में लोग हिंदी पढ़ रहे हैं और हम इससे किनारा कर रहे हैं। हमारी राष्ट्रभाषा को समृद्ध करने के लिए सरल शब्द कोष भी ढूंढा जाना चाहिए। हिंदी भाषा दूसरी भाषा से आए शब्दों से उदारता से स्वीकारती है।