Automobile: बीएस-4 कार आपके पास है तो घबराएं नहीं, फायदे में रहेंगे
भारत सरकार ने बीएस-4 इंजन वाली गाडिय़ों की बिक्री व निबंधन पर प्रतिबंध लगाया है चलाने पर नहीं है। अप्रैल तक जिन लोगों ने कार खरीद ली है वे अगले 15 वर्ष तक इसे चला सकते हैं।
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। एक अप्रैल से बीएस-4 इंजन वाली कारों की बिक्री बंद हो जाएगी। इन सबके बावजूद उन्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है, जिनके पास बीएस-4 इंजन वाली कारें हैं। ध्यान रहे भारत सरकार ने बीएस-4 इंजन वाली गाडिय़ों की बिक्री व निबंधन पर प्रतिबंध लगाया है, चलाने पर नहीं है। अप्रैल तक जिन लोगों ने बीएस-4 इंजन वाली कार खरीद ली है, वे अगले 15 वर्ष तक इसे वैधानिक रूप से चला सकते हैं।
जिनके पास बीएस-4 कार है, उन्हें इस बात का अफसोस करने की आवश्यकता नहीं है कि उन्हें कोई घाटा होगा। इसके उलट वे कई मामलों में फायदे में रहेंगे। बीएस-6 कार मौजूदा बीएस-4 कार की तुलना में डेढ़ से चार लाख रुपये तक महंगी होंगी, क्योंकि बीएस-6 गाडिय़ों में प्रदूषण कम करने के लिए जो किट (आफ्टर ट्रीटमेंट फंक्शन) लगेगा, उसकी औसत कीमत 2.5 लाख होगी। दूसरा फायदा ईंधन की खपत में होगा, क्योंकि बीएस-6 गाडिय़ों में माइलेज 5-10 फीसद कम मिलेगा। यदि आपके छोटी कार है तो भी हर तीन माह पर फिल्टर बदलना होगा। बड़ी कार है तो उसमें पेट्रोल का तीन फीसद एडब्ल्यू नामक (केमिकल) यूरिया डालना होगा, इसके लिए एटीएफ से अलग एक टंकी रहेगी। अब भी बीएस-4 इंजन वाली बड़ी गाडिय़ों में 3-4 फीसद यूरिया डालना पड़ता है, लेकिन बीएस-6 में इसका औसत 6-8 फीसद हो जाएगा। इसका खर्च 50 से 80 रुपये प्रति लीटर आएगा। कुल मिलाकर आपकी पुरानी बीएस-4 गाडिय़ों में इतने सारे खर्चे व झंझट नहीं रहेंगे, जो बीएस-6 में होंगे।
बीएस-4 में भी कम होगा प्रदूषण
वाहन ईंधन से होने वाले प्रदूषण के लिए भारत सरकार मानक तय करती है। इसे 'भारत स्टैंडर्डÓ या 'बीएसÓ कहा जाता है। भारत में 2010-2017 तक बीएस-3 मानक चला था, जबकि 2017 में बीएस-4 और अप्रैल 2020 से बीएस-6 कर दिया गया। इस मानक वाले इंजन से ईंधन का जो उत्सर्जन होगा, उसमें पहले की तुलना में प्रदूषण कम होगा। बीएस-6 से बीएस-4 इंजन में प्रदूषण ज्यादा होगा, लेकिन ईंधन को ही इतना परिष्कृत किया जा रहा है कि प्रदूषण का स्तर खुद ब खुद कम हो रहा है। पेट्रोल-डीजल में सबसे ज्यादा प्रदूषण गंधक या सल्फर की वजह से होता है। इससे आंख में जलन होती है, तो फेफड़े तक पहुंचने से इंफेक्शन व सांस की बीमारी होती है। फिलहाल पेट्रोल में 30 फीसद तक सल्फर है, जिसे 8-10 फीसद तक किया जा रहा है। लक्ष्य सल्फर को शून्य तक लाना है। इसलिए यह पेट्रोल किसी भी गाड़ी में डालेंगे तो सल्फर का उत्सर्जन नहीं होगा।
सरकार 15 साल पुरानी गाडिय़ों को करे स्क्रैप
बीएस-6 इंजन को अनिवार्य बनाने की बजाय सरकार को स्क्रैप पालिसी लागू करना चाहिए। प्रदूषण पुरानी गाडिय़ों से ज्यादा फैलता है। अब भी शहर में 25-30 कौन कहे 50 साल पुरानी गाडिय़ां चलती हुई दिख जाएंगी। इससे ना केवल प्रदूषण कम होगा, बल्कि ऑटोमोबाइल, स्टील से लेकर रबर, प्लास्टिक समेत पूरी इंडस्ट्री में जान आ जाएगी।
- कृष्णा भालोटिया, रीजनल डायरेक्टर, फेडरेशन ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल डीलर एसोसिएशन