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    सावधान! कहीं मरीज को संक्रमित रक्त तो नहीं चढ़ा रहे आप?,थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों में HIV संक्रमण मिलने के बाद ब्लड बैंकों की जांच शुरू

    By Amit Kumar Edited By: Kanchan Singh
    Updated: Sun, 02 Nov 2025 02:51 AM (IST)

    चाईबासा में थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों में एचआईवी संक्रमण के मामले के बाद, झारखंड के ब्लड बैंकों की जांच शुरू हो गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि एचआईवी जांच में देरी के कारण संक्रमित रक्त का पता लगाने में कठिनाई होती है। आधुनिक जांच के अभाव और मानकों की अनदेखी के कारण रक्तदान जैसा नेक कार्य भी जानलेवा बन सकता है। राज्य सरकार ने सभी जिलों में जांच के आदेश दिए हैं।

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    चाईबासा सदर अस्पताल के ब्लड बैंक से थैलेसीमिया पीड़ित पांच बच्चों में एचआइवी संक्रमण मिलने से सनसनी फैल गई है।

    जागरण संवाददाता, सरायकेला। चाईबासा सदर अस्पताल के ब्लड बैंक से थैलेसीमिया पीड़ित पांच बच्चों में एचआइवी संक्रमण मिलने के बाद पूरे झारखंड में सनसनी फैल गई है। यह घटना स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर चूक मानी जा रही है।

    मामले के सामने आते ही सरकार हरकत में आ गई है। राज्य सरकार ने तत्काल प्रभाव से सभी जिलों के ब्लड बैंकों की जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। विशेष टीमों को हर जिले में भेजा गया है ताकि यह पता चल सके कि कहीं और भी इस तरह की लापरवाही तो नहीं हो रही।

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    कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह घटना बताती है कि झारखंड में आज भी रक्त जांच व्यवस्था पूरी तरह मजबूत नहीं है। जांच प्रणाली अभी भी पुराने तरीके पर निर्भर है, जिससे शुरुआती संक्रमण पकड़ में नहीं आता। यही सबसे बड़ा खतरा और सबसे बड़ा जोखिम है।

    एचआइवी जांच में होता है देर, शुरुआती संक्रमण में चूक

    इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के प्रदेश उपाध्यक्ष डा. एके लाल कहते हैं कि एचआइवी जांच की मौजूदा सामान्य प्रणाली संक्रमण का तुरंत पता नहीं लगा पाती।

    एचआइवी वायरस के शरीर में प्रवेश करने के बाद भी कई दिन तक उसकी पहचान नहीं हो पाती। आमतौर पर एलाइजा टेस्ट सबसे ज्यादा उपयोग में आता है। लेकिन एलाइजा तभी संक्रमण पकड़ता है, जब शरीर में एंटीबाडी विकसित हो चुकी हों।

    यानी संक्रमित हुए लगभग 2 से 6 हफ्ते गुजर जाने के बाद एचआइवी जांच में पकड़ में आता है। वहीं, पुराने कीट से जांच करने पर यह समय 30 से 90 दिन तक पहुंच जाता है। रैपिड टेस्ट से रिपोर्ट भले 20 से 30 मिनट में मिल जाए, लेकिन शुरुआती संक्रमण इसके अंदर भी छिपा रह सकता है।

    सबसे आधुनिक जांच सीबी नेट

    सबसे आधुनिक जांच सीबीनेट या पीसीआर टेस्ट है, जो वायरस के जीन यानी आरएनए/डीएनए को पहचान लेता है और संक्रमण के 10वें दिन के बाद ही वायरस को पकड़ सकता है। लेकिन यह जांच महंगी है और हर ब्लड बैंक में उपलब्ध नहीं होती।

    यही वजह है कि अगर संक्रमण के शुरुआती दिनों में किसी व्यक्ति का खून लिया गया हो, और उसी चरण में जांच हो गई हो, तो रिपोर्ट में वायरस नहीं दिखता। रिपोर्ट नेगेटिव आ जाती है, जबकि खून वास्तव में संक्रमित होता है।

    इसी वजह से कई बार अनजाने में ऐसे संक्रमित रक्त मरीजों को चढ़ा दिया जाता है। यह स्थिति सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों में एक बड़ी चुनौती है।

    आंकड़े बताते हैं कि खतरा कम नहीं है

    कोल्हान में पिछले कुछ सालों में रक्तदान शिविर तो बढ़े हैं, मगर जांच व्यवस्था की सख्ती में कमी साफ दिखाई देती है। सरायकेला सदर अस्पताल के रिकार्ड के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में 6689 यूनिट रक्त एकत्र किया गया। इनमें से 49 यूनिट संक्रमित पाए गए और 6 यूनिट एचआइवी संक्रमित थे।

    जमशेदपुर एमजीएम से जुड़े आंकड़े और स्थिति

    एमजीएम ब्लड बैंक में वर्ष 2023 में 22 यूनिट खून एक्सपायर हुआ था और 21 एचआइवी संक्रमित मरीज मिले। 2024 में 32 यूनिट खून एक्सपायर हुआ, 20 एचआइवी संक्रमित मरीज मिले और 8 वायरल जांच रिपोर्ट पाजिटिव आई थीं।

    जबकि 2025 में अब तक 16 यूनिट खून एक्सपायर हुई है, 15 एचआइवी संक्रमित मरीज मिले और 8 वायरल जांच रिपोर्ट पाजिटिव आई हैं। डाक्टरों का कहना है कि खून की एक यूनिट 35 दिन के बाद एक्सपायर हो जाती है। दूसरी तरफ 7 से 8 यूनिट खून हर साल ऐसा भी होता है जो आधा चढ़ा होता है और बाद में खराब पाया जाता है। यह गंभीर सवाल खड़ा 

    चाईबासा की रिपोर्ट चौंकाने वाला

    पश्चिमी सिंहभूम जिले में वर्ष 2023-24 के दौरान अब तक 253 लोगों ने चिह्नित पांच थैलेसीमिया बच्चों को रक्तदान किया था। इनमें से अब तक 44 सैंपल की ही जांच हुई है। और उन 44 में से तीन डोनर एचआइवी पाजिटिव मिले हैं।

    एक ऐसा डोनर भी मिला है जिसके परिवार में पांच सदस्य एचआइवी संक्रमित हैं। जिले में वर्तमान में एचआइवी संक्रमित कुल 517 सक्रिय केस मौजूद हैं। यह संख्या बताती है कि खतरा सिर्फ एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है।

    मानकों की अनदेखी बनी सबसे बड़ी वजह


    विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार, हर रक्त यूनिट की जांच एचआइवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, मलेरिया और सिफिलिस के लिए अनिवार्य है।

    मगर जमीन पर इसका पालन होना ही सबसे बड़ा सवाल है। झारखंड के कई ब्लड बैंकों में मशीनों की कमी है, प्रशिक्षित तकनीकी कर्मचारियों की कमी है और सुपरविजन/निगरानी की कमी भी सामने आई है।

    कई एनजीओ और सामाजिक संस्थाएं सिर्फ रक्त संग्रह की संख्या बढ़ाने पर ध्यान देती हैं, लेकिन जांच की सटीकता को उतनी प्राथमिकता नहीं दी जाती। ऐसे में रक्तदान जैसा नेक कार्य भी जाने-अनजाने जानलेवा बन जाता है।हर केस में जांच का समय अलग होता है। तीसरी और चौथी पीढ़ी के एलाइजा किट से 10 दिन बाद एचआइवी संक्रमित रक्त का पता चल जाता है, लेकिन पुराने किट से 30 से 90 दिन लग सकते हैं।
    - डा. नकुल चौधरी, उपाधीक्षक, सदर अस्पताल, सरायकेला